आर्थिक तंगी और संसाधनों की कमी ने रोके कदम : अब संघ के समर्थन से पहली बार नेशनल में खेलेगी राजस्थान की व्हीलचेयर बास्केटबॉल टीम
कोई जन्मजात दिव्यांग, किसी ने दुर्घटना में गंवाए अंग
कभी आर्थिक तंगी और संसाधनों की कमी ने उनके सपनों को रोक दिया था, लेकिन अब जज्बा और समर्पण ने उन्हें राष्ट्रीय मंच तक पहुंचने का रास्ता दिखाया है।
जयपुर। कभी आर्थिक तंगी और संसाधनों की कमी ने उनके सपनों को रोक दिया था, लेकिन अब जज्बा और समर्पण ने उन्हें राष्ट्रीय मंच तक पहुंचने का रास्ता दिखाया है। राजस्थान की व्हीलचेयर बास्केटबॉल टीम पहली बार नेशनल टूनार्मेंट में हिस्सा लेने की तैयारी में है। सितम्बर में ग्वालियर में होने वाले इस टूनार्मेंट के लिए दिव्यांग पैरा स्पोर्ट्स एसोसिएशन ऑफ राजस्थान ने अपने खर्च पर पूरी तैयारी की है। खिलाड़ियों के लिए खास व्हीलचेयर खरीदी हैं और पहली बार जयपुर में एक चार दिवसीय प्रशिक्षण शिविर भी आयोजित किया।
20 जिलों के 50 खिलाड़ी आए कैंप में :
इस कैंप में प्रदेशभर से 20 जिलों के 50 से अधिक दिव्यांग खिलाड़ियों ने भाग लिया। इनमें कुछ ऐसे हैं, जो पहले शूटिंग, बैडमिंटन, वॉलीबॉल और एथलेटिक्स में राज्य या राष्ट्रीय स्तर पर खेल चुके हैं। अब ये खिलाड़ी व्हीलचेयर बास्केटबॉल में नई शुरूआत करने को तैयार हैं। कैंप में शामिल अंतरराष्ट्रीय शूटर शताब्दी अवस्थी भी अब इस खेल में उतरेंगी।
संघ ने खरीदी विशेष व्हीलचेयर :
दिव्यांग पैरा स्पोर्ट्स एसोसिएशन ऑफ राजस्थान के सचिव हिम्मत सिंह ने बताया कि बास्केटबॉल के लिए विशेष रूप से बनी एक व्हीलचेयर की कीमत करीब 45,000 रुपए होती है। यह खर्च उठाना अधिकतर खिलाड़ियों के लिए असंभव है। लेकिन संघ ने इस चुनौती को स्वीकार किया। अब तक 6 व्हीलचेयर बेंगलुरु से और 4 दिल्ली से मंगवाई गई हैं।
कुछ अनुभवी, कुछ फ्रेशर, सबके पास है जज्बा :
हिम्मत सिंह के अनुसार कैंप में शामिल खिलाड़ियों में केवल तीन खिलाड़ी नरेश (चूरू), मोहन (भीलवाड़ा) और भरत (पाली) ही ऐसे हैं जो पहले अन्य राज्यों की ओर से नेशनल खेल चुके हैं। बाकी खिलाड़ी या तो फ्रेशर हैं या अन्य खेलों से अनुभव लेकर अब बास्केटबॉल की ओर कदम बढ़ा रहे हैं। इनमें पीएचडी डिग्रीधारी उदयपुर की धनवंती सोनगरा भी हैं और विधायक घनश्याम मेहर की बेटी प्रियंका भी हैं, जो पहली बार खेलेंगी।
ऐसे होता है टीम का चयन :
हिम्मत सिंह के अनुसार टीम में पांच प्लेइंग मेम्बर और कुछ रिजर्व खिलाड़ी होते हैं। हर खिलाड़ी को उसकी दिव्यांगता की श्रेणी के आधार पर अंक मिलते हैं, और पूरी टीम का स्कोर 14 से अधिक नहीं होना चाहिए। इस संतुलन में संवेदनशीलता, निष्पक्षता और गहरी समझ की आवश्यकता होती है।
कोई जन्मजात दिव्यांग, किसी ने दुर्घटना में गंवाए अंग :
कैंप में शामिल कई खिलाड़ी ऐसे हैं जो जन्म से दिव्यांग हैं, जबकि कुछ ने दुर्घटनाओं में अपने अंग खोए हैं। लेकिन अब ये सभी अपने हौसले और मेहनत से एक नई पहचान बनाने को तैयार हैं। राजस्थान संघ की अध्यक्ष राजबाला सैनी ने कहा कि यह सिर्फ एक टूनार्मेंट नहीं, बल्कि उम्मीद की उड़ान है। इसमें जीत इनके आत्मसम्मान और संघर्ष की है।

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