खेलो इंडिया यूनिवर्सिटी गेम्स : प्रथमेश फुगे ने तीरंदाजी में जीते दो स्वर्ण पदक, मानसिक मजबूती की मिसाल है केबल ऑपरेटर के बेटे की सफलता की कहानी
रिश्तेदारों और दोस्तों से लेते थे उधार
सावित्री ज्योतिबाई फुले यूनिवर्सिटी के प्रथमेश फुगे ने खेलो इंडिया यूनिवर्सिटी गेम्स राजस्थान-2025 में कंपाउंड तीरंदाजी के व्यक्तिगत और मिश्रित टीम वर्ग में दो स्वर्ण जीते। आर्थिक चुनौतियों के बीच प्रशिक्षण पाने वाले 22 वर्षीय प्रथमेश ने अपनी सफलता का श्रेय मानसिक दृढ़ता और निरंतर अभ्यास को दिया। कोविड के बाद परिवार की कठिन स्थिति के बावजूद उन्होंने आर्चरी में बड़ा मुकाम हासिल किया।
जयपुर। सावित्री ज्योतिबाई फुले यूनिवर्सिटी ऑफ पुणे का प्रतिनिधित्व कर रहे प्रथमेश फुगे ने खेलो इंडिया यूनिवर्सिटी गेम्स राजस्थान-2025 में कंपाउंड तीरंदाजी में दो स्वर्ण पदक जीते। आर्थिक चुनौतियों को पार करते हुए 22 वर्षीय तीरंदाज ने व्यक्तिगत फाइनल में मिहिर नितीन को परफेक्ट 10 स्कोर करते हुए हराया और महक पाठन के साथ मिश्रित टीम कंपाउंड स्पर्धा में भी स्वर्ण जीता।
प्रतिद्वंद्वी और हवा परवाह नहीं करता :
प्रथमेश ने साई मीडिया से कहा, मैं जीतने के बारे में नहीं सोचता, मैं बस अपना सर्वश्रेष्ठ देने और बाकी ऊपर छोड़ने में विश्वास करता हू। हर 10-पॉइंटर शॉट के लिए मैं सिर्फ अपने मसल मेमोरी पर निर्भर करता हू, न प्रतिद्वंद्वी की परवाह करता हू और न हवा की। पुणे के एक मध्यमवर्गीय परिवार में जन्मे और पले-बढ़े प्रथमेश की स्टार बनने की कहानी मानसिक दृढ़ता से भरी है। उन्होंने कहा, मैं हर दिन और कठिन अभ्यास करता था ताकि साई के एनसीओई, सोनीपत में चयन हो जाए, जिससे मेरे माता-पिता पर खर्च का बोझ न पड़े। प्रथमेश के पिता बलचंद्र फुगे एक केबल ऑपरेटर हैं और वाई-फाई व 5जी नेटवर्क के आने के बाद उन्हें भारी आर्थिक मुश्किलों का सामना करना पड़ा।
रिश्तेदारों और दोस्तों से लेते थे उधार :
प्रथमेश ने याद किया, कोविड के बाद पिता का काम लगभग बंद हो गया था और स्थिति बेहद खराब थी। आर्चरी के सामान के लिए वे रिश्तेदारों और दोस्तों से उधार लेते थे। मुझे पता था कि मुझे कड़ी मेहनत करके परिवार की मदद करनी है, कर्ज चुकाने में उनका साथ देना है। अपना खेल करियर प्रथमेश ने राज्य स्तरीय लंबी कूद एथलीट के रूप में शुरू किया, लेकिन घुटने की गंभीर चोट के बाद उन्हें आर्चरी अपनानी पड़ी। मेरे स्कूल कोच ने कहा कि आर्चरी बेहतर रहेगी क्योंकि इससे घुटनों पर जोर नहीं पड़ेगा। इसके बाद उन्होंने कंपाउंड आर्चरी टीम जॉइन कर ली थी। आर्थिक संकटों के बावजूद प्रथमेश ने कभी हार नहीं मानी और अपने लक्ष्य पर टिके रहे। उन्होंने कई बड़े खिताब जीते।

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