ब्रिक्स की बढ़ती सामूहिक ताकत से दहशतजदा ट्रंप : भारत को दूरी बनाने की नसीहत भी दे रहा अमेरिका, कभी गर्म कभी ठंडा की कूटनीति

दुनिया टैरिफ का मुकाबला करने में व्यस्त

ब्रिक्स की बढ़ती सामूहिक ताकत से दहशतजदा ट्रंप : भारत को दूरी बनाने की नसीहत भी दे रहा अमेरिका, कभी गर्म कभी ठंडा की कूटनीति

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और उनके प्रशासन ने ब्रिक्स को लेकर लगातार सवाल किए हैं

वाशिंगटन। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और उनके प्रशासन ने ब्रिक्स को लेकर लगातार सवाल किए हैं। दरअसल ट्रंप ब्रिक्स से भयभीत हैं। क्योंकि इसके सदस्यों की सामूहिक ताकत इतनी ज्यादा है कि वह अमेरिका के राजनैतिक और आर्थिक हैसियत को चुनौती दे सकता है। 

अमेरिका के कॉमर्स मिनिस्टर ने सीधेतौर पर भारत से ब्रिक्स से दूरी बनाने को कहा है। यह हैरतअंगेज है। एक तरफ ट्रंप ने भारत के खिलाफ व्यापार युद्ध छेड़ दिया है और खुलेआम वैश्विक जेहादी गुट की सोहबत में जा बैठे है। दूसरी तरफ उनके मंत्री भारत से ब्रिक्स को कमजोर करने की अपील कर रहे हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि भारत, रूस, चीन समेत कई अहम देशों का ये समूह अमेरिका और ट्रंप को क्यों डरा रहा है। एक्सपर्ट का मानना है कि ब्रिक्स वह गुट है, जो अमेरिकी प्रभुत्व को चुनौती दे सकता है। खासतौर से डॉलर के एकाधिकार और ट्रंप की टैरिफ नीति की काट यह गुट कर सकता है।

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, वैश्विक अर्थव्यवस्था में अमेरिकी डॉलर का प्रभुत्व है। इसे चुनौती देने के लिए उभरती अर्थव्यवस्थाओं का एक रणनीतिक प्रयास ब्रिक्स है। यह समूह व्यापार और मौद्रिक मामलों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, जो दुनिया की आधी आबादी और वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद के 40 प्रतिशत का प्रतिनिधित्व करता है।

ब्रिक्स का कोई सिंगल करेंसी नहीं
फिनोक्रेट टेक्नोलॉजीज के निदेशक गौरव गोयल कहते हैं कि ब्रिक्स कोई नई सिंगल करेंसी नहीं बना रहा है। इसके बजाय यह सदस्य व्यापार के लिए रियल, रूबल, रुपया, रेनमिनबी और रैंड जैसी मुद्राओं के उपयोग को बढ़ावा दे रहा है। इससे डॉलर तुरंत तो नहीं गिरेगा लेकिन इसका वर्चस्व जरूर कम होगा। खासकर वस्तुओं और ऊर्जा व्यापार में अमेरिकी डॉलर का महत्व घटेगा। अमेरिकी डॉलर विदेशी मुद्रा बाजार में सबसे मजबूत बना है। ब्रिक्स एक समानांतर प्रणाली का निर्माण करने में लगा है, जो इसके एकाधिकार को कमजोर करती है। एक्सपर्ट मानते हैं कि आर-ब्लॉक भले डॉलर को ना गिरा पाए लेकिन यह दुनिया को एक बहुध्रुवीय मुद्रा व्यवस्था की ओर ले जाने में लगा है। इसने सीधेतौर पर अमेरिका को चिंतित किया है और उसके नेताओं के बयानों में यह दिख रहा है।

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दुनिया टैरिफ का मुकाबला करने में व्यस्त
इस समय दुनिया ट्रंप के टैरिफ का समाधान खोजने में व्यस्त है। विशेषज्ञों के अनुसार, ब्रिक्स सदस्य देश डॉलर का विकल्प तलाशने, स्थानीय मुद्रा समझौतों और एक साझा आरक्षित मुद्रा पर चर्चा कर रहे हैं। इससे विदेशी मुद्रा बाजार में आर-ब्लॉक का उदय हुआ है। आर-ब्लॉक का मतलब उन देशों से है, जिनकी करेंसी आर से शुरू होती है। इसमें रूसी रूबल, भारतीय रुपया, चीनी रेनमिनबी, ब्राजीलियन रियल, दक्षिण अफ्रीकी रैंड और ईरानी रियाल है। एसएमसी ग्लोबल सिक्योरिटीज की विश्लेषक सीमा श्रीवास्तव कहती है कि आर-ब्लॉक के लिए डॉलर को हटाने में कई चुनौती हैं। सीमा कहती हैं, डॉलर विदेशी मुद्रा लेनदेन का 90प्रतिशत और डेरिवेटिव व्यापार का 85प्रतिशत हिस्सा है। यह संस्थागत मजबूती और वैश्विक विश्वास पर आधारित है, जिसका ब्रिक्स में फिलहाल अभाव है। निकट भविष्य में ब्रिक्स के प्रयासों से डॉलर को बदलने की बजाय बहुध्रुवीय विदेशी मुद्रा व्यवस्था को बढ़ावा मिलने की संभावना दिखती है।

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