इस नवरात्रि अपने मन में बैठे महिषासुर का नाश करें

अज्ञान से जगाना 

इस नवरात्रि अपने मन में बैठे महिषासुर का नाश करें

भारत अपनी प्राचीन संस्कृति और विविध पर्व-त्योहारों के लिए पूरे विश्व में प्रसिद्ध है।

भारत अपनी प्राचीन संस्कृति और विविध पर्व-त्योहारों के लिए पूरे विश्व में प्रसिद्ध है। यहां प्रत्येक त्योहार केवल एक सामाजिक या धार्मिक आयोजन नहीं होता, बल्कि उसमें कोई गूढ़ आध्यात्मिक अर्थ छुपा होता है। परंतु खेद की बात यह है कि आज के समय में बहुत कम लोग ऐसे हैं, जो इन त्योहारों के पीछे छिपे गहरे रहस्यों को समझते हैं। नवरात्रि भी ऐसा ही एक पर्व है जिसे आश्विन मास की शुक्ल प्रतिपदा से नवमी तक बड़े ही उत्साह और भक्ति के साथ मनाया जाता है। यह पर्व मां दुर्गा, मां लक्ष्मी, मां सरस्वती जैसी शक्तियों की आराधना का प्रतीक माना जाता है। लोग घरों में मिट्टी का कलश स्थापित करते हैं, अखंड दीप जलाया जाता है, कन्याओं का पूजन किया जाता है, उपवास रखे जाते हैं और माता का जागरण होता है। यह एकमात्र ऐसा पर्व है, जहां लगातार 9 दिनों तक स्त्री शक्ति के विभिन्न स्वरूपों की पूजा की जाती है।

आध्यात्मिक रहस्य :

क्या कभी हमने यह सोचा है कि ये देवी-स्वरूप वास्तव में कौन हैं नवरात्रि के पीछे छिपे आध्यात्मिक रहस्य क्या हैं। इन सवालों के उत्तर हमें उन पौराणिक आख्यानों में मिलते हैं, जिन्हें हम कथा के रूप में सुनते हैं-जैसे कि महिषासुर वध की कथा। इस कथा के अनुसार, जब महिषासुर नामक असुर ने देवताओं को पराजित कर दिया, तब त्रिदेवों की सामूहिक शक्ति से आदि शक्ति का प्रकट रूप हुआ-जो अष्टभुजा, त्रिनेत्री और दिव्य शस्त्रों से सुसज्जित थीं। उन्होंने महिषासुर का वध किया और देवताओं को मुक्त कराया। इसी कारण उन्हें महिषासुर मर्दिनी भी कहा जाता है। यदि इस आख्यान को गहराई से देखा जाए, तो यह केवल एक ऐतिहासिक या पौराणिक कहानी नहीं है, बल्कि इसमें एक गहरा आध्यात्मिक रूप छिपा है। महिषासुर का तात्पर्य किसी विशेष व्यक्ति से नहीं, बल्कि एक मनोवृत्ति से है, महिष अर्थात भैंसा, जो मंद बुद्धि, तमोगुण और आलस्य का प्रतीक है। वही तमसिक प्रवृत्तियां हमारे मन में भी बसती हैं, जो हमें आत्मज्ञान और आध्यात्मिक उन्नति से दूर रखती हैं। ऐसे ही अन्य असुर भी प्रतीकात्मक हैं -मधु और कैटभ राग और द्वेष के प्रतीक हैं। धूम्रलोचन यानी धुएं जैसी दृष्टि ,जो ईर्ष्या और भ्रम का सूचक है। शुम्भ और निशुम्भ हिंसा और द्वेष के प्रतिनिधि हैं। रक्तबीज उस आदत या दोष का प्रतीक है, जो जितना नष्ट किया जाए, उतना ही अधिक बढ़ जाता है।

असुरों का अर्थ :

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इन सभी असुरों का अर्थ है हमारे भीतर की नकारात्मक,अवांछनीय और विनाशकारी प्रवृत्तियां। जब ये प्रवृत्तियां हमारे जीवन में हावी हो जाती हैं, तब भीतर की दिव्यता दब जाती है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब कलियुग के प्रारंभ में अज्ञान, अधर्म और असुरी शक्तियां चारों ओर फैल चुकी थीं, तब स्वयं परमपिता परमात्मा ने त्रिदेवों के माध्यम से भारत की सुकन्याओं को दिव्य ज्ञान, योगबल और सात्विक गुणों से सुसज्जित किया। वे कन्याएं आत्मिक दृष्टि से जागृत थीं। उनका तीसरा नेत्र ज्ञान और विवेक का प्रतीक था और अष्ट भुजाएं,उनके अंदर की दिव्य शक्तियों-जैसे सहनशीलता, करुणा, त्याग, आत्मबल आदि का प्रतीक थीं। इन कन्याओं ने ही आत्मज्ञान से अपने भीतर और समाज में बसे हुए असुरतत्वों को परास्त किया। यही कारण है कि वे आदि शक्ति के रूप में पूजी गईं। उन्होंने न केवल स्वयं को तमोगुण से मुक्त किया, बल्कि अन्य लोगों को भी दिव्यता की ओर प्रेरित किया। नवरात्रि पर्व के प्रमुख प्रतीक कलश स्थापना, अखंड दीप, कन्या पूजन और जागरण सब इसी आध्यात्मिक घटना की स्मृति में हैं। कलश आत्मा का प्रतीक है, जिसमें दिव्यता और सात्विकता की स्थापना होती है। अखंड दीप आत्मिक जागृति और परमात्मा के ज्ञान का प्रकाश है, जो नव दिनों तक सतत जलता है।

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अज्ञान से जगाना :

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कन्या पूजन उस शक्ति की स्मृति है, जो इन कन्याओं ने संसार को अज्ञान से जगाने में दिखाई। जागरण अज्ञान की नींद से बाहर आने का प्रतीक है। इसलिए आज आवश्यकता है कि हम नवरात्रि को केवल एक धार्मिक अनुष्ठान न मानें, बल्कि इसके पीछे छिपे आध्यात्मिक सन्देश को समझें। यह पर्व हमें अपने भीतर झांकने का अवसर देता है, जहां महिषासुर, रक्तबीज, शुम्भ-निशुम्भ जैसी प्रवृत्तियां आज भी सक्रिय हैं आलस्य, क्रोध, ईर्ष्या, द्वेष, लालच, मोह, और घमंड। इस नवरात्रि पर संकल्प लें कि हम केवल बाह्य पूजा या जयघोष तक सीमित नहीं रहेंगे, बल्कि अपने भीतर की इन असुर प्रवृत्तियों का नाश करेंगे। अपने भीतर के तम को दूर कर ज्ञान का दीप जलाएंगे। यही सच्चे अर्थों में नवरात्रि मनाना होगा। तो आइए, इस नवरात्रि हम केवल कन्याओं का पूजन न करें, बल्कि अपने भीतर की आत्मिक कन्या यानी आत्मा में स्थित शुद्धता, पवित्रता, सहनशीलता और दिव्यता को जागृत करें। इसी के माध्यम से हम महिषासुर जैसे तमोगुणी विचारों का नाश कर सकते हैं और अपने जीवन को सच्चे अर्थों में दिव्य बना सकते हैं। नवरात्रि केवल एक पर्व नहीं, बल्कि एक आत्मिक अभियान है स्वयं को पहचानने, आंतरिक अशुद्धियों से युद्ध करने और आत्मा को परमात्मा से जोड़ने का। यह पर्व हमें यही प्रेरणा देता है कि हम अपने भीतर के अंधकार को दूर कर आत्मिक प्रकाश से जगमगाएं।

-राजयोगी ब्रह्माकुमार निकुंज
यह लेखक के अपने विचार हैं।

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