दूरदर्शन लाया शिक्षा - कृषि क्षेत्र में क्रांति 

पहला कार्यक्रम 'चौपाल' 

दूरदर्शन लाया शिक्षा - कृषि क्षेत्र में क्रांति 

राजस्थान, मध्य प्रदेश, बिहार, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और उड़ीसा में प्रथम टीवी प्रसारण 1 अगस्त, 1975 को हुआ।

राजस्थान, मध्य प्रदेश, बिहार, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और उड़ीसा में प्रथम टीवी प्रसारण 1 अगस्त, 1975 को हुआ। उपग्रह के माध्यम से, इन प्रदेशों के 20 जिलों के 2400 गांवों में एक वर्ष तक ये कार्यक्रम दिखाए गए। जिले थे राजस्थान के जयपुर, कोटा और सवाई माधोपुर, मध्य प्रदेश के रायपुर, बिलासपुर और दुर्ग एवं बिहार के मुजफ्फरपुर, चम्पारण, सहरसा और दरभंगा। तीन अहिन्दी भाषी प्रदेशों में कर्नाटक के कलबुर्गी, रायचूर और बीजापुर, आंध्र प्रदेश के हैदराबाद, कुर्नूल, मेडक और मेहबूब नगर एवं उड़ीसा के बेंकनाल, संबलपुर और बौध खंडमलास वर्तमान में मध्य प्रदेश के तीनों जिले छत्तीसगढ़ में हैं। कर्नाटक में कलबुर्गी और आंध्र प्रदेश में मेडक और मेहबूब नगर नाम से जिले नहीं हैं। हैदराबाद अब तेलंगाना में है। उड़ीसा का नाम ओडिशा हो गया और वहां बौध खंडमलास के नाम से जिला नहीं है।

बेस स्टेशन बने :

राजस्थान, मध्य प्रवेश और बिहार के हिन्दी कार्यक्रमों की रिकार्डिंग के लिए दिल्ली आंध्र प्रदेश के तेलुगू और कर्नाटक के कन्नड़ कार्यक्रमों की रिकार्डिंग के लिए हैदराबाद एवं उड़ीसा के उड़िया कार्यक्रमों की रिकार्डिंग के लिए कटक में 'बेस स्टेशन बने। चयनित गांवों में सामूहिक रूप से ये कार्यक्रम देखने के लिए एक-एक डायरेक्ट रिसीविंग सेट दिए गए। शुरूआत में कार्यक्रम आकाशवाणी के अंतर्गत टेलीविजन इंडिया ने बनाए। 1975 में टेलीविजन इंडिया का नाम दूरदर्शन हो गया। यह नाम ख्यातनाम कवि सुमित्रानंदन पंत ने रखा। दूरदर्शन की सिग्नेचर ट्यून सितार वादक पंडित रविशंकर ने शहनाई वादक अहमद हुसैन खान के साथ मिलकर बनाई। दूरदर्शन के लोगो का डिजाइन नेशनल स्कूल ऑफ डिजाइन के छात्र देवाशीष भट्टाचार्य ने बनाया। 1 अप्रैल, 1976 को दूरदर्शन आकाशवाणी से अलग हो गया। दोनों अब प्रसार भारती के अन्तर्गत हैं।

संयुक्त परियोजना :

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1975 से 1990 तक खेड़ा (गुजरात) परियोजना ग्रामीणा क्षेत्रों में इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से सूचना हस्तांतरण के लिए बनी। इसी सोच के अनुरूप 1975 में सेटेलाइट इंस्ट्रक्शनल टेलीविजन एक्सपेरीमेंट (साइट) लांच किया गया, जो नासा और इसरो की संयुक्त परियोजना थी। 'साइट' का उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में शैक्षिक टीवी कार्यक्रम दिखाने के लिए उपग्रह प्रौद्योगिकी का उपयोग करना था, जिससे दूरदराज के क्षेत्रों में शिक्षा, कृषि और स्वास्थ्य सेवा में सुधार हो। एटीएस-6 उपग्रह से कार्यक्रम दिखाने के लिए,1 फरवरी, 1987 तक गांव चयनित किए गए। चयनित प्रदेशों को क्लस्टर कहा गया। प्रत्येक में से एक हजार गांव चयनित हुए। गंभीर मंथन के उपरान्त, प्रत्येक क्लस्टर के 400 गांव चयनित हुए। इस प्रसारण योजना को खेड़ा परियोजना तंत्र का सहयोग मिला।

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समूह में कार्यक्रम देखे :

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राजस्थान में 1 अगस्त, 1975 से, एटीएस-6 के माध्यम से चयनित तीन जिलों की 27 पंचायत समितियों के 388 गांवों में, डायरेक्ट रिसीविंग सैट से ग्रामीणों ने समूह में कार्यक्रम देखे। 'साइट' ने इन प्रसारणों में, राजस्थान पर अनेक उत्कृष्ट कार्यक्रम दिखाए। पूर्व जन सम्पर्क निदेशक के.एल. कोचर और सत्यनारायण सिंह विशेषज्ञों में रहे। यूडीके में सहायक निदेशक और दूरदर्शन, जयपुर की 5 वर्ष निदेशक रही विमला मित्तल इन दिनों बेंगलुरु में है। उन्होंने बताया कि उन दिनों हिन्दी प्रदेशों के लिए कार्यक्रम रिकार्डिंग में उनके पति आनंद बिहारी मित्तल ( दूरदर्शन, जयपुर में करीब 5 वर्ष तकनीकी प्रमुख रहे) की इंजीनियर के रूप में सक्रिय भूमिका रही।

पहला कार्यक्रम 'चौपाल' :

31 जुलाई, 1976 को एटीएस-6 की सेवाएं बंद होने से 6 प्रदेशों के लिए टीवी प्रसारण बन्द हो गया। सात माह के बाद, 1 मार्च, 1977 को जयपुर, रायपुर और मुजफ्फरपुर के दर्शकों ने टीवी कार्यक्रम दुबारा देखने शुरू किए। इसके लिए जयपुर में नाहरगढ़ पर 10 किलोवाट का ट्रांसमीटर लगाया गया। कार्यक्रमों की रिकार्डिंग के लिए उपग्रह दूरदर्शन केन्द्र (यूडीके) दिल्ली के मंडी हाउस में अस्तित्व में आया। वहां तीनों प्रदेशों के कार्यक्रम रिकार्ड कर, टेप को तीनों केन्द्रों पर प्रसारण के लिए भेजा जाता। पहला कार्यक्रम 'चौपाल' था। राजस्थान में शुभारम्भ मुख्यमंत्री हरिदेव जोशी के संदेश से हुआ।

फील्ड रिकार्डिंग :

लेखक एंकर के रूप में 1982 में यूडीके से जुड़ा। तीनों प्रदेशों के लिए कार्यक्रम निर्धारण हेतु यूडीके के निदेशक की अध्यक्षता में अन्तरराज्यीय समिति थी, जिसकी बैठकें सम्बद्ध प्रदेशों में होती रहती थी। यूडीके के निदेशक गोपाल सक्सेना की अध्यक्षता में मुजफ्फरपुर में बैठक हुई तो राजस्थान के कार्यक्रम अधिकाधिक छाए रहने के कारण, एक दैनिक समाचार पत्र ने कार्टून छापा-'यह दूरदर्शन का जयपुर केन्द्र है।' इस समिति का लेखक सदस्य रहा। साथ ही राजस्थान में टीवी के कृषि कार्यक्रमों के लिए, कृषि सचिव की अध्यक्षता में 1982 में बनी समिति का करीब दो दशक तक सदस्य सचिव रहा। जयपुर में अशोक मार्ग पर यूडीके का दफ्तर था। प्रदेश भर में कार्यक्रमों की फील्ड रिकार्डिंग होती। 1984-85 में राजस्थान की मोलेला और फड़कला पर बने कार्यक्रमों को राष्ट्रीय पुरस्कार मिले।

दूरदर्शन केन्द्र, जयपुर :

6 जुलाई, 1976 को दूरदर्शन केन्द्र, जयपुर का पहला कार्यक्रम 'चौपाल' दिखाया गया, तब राजस्थान में भीषण अकाल था। मनोरंजन के स्थान पर इसमें अकाल पीड़ित किसानों की व्यथा कथा थी। प्रथम कार्यक्रम का एंकर लेखक था। लेखक कार्यक्रम निमार्ता एन.पी. शर्मा और जसवंत सिह कार्यक्रम का टेप लेकर नाहरगढ़ पहुंचे। प्रसारण के बाद करतल ध्वनि के साथ सबने मिठाई से मुंह मीठा किया।

कुछ ऐतिहासिक स्मृतियां साझा हैं। केन्द्रीय कृषि मंत्रालय का 'कृषि दर्शन' कार्यक्रम 2 मई, 2005 से शुरू हुआ। पहला समाचार बुलेटिन 11 फरवरी, 1990 को दिखाया गया। 1 अप्रैल, 2000 से राजस्थानी का समाचार बुलेटिन शुरू हुआ। 23 जुलाई, 1993 को, महेन्द्र सुराणा की प्रभावी एंकरिंग में शुरू 'प्रश्नोत्तरी को, 2003 में अधिकतम दिखाई जाने वाली कार्यक्रम श्रृंखला के रूप में, 'लिम्का बुक आॅफ रिकार्ड्स में स्थान मिला। लेखक को कृषकों के पाले से कृषि पत्रकारिता और टीवी एंकरिंग के लिए केन्द्रीय हिन्दी संस्थान का 'आत्माराम पुरस्कार (2005) राष्ट्रपति ने प्रदान किया।

-डॉ. महेन्द्र मधुप
यह लेखक के अपने विचार हैं।

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