विकराल होती जा रही है पेयजल समस्या
आज लगभग 4-4 अरब लोग पीने के साफ पानी से महरूम
दुनिया में पेयजल की समस्या दिनों दिन विकराल होती चली जा रही है।
दुनिया में पेयजल की समस्या दिनों दिन विकराल होती चली जा रही है। इसकी भयावहता का सबूत यह है कि दुनिया में आज लगभग 4-4 अरब लोग पीने के साफ पानी से महरूम हैं। यह भीषण खतरे का संकेत है। स्विस फेडरल इंस्टीट्यूट आफ एक्वाटिक साइन्स एण्ड टेक्नोलाजी के अध्ययन कर्ता एस्टर ग्रीनबुड की मानें तो यह स्थिति बेहद भयावह और अस्वीकार्य है कि दुनिया में इतनी बड़ी आबादी की पीने के साफ पानी तक पहुंच नहीं है। इन हालात को तत्काल बदले जाने की जरूरत है। विडम्बना यह है कि इसके बावजूद दुनिया की सरकारें पेयजल को बचाने और जल संचय के प्रति क्यों गंभीर नहीं हैं, यह समझ से परे है। जबकि संयुक्त राष्ट्र बरसों से चेतावनी दे रहा है कि जल संकट समूची दुनिया के लिए एक बहुत बड़ी समस्या बन जाएगा और अगर अभी से पानी की बढ़ती बर्बादी पर अंकुश नहीं लगाया गया तथा जल संरक्षण के उपाय नहीं किए गए, तो हालात और खराब हो जाएंगे जिसकी भरपायी असंभव हो जाएगी।
अब यह स्पष्ट है कि दुनिया अपने बुनियादी लक्ष्यों तक को पाने के मामले में बहुत पीछे है। यह अच्छे संकेत नहीं हैं। इन हालातों में 2015 में संयुक्त राष्ट्र का मानव कल्याण में सुधार के लिए सतत विकास लक्ष्य के तहत सभी के लिए 2030 तक सुरक्षित और किफायती पेयजल की आपूर्ति सपना ही रहेगा। संयुक्त राष्ट्र की मानें तो साफ पानी की पहुंच से दूर देशों के मामले में दक्षिण एशिया शीर्ष पर है जहां 1200 मिलियन लोग इस समस्या से जूझ रहे हैं, वहीं उप सहारा अफ्रीकी देशों के 1000 मिलियन, दक्षिण पूर्व एशिया के 500 मिलियन और लैटिन अमेरिकी देशों के 400 मिलियन लोग आज भी साफ पानी से महरूम हैं। यह पानी के मामले में दुनिया की शर्मनाक स्थिति है। हकीकत यह है कि इन क्षेत्रों में पानी में दूषित पदार्थों की मौजूदगी सबसे बड़ी समस्या है। गौर करने वाली बात यह है कि दुनिया में आज हालत यह है कि लगभग 61 फीसदी आबादी एशिया में साफ पानी के संकट से जूझ रही है। जहां तक भारत का सवाल है, यहां की 35 मिलियन से भी ज्यादा आबादी साफ पानी से दूर है। नीति आयोग ने तो यह तादाद 60 करोड़ से भी ज्यादा बताई है।
देश के दूरदराज के और ग्रामीण क्षेत्रों की बात तो दीगर है, देश की राजधानी दिल्ली के लोग पीने के पानी के लिए तरस रहे हैं। जिसके पास घर में वाटर टैंक बना है वह अपना टैंक और जिनके पास पानी स्टोर करने का संसाधन नहीं है, वे ड्रम, बाल्टियों में जितना पानी भर सकते हैं, उतना भर लेते हैं। थोड़ा - थोड़ा करके पानी इस्तेमाल करते हैं। लोगों का कहना है कि बाकी पीने के लिए बोतलबंद पानी खरीदना पड़ता है। एक अनुमान के मुताबिक और दिल्ली जल बोर्ड द्वारा विधानसभा में पेश आंकड़ों के अनुसार दिल्ली में तकरीबन 22,000 से ज्यादा अवैध सबमर्सिबल चल रहे हैं। इसके चलते दिल्ली के कई इलाकों में भूजल स्तर नीचे चला गया है। इस समस्या को देखते हुए एनजीटी भी दिल्ली सरकार और दिल्ली प्राधिकरण से लुप्त हो चुके जल निकायों की बहाली के तात्कालिक उपाय करने का निर्देश दे चुकी है।
जरूरत है विलुप्त हो चुके प्राकृतिक जल संसाधनों को पुनर्जीवित करने की और तालाब, पोखर समेत पारंपरिक जल स्रोतों को बचाने की। फिर सरकारी संस्थाओं, निजी प्रतिष्ठानों, आवासीय समितियों व नागरिकों द्वारा वर्षा जल संचयन के उपायों को अनिवार्य किए जाने और जल की बर्बादी पर अंकुश से जल संकट में काफी हद तक राहत मिल सकती है। इस हेतु जनजागरण बेहद जरूरी है। केंद्रीय भूजल बोर्ड की ताजा रिपोर्ट ने दिल्ली में बढ़ते जल संकट की जो तस्वीर पेश की है, वह जहां गंभीर खतरे का संकेत है, वहीं वह चेतावनी भी है कि अब भी समय है संभल जाओ। रिपोर्ट कहती है कि राजधानी में 34 में से 14 इलाके ऐसे हैं, जहां सालभर में जितना भूजल संचयन होता है, उससे ज्यादा निकाल लिया जाता है।
तात्पर्य यह कि भूजल निकासी की दर 100-77 फीसदी रही है। दिल्ली के इन 34 इलाकों में से सिर्फ 14 को अति दोहित क्षेत्र, 13 को गंभीर रूप से दोहित क्षेत्र, 2 को अर्द्ध गंभीर क्षेत्र में शामिल किया गया है। जबकि केवल 5 इलाके ऐसे हैं, जो सुरक्षित श्रेणी में शामिल हैं। घनी आबादी वाले इलाके भूजल के अत्यधिक दोहन और जल प्रदूषण के मामले में शीर्ष पर हैं। यह जगजाहिर है कि जल का हमारे जीवन पर प्रत्यक्ष तथा परोक्ष रूप से प्रभाव पड़ता है। यह भी कि जल संकट से एक ओर कृषि उत्पादकता प्रभावित हो रही है, वहीं दूसरी ओर जैव विविधता, खाद्य सुरक्षा और मानव स्वास्थ्य पर भी खतरा बढ़ता जा रहा है। आखिरकार इस वैश्विक समस्या के लिए जिम्मेदार कौन है? जाहिर है इसके पीछे मानवीय गतिविधियां जिम्मेदार हैं, जिसमें कहीं न कहीं उसके लोभ, स्वार्थ और भौतिकवादी जीवनशैली की अहम भूमिका है। वैश्विक स्तर पर देखें तो अभी तक यह स्थिति थी कि दुनिया में दो अरब लोगों को यानी 26 फीसदी आबादी को सुरक्षित पेयजल उपलब्ध नहीं था। जलवायु परिवर्तन के प्रभाव के चलते हालात और खराब होने की आशंका है।
-ज्ञानेन्द्र रावत
यह लेखक के अपने विचार हैं।
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