आईपीएल का समुत्साह सब पर भारी

इंडियन प्रीमियर लीग की अट्ठारहवीं प्रतियोगिता थी

आईपीएल का समुत्साह सब पर भारी

पंजाब किंग्स और रॉयल चैलेंजर्स बेंगलोर के बीच 3 जून को अहमदाबाद में खेली गई निर्णायक प्रतियोगिता में उतार-चढ़ावों के पलों से भरे वातावरण को भाग्य ने रॉयल चैलेंजर्स की झोली में डाल दिया।

आईपीएल को लेकर व्यक्तिगत रूप में अनिच्छुक होकर भी इसकी इस वर्ष की अंतिम व निर्णायक बीस-बीस ओवरों की प्रतियोगिता के बारे में अनेक कारणों से लिखने को विवश हुआ हूं। यह इंडियन प्रीमियर लीग की अट्ठारहवीं प्रतियोगिता थी। पंजाब किंग्स और रॉयल चैलेंजर्स बेंगलोर के बीच 3 जून को अहमदाबाद में खेली गई निर्णायक प्रतियोगिता में उतार-चढ़ावों के पलों से भरे वातावरण को भाग्य ने रॉयल चैलेंजर्स की झोली में डाल दिया। टॉस पंजाब ने जीता। पहले क्षेत्ररक्षण का निर्णय लिया। यह निर्णय सफल भी रहा जब पंजाबी दल ने बेंगलोर को मात्र 190 रन ही बनाने दिए। इस निर्णायक क्रिकेट क्रीड़ा की पहली ही गेंद से पलड़ा तो पंजाब का भारी दिखाई दे रहा था, लेकिन अंत में भाग्य ने साथ बेंगलोर का दिया। पंजाब मात्र छह रन नहीं बना पाई और पूरी दुनिया की मीडिया ने विजयी दल बेंगलोर के लगभग हर छोटे-बड़े पहलू को विस्तारपूर्वक बढ़ा-चढ़ाकर प्रस्तुत करना शुरू कर दिया। 

बेंगलोर दल के प्रमुख रजत पाटीदार हैं, लेकिन विजयी उत्सव आरंभ होते ही सभी क्रिकेटीय विश्लेषण विराट कोहली को केंद्र में रखकर होने लगे। तीस गेंद में अविजित इकसठ रन बनाने वाले पंजाब के शशांक सिंह के योगदान को भुला दिया गया, जबकि दो गेंदें और होतीं तो विजय पंजाब की झोली में थी। अंतिम ओवर में हेजलवुड की गेंदों को जिस प्रकार शशांक सिंह ने लंबे-लंबे छक्कों के लिए भेजा, उससे आस्ट्रेलियाई मूल के हेजलवुड एकदम बौने नजर आने लगे थे। एक लाख से अधिक दर्शकों के सामने दोनों ही दलों की विजयी महत्वाकांक्षायें आसमान छू रही थीं। ऑपरेशन सिंदूर के सम्मान में इस वर्ष की आईपीएल प्रतियोगिता तब बीच में ही रोक देनी पड़ी थी, जब भारत-पाक के बीच युद्ध जैसे हालात हो गए थे। तब भी पंजाब की एक प्रतिस्पर्द्धा धर्मशाला के मैदान में बीच में ही रोक देनी पड़ी थी, जब पंजाबियों का पलड़ा भारी था और निश्चित था कि वे उसी प्रतिस्पर्द्धा में विजित होंगे। बाईस मार्च से आरंभ हुई आईपीएल प्रतियोगिता दो महीने बारह दिन तक चली। दुनिया की सबसे लोकप्रिय, व्यवसायप्रिय और धीरे-धीरे सभी वैश्विक खेल प्रतियोगिताओं का अधिक्रमण कर रही आईपीएल ने अट्ठारह वर्षों की लगभग दो दशकीय अवधि में क्रिकेट को सबसे बड़ा खेल बना दिया है। 

लगभग दो दशक पहले अमेरिका के नेतृत्व में अमरीका और यूरोपीय देशों में फुटबाल और टेनिस, इन दो खेलों के ही बड़े आयोजन हुआ करते थे। पूरी दुनिया का मीडिया, लोग और व्यावसायिक गतिविधियां भी इन्हीं दो खेलों के साथ प्रमुखता से जुड़ी हुई थीं। लेकिन आज दो दशक बाद, क्रिकेट ने सभी खेलों को पीछे छोड़ दिया है। भारत में तो बच्चा-बच्चा और क्रिकेट के खेल-ज्ञान से अपरिचित बड़े-बूढ़े भी क्रिकेट के प्रति समर्पित हैं। इसीलिए ना केवल क्रिकेट मैदानों पर बल्कि टेलीविजन, मोबाइल पर आईपीएल देखने वालों की संख्या हर वर्ष करोड़ों के आंकड़े छू रही है। आज आईपीएल भारत सरकार और भारतीय क्रिकेट बोर्ड के लिए कई स्तर पर धनार्जन करने का माध्यम बना हुआ है। देशी-विदेशी सभी क्रिकेट खिलाड़ी इस प्रतियोगिता में उपस्थित होते हैं। यहां तक कि सेवानिवृत्त, प्रसिद्ध और अपने खेल से विशिष्ट सम्मान प्राप्त पुराने देशी-विदेशी क्रिकेट खिलाड़ी भी किसी न किसी भूमिका के साथ आईपीएल के विभिन्न दलों के साथ जुड़े हुए हैं। आईपीएल आरंभ होने से लेकर समापन तक पूरी दुनिया में क्रिकेट प्रतियोगिताएं नहीं होतीं। होती भी हैं तो उन देशों के बीच में जिनके खिलाड़ियों को आईपीएल दलों के स्वामियों या स्वामिनियों द्वारा अपने-अपने दलों के लिए खरीदा नहीं जाता।आईपीएल की क्रिकेटीय प्रतियोगिताओं के माध्यम से पूरे भारत, यहां के समाज और यहां की व्यक्तिगत भावनाओं को समझने का अवसर भी उन्हें प्राप्त हुआ। क्रिकेट को कई तरह की प्रगतियों से जोड़ने वाले आईपीएल ने गरीब खिलाड़ियों को धन, प्रतिष्ठा और सम्मान प्राप्त करने का विशाल मंच भी प्रदान किया है। 

समग्रता में देखें तो आईपीएल ने डेढ़ दशक पहले जन्मी भारतीय पीढ़ी को पूरी तरह अपने आकर्षण में बांध लिया है और उनमें ये विश्वास स्थापित किया है कि आईपीएल में खिलाड़ी बनकर या इसके ऑनलाइन माध्यम से जुड़कर कुछ न कुछ लाभार्जन तो किया ही जा सकता है। आईपीएल 2025 की समापन, अंतिम व निर्णायक प्रतिस्पर्द्धा के वातावरण को देख सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि यह लीग आगामी वर्षों में न केवल अपना उत्तरोत्तर विकास करेगी, बल्कि अन्य खेलों में भी ऐसी ही लीग बनने और उनके धनार्जन, प्रतिष्ठा, मान-सम्मान व लोगों के साथ जुड़ने का मार्ग भी प्रशस्त करेगी।

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-विकेश कुमार बडोला
यह लेखक के अपने विचार हैं।

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