जानें राज काज में क्या है खास
शहर भाजपा की तबीयत नासाज
सूबे में पिछले दस दिनों से डिजायर को लेकर काफी चर्चा है।
चर्चा में डिजायर :
सूबे में पिछले दस दिनों से डिजायर को लेकर काफी चर्चा है। चर्चा भी सरदार पटेल मार्ग स्थित बंगला नंबर 51 में बने भगवा वालों के ठिकाने से शुरू होकर सचिवालय होते हुए दिल्ली तक पहुंच गई। दिल्ली वाले भी समझ नहीं पा रहे कि आखिर माजरा क्या है। राज का काज करने वाले भी लंच केबिनों में बतियाते हैं कि हार्ड कोर वर्कर्स पर डिजायर भारी पड़े बिना नहीं रहती। सुशासन का दावा हर सरकार और संगठन में गूंजता जरूर है, मगर उसमें डिजायर सिस्टम आड़े आ ही जाती है। चर्चा है कि पिछले दिनों आउट हुई पिंकसिटी की वर्किंग कमेटी की लिस्ट को सही मानें, तो काम के आधार पर केवल चौथाई वर्कर्स को ही तवज्जो मिलती है, बाकी तो डिजायर पर ही टिकते हैं। अब इस डिजायर के पीछे के राज को समझने वाले समझ गए, ना समझे वो अनाड़ी है।
मजा किरकिरा खाकी का :
खाकी वाले बड़े साहब लोगों का मजा आए दिन किरकिरा हुए बिना नहीं रहता। कभी बड़े लोगों की बिना वजह की डांट से तो कभी अपने ही लोगों के कारनामों के कारण बहुत कुछ सुनना पडता है। अब देखो न, एसआई पेपर लीक प्रकरण में सबकुछ सही चल रहा था, मगर गुजरे जमाने के बड़े ठिकाने पर तैनात यदुवंशी राजकुमार की वजह से सारा जायका बिगड़ गया। राज का काज करने वाले लंच केबिनों में बतियाते हैं कि खाकी वाले साहब लोगों की नजरें तो जमीन से जुड़े बड़े मामलों पर टिकी थीं, मगर पिछले दिनों हुई घटनाओं ने उन पर ब्रेक लगा दिया। खाकी वाले साहब लोगों ने भी चुप्पी साधने में ही अपनी भलाई समझी, चूंकि इन दिनों मजा किरकिरा हुए बिना नहीं रहता। पीएचक्यू में भी खुसरफुसर है कि बेचारों को अपनों की वजह से ही अपनी ऐसी हालत से पहली बार सामना करना पड़ रहा है।
शहर भाजपा की तबीयत नासाज :
इन दिनों पिंकसिटी में भगवा की हालत नासाज है। सुधार के लिए सभी तरह के डॉक्टर भी आए, मगर तबीयत है कि ठीक होने का नाम ही नहीं लेती। दिल्ली वाले बड़े डॉक्टरों की राय पर दवा-दारू का इंतजाम भी किया गया, मगर शहर की नुमाइंदी कर रही मोहतरमा हाईडोज का बहाना बना कर आड़े आ गईं, सो सुमेरपुर वाले भाई साहब को भी बैक होना पड़ा। सरदार पटेल मार्ग स्थित बंगला नंबर 51 में बने भगवा वालों के ठिकाने पर आने वाले वर्कर्स में खुसरफुसर है कि बीमारी ज्यादा गंभीर नहीं है, मगर ऐलोपैथिक और होम्योपैथिक डॉक्टरों के बीच आयुर्वेद वाले वैद्यजी बीच में कूद पड़े। यानी कि तीनों गुट अपने-अपने हिसाब से इलाज करना चाहते हैं, इसलिए किसी की भी दवा काम नहीं कर रही।
अब सिर्फ घेवर का सहारा :
यह बात सौ फीसदी सही है कि समय किसी का एक सा नहीं होता, कब बदल जाए, पता नहीं चलता। नेताओं के साथ ही अफसरों का भी समय बदले बिना नहीं रहता। उनकी राज से पटरी बैठ जाए, तो रोजाना मिठाई खाए बिना पार नहीं पड़ती और नहीं बैठे, तो फिर ऊपर वाला ही मालिक है। अब देखो न इन दिनों एक साहब की राज से पटरी नहीं बैठी, तो उनको पॉवरलेस कर दिया। उनसे ज्यादा पॉवर तो सैकण्ड लेवल वाले साहब के पास है। अब साहब भी समझदार हैं, सो आने वालों को घेवर खिलाकर टाइमपास करने में ही अपनी भलाई समझते हैं। साहब के अच्छी तरह समझ में आ गया कि समय बड़ा बलवान है, समय-समय की बात, कोई समय दिन बड़ा तो कोई समय रात।
एक जुमला यह भी :
सूबे में इन दिनों एक जुमला जोरों पर है। जुमला भी छोटा-मोटा नहीं बल्कि एक-दूसरे के कसीदे पढ़ने को लेकर है। जुमला है कि भगवा वालों के साथ ही हाथ वाले भाई लोगों ने ताव-ताव में अपने आकाओं के इतने कसीदे पढ़ दिए कि अब बेचारे अपना मुंह छिपाने के लिए जगह ढूंढते फिर रहे हैं।
-एल. एल. शर्मा
(यह लेखक के अपने विचार हैं)

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