जानें राज काज में क्या है खास
पैगाम से परेशान
इन दिनों सूबे की पॉलिटिक्स में सब कुछ ठीक नहीं है।
इट इज पॉलिटिक्स :
इन दिनों सूबे की पॉलिटिक्स में सब कुछ ठीक नहीं है। हर तरफ गड़बड़ ही गड़बड़ है। अब देखो न, सात जन्म तक एक साथ जीने और मरने की कसमें खाने वाले मीनेश वंशज डॉक्टर साहब और किसान पुत्र बजरंग बली के हमनाम भाई साहब के बीच पिछले दिनों जो कुछ हुआ, वह किसी से छुपा नहीं है। दोनों में इतना जोश दिखा कि लेन-देन को लेकर एक-दूसरे की पोल खोलते समय न तो आगा देखा और नहीं पीछा। चूंकि मामला श्रेय लेने से ताल्लुक रखता है। एक-दूसरे की उतारने के बाद, जब दूसरे दिन गले मिले, तो पब्लिक भी भौंचक्की हुए बिना नहीं रही। राज का काज करने वाले में चर्चा है कि सुलह कराने वालों का भी दिन का चैन और रातों की नींद उड़ी हुई थी कि कहीं दोनों में से किसी एक की भी जुबान फिसल गई तो, कहीं के भी नहीं रहेंगे। अब इस पॉलिटिक्स के सारे ड्रामे को समझने वाले समझ गए, ना समझे वो अनाड़ी है।
मजाक पड़ा भारी :
मजाक तो मजाक ही होता है, लेकिन कभी-कभी किसी को भारी पड़ जाता है। अब देखो न, राज के तीसरे नंबर के रत्न के बर्थ डे की तैयारियों को लेकर हुई बैठक में एक पंडित जी को किसान पुत्र का नाम लेकर मजाक करना इतना भारी पड़ गया, जिसकी उन्हें कल्पना भी नहीं थी। पिछले दिनों देश के सबसे छोटे जिले को लेकर चर्चा में आई ग्राम पंचायत में हुई बैठक में एक मंडल अध्यक्ष की मजाकिए लहजे में किसान पुत्रों को लेकर जुबान फिसल गई। तो बगल में बैठे किसान पुत्रों की आंखें लाल हुए बिना नहीं रह सकीं। अब दिन में आंखें लाल होती हंै, तो दो-दो हाथ हुए बिना भी नहीं रहते, सो किसान पुत्रों ने पंडित जी पर दो-दो हाथ करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। और तो और बीच बचाव करने आए नेताजी पर भी वर्कर्स ने अपने हाथ साफ करने में कतई कंजूसी नहीं की।
पैगाम से परेशान :
हाथ वाले राजकुमार और वेटिंग पीएम के एक पैगाम से कई नेताओं की दिन का चैन और रातों की नींद उड़ी हुई है। उनके चेहरों से तो साफ लग रहा है कि इस पैगाम से उनकी नैया पार होती नजर नहीं आ रही। अब बेचारे मजबूरी में चुनाव आयोग की किताबों की तलाश में पसीने बहा रहे हैं। हांफते हुए दिन में दो बार इलेक्शन ऑफिसर की सीढ़िया चढ़ रहे हैं। राजकुमार ने भी उनके साथ ऐसी चोट की है कि सपने में भी नहीं सोच पा रहे। पिछले दिनों राजकुमार का पैगाम आया कि सूबे में शहरों और गांवों की सरकारों के चुनावों में टिकट की चाहत रखने वाले पहले एक पर्चा भरकर भेजें, जिसमें पचास सवाल सवाल भी बडेÞ रोचक है। टिकिट की चाहत में एक महीने से महंगी गाडियों में हजारों का तेल जला चुके नेताओं को राजकुमार के सवालों के जवाब के लिए अपने ही बूथ की जानकारी के लिए कईयों के हाथ-पैर जोड़ने पड रहे है। चूंकि मामला सीधा राजकुमार से ताल्लुक रखता है और जवाब भी गांधी जी की जयंती तक भेजना है।
वे आए और चले गए :
इन दिनों सूबे में चल रहे सियासी संकट को लेकर कई भाई लोगों के एसी कमरों में भी पसीने आ रहे हैं। वे दिन-रात दुबले हो रहे हैं। उनके चेहरों पर चिंता की लकीरे साफ दिखाई देने लगी है। गुटबाजी में फंसे भगवा वाले भाई लोगों के समझ में नहीं आ रहा कि माजरा क्या है। सरदार पटेल मार्ग पर स्थित बंगला नंबर 51 में बने भगवा वालों के ठिकाने पर षनि को चर्चा थी कि दोनों गुजराती बंधुओं के दोनों संदेषवाहक आए और चले गए। भाई लोगों ने सूंघासांधी भी खूब की, मगर बंद कमरों में क्या हुआ, किसी को पता नहीं चला। पन्द्रह दिन पहले तक उछलकूद कर रहे एक खेमे के लोगों को सांप सूंघ गया। अब वे कानाफूसी कर रहे हैं कि जब वैष्य पुत्र राधा के मोहन को कुछ करना ही नहीं था, तो हवा गरम करने के पीछे कोई ना कोई राज जरूर है। अब उनके अच्छी तरह समझ में आ गया कि राजनीति में जो होता है, वह दिखता नहीं है और जो दिखता है, वह होता नहीं है। इसलिए दोनों वाहक आए और संदेशा देकर चले गए।
-एल. एल. शर्मा
(यह लेखक के अपने विचार हैं)

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