मां का दूध : जीवन का पहला अमृत
भावनात्मक जुड़ाव
भारतीय संस्कृति में मां को देवी का दर्जा दिया गया है।
भारतीय संस्कृति में मां को देवी का दर्जा दिया गया है और मां के दूध को अमृत माना गया है। प्रत्येक वर्ष अगस्त माह के प्रथम सप्ताह में मनाया जाने वाला विश्व स्तनपान सप्ताह इसी महत्वपूर्ण संदेश को घर-घर तक पहुंचाने का एक सार्थक प्रयास है। भारत जैसे विकासशील देश में, जहां आज भी शिशु मृत्यु दर चिंता का विषय है, वहां स्तनपान के प्रति जागरूकता लाना न केवल आवश्यक है बल्कि अत्यंत महत्वपूर्ण भी है। हमारे देश की यह विडंबना है कि जिस परंपरा को हमारे पूर्वजों ने सदियों से अपनाया है, आज उसी को लेकर हमें जागरूकता अभियान चलाना पड़ रहा है। आधुनिकता की अंधी दौड़ में हमने अपनी सबसे बहुमूल्य विरासत को खोने का खतरा मोल ले लिया है।
मां का दूध सर्वोत्तम :
भारत में स्तनपान की परंपरा सदियों पुरानी है और हमारे धर्मग्रंथों में भी मां के दूध की महत्ता का विस्तृत वर्णन मिलता है। आयुर्वेद में तो स्पष्ट रूप से कहा गया है कि नवजात शिशु के लिए मां का दूध सर्वोत्तम आहार है। महर्षि चरक और सुश्रुत ने अपने ग्रंथों में इसका वैज्ञानिक आधार भी दिया है। परंतु आज की स्थिति यह है कि आधुनिकता की दौड़ में कहीं न कहीं हम इस प्राचीन ज्ञान को भूलते जा रहे हैं। बाजार में उपलब्ध कृत्रिम दूध के आकर्षक विज्ञापन और पश्चिमी जीवनशैली की नकल के कारण कई माताएं स्तनपान के महत्व को समझ नहीं पा रहीं। यह एक गंभीर सामाजिक समस्या है जिसका समाधान तत्काल आवश्यक है।
सभी पोषक तत्व मौजूद :
हमें समझना होगा कि विज्ञान और तकनीक की प्रगति के बावजूद प्रकृति द्वारा दिया गया यह उपहार अभी भी अतुलनीय है। चिकित्सा विज्ञान के अनुसार मां का दूध नवजात शिशु के लिए सबसे उत्तम और संपूर्ण आहार है। इसमें वे सभी पोषक तत्व मौजूद होते हैं, जो एक शिशु के समुचित विकास के लिए आवश्यक हैं। मां के दूध में प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, वसा, विटामिन और खनिज लवण सही अनुपात में पाए जाते हैं। इसके अतिरिक्त इसमें एंटीबॉडी भी होते हैं, जो शिशु को विभिन्न संक्रमणों से बचाते हैं। यही कारण है कि स्तनपान करने वाले बच्चे कम बीमार पड़ते हैं और उनका शारीरिक व मानसिक विकास बेहतर होता है। मां का दूध न केवल शिशु को पूर्ण पोषण प्रदान करता है, बल्कि उसे कुपोषण से भी बचाता है।
ठोस कदम उठाएं :
अतिसार या दस्त भारतीय शिशुओं में होने वाली एक आम समस्या है और स्वच्छता की कमी तथा दूषित पानी के कारण यह समस्या और भी गंभीर हो जाती है। भारत में हर साल हजारों बच्चे डायरिया के कारण अपनी जान गंवाते हैं, जो कि एक राष्ट्रीय त्रासदी है। मां का दूध पूर्णत: स्वच्छ और जीवाणु रहित होता है तथा इसमें प्राकृतिक रूप से संक्रमण रोधी तत्व पाए जाते हैं जो शिशु को अतिसार जैसी बीमारियों से बचाते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार स्तनपान करने वाले बच्चों में दस्त की समस्या कम देखी जाती है। यह एक ऐसा तथ्य है जिसे नकारा नहीं जा सकता। यदि हम केवल स्तनपान को बढ़ावा देकर भी हजारों बच्चों की जान बचा सकते हैं तो यह हमारा नैतिक दायित्व बनता है कि हम इस दिशा में ठोस कदम उठाएं।
जन्म के तुरंत बाद :
यूनिसेफ के अनुसार यदि सभी शिशुओं को केवल स्तनपान कराया जाए, तो प्रतिवर्ष लाखों शिशुओं की जान बचाई जा सकती है। यह कोई छोटा आंकड़ा नहीं है बल्कि करोड़ों परिवारों की खुशी का सवाल है। हमें समझना होगा कि शिशु मृत्यु दर कम करना केवल सरकार की जिम्मेदारी नहीं है बल्कि पूरे समाज का दायित्व है। विश्व स्वास्थ्य संगठन और भारतीय बाल रोग विशेषज्ञों की स्पष्ट सलाह है कि शिशु को जन्म के तुरंत बाद से छह माह तक केवल मां का दूध देना चाहिए। इस दौरान पानी तक की आवश्यकता नहीं होती क्योंकि मां के दूध में पर्याप्त मात्रा में पानी होता है। छह माह के बाद स्तनपान जारी रखते हुए ऊपरी आहार शुरू करना चाहिए और दो साल तक स्तनपान जारी रखने की सलाह दी जाती है। परंतु भारतीय समाज में अभी भी कई भ्रांतियां प्रचलित हैं। कुछ माताएं सोचती हैं कि पहले कुछ दिनों का गाढ़ा पीला दूध हानिकारक होता है, जबकि यह कोलोस्ट्रम शिशु के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होता है।
भावनात्मक जुड़ाव :
चिकित्सा अनुसंधान बताते हैं कि स्तनपान कराने वाली माताओं में स्तन कैंसर और डिम्बग्रंथि के कैंसर का जोखिम कम हो जाता है। इसके अलावा यह मां और बच्चे के बीच भावनात्मक जुड़ाव बढ़ाता है, जो बच्चे के मानसिक विकास के लिए अत्यंत आवश्यक है। यह परिवार की आर्थिक स्थिति पर भी सकारात्मक प्रभाव डालता है क्योंकि कृत्रिम दूध खरीदने की आवश्यकता नहीं होती। सरकार को स्तनपान को बढ़ावा देने के लिए व्यापक और प्रभावी कार्यक्रम चलाने चाहिए। प्रकृति ने मां के दूध के रूप में शिशु के लिए सबसे उत्तम आहार का प्रावधान किया है। हमारी जिम्मेदारी है कि हम इस प्राकृतिक वरदान का सदुपयोग करें और आने वाली पीढ़ियों को स्वस्थ बनाने में अपना योगदान दें।
-देवेन्द्रराज सुथार
यह लेखक के अपने विचार हैं।

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