मेडिकल शिक्षा के ढांचे में बदलाव जरूरी

दक्षिणी राज्यों में 48 फीसदी चिकित्सा शिक्षण संस्थान हैं

मेडिकल शिक्षा के ढांचे में बदलाव जरूरी

चिकित्सा शिक्षा के क्षेत्र में एक विसंगति और है। देश के उत्तरी राज्यों में आबादी अधिक है, उसके अनुरूप चिकित्सा शिक्षा के संस्थान कम हैं। इससे उलट कम आबादी वाले दक्षिणी राज्यों में 48 फीसदी चिकित्सा शिक्षण संस्थान हैं।

चिकित्सा शिक्षा के क्षेत्र में एक विसंगति और है। देश के उत्तरी राज्यों में आबादी अधिक है, उसके अनुरूप चिकित्सा शिक्षा के संस्थान कम हैं। इससे उलट कम आबादी वाले दक्षिणी राज्यों में 48 फीसदी चिकित्सा शिक्षण संस्थान हैं। फिर देश में मौजूदा आरक्षण व्यवस्था की वजह से आधी से अधिक सीटें भर जाती हैं। ऐसे में नब्बे फीसदी से अधिक अंक पाने वाले प्रतिभाशाली छात्रों का निराश होना स्वाभाविक है। क्रेन-रूस के बीच चल रहा युद्ध अभी थमने का नाम नहीं ले रहा। कीव, खारकीव, पिसोचिन, सूमी आदि क्षेत्रों में फंसे भारतीय नागरिकों एवं मेडिकल छात्रों की सुरक्षित स्वदेश वापसी के प्रयास जारी हैं। युद्ध जनित चिंताओं और चुनौतियों बीच, हमारे देश के समक्ष मेडिकल शिक्षा के मौजूदा बुनियादी ढांचे में सुधार की जरूरतों ने भी अपनी ओर ध्यान खींचा है। जिन पर केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय, चिकित्सा आयोग और नीति आयोग को मिलकर गौर करना चाहिए। भले ही फारेन मेडिकल ग्रेजुएट लाइसेंसिंग एक्ट में संशोधन ही क्यों ना करना पड़े। युद्ध की वजह से यूक्रेन से लौटे बीस हजार से अधिक मेडिकल छात्रों के सामने अपनी पढ़ाई जारी रखने का संकट उठ खड़ा हुआ है। इस क्रम में सरकार की यह घोषणा स्वागत योग्य है कि उसने मेडिकल छात्रों से इंटर्नशिप के लिए कोई शुल्क नहीं लेने और इस दौरान उन्हें नियमानुसार भत्ते देने का फैसला लिया है। लेकिन अभी जिनकी पढ़ाई अधूरी है, उनका समय बेकार ना चला जाए, उनके बारे में कोई फैसला नहीं लिया गया है। जो कि अपेक्षित है। इस मामले में इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने सरकार से मांग की है कि वह ऐसे मेडिकल छात्रों की शिक्षा को जारी रखने के लिए देश के मेडिकल कॉलेजों में अतिरिक्त सीटों और परीक्षाएं कराने के वैकल्पिक इंतजाम करें। इस क्रम में कोरोना महामारी दौरान चीन से अपनी मेडिकल पढ़ाई बीच में छोड़कर स्वदेश आए उन छात्रों के बारे में भी कोई फैसला लेना चाहिए जिन्हें चीन सरकार ने अपने यहां आने की अनुमति अब तक नहीं दी है।

थोड़ी चर्चा, देश के मौजूदा चिकित्सा शिक्षा के ढांचे पर गौर कर लें। देश को आजाद हुए सत्तर साल से अधिक हो गए। आबादी बढ़ने के साथ-साथ हमारे यहां भी चिकित्सा शिक्षा और चिकित्सालयों और चिकित्सकों की मांग भी बढ़ गई। लेकिन इसके अनुपात में बुनियादी ढांचे में अपेक्षित बदलाव नहीं लाया जा सका है। इस पर सरकार का नियंत्रण होना चाहिए था। लेकिन उलटा हो रहा है। इस क्षेत्र को मुनाफे का सौदा बनाने में नेताओं, पूर्व प्रशासनिक अधिकारियों एवं समृद्ध तबके से जुड़े लोगों ने ऐसा समानांतर तंत्र विकसित कर लिया जिसके तय मापदंडों के अनुसार सरकार को ही नीति बनाने पर विवश कर दिया है। आज पहली जरूरत मेडिकल शिक्षा को इस माफिया से मुक्ति दिलाने की है। ताकि इस देश में मध्यम और गरीब तबके के प्रतिभाशाली छात्र सस्ती मेडिकल शिक्षा हासिल कर सकें। देश से प्रतिभा पलायन और पूंजी के बाहर जाने पर रोक लग सके।

चिकित्सा शिक्षा के क्षेत्र में एक विसंगति और है। देश के उत्तरी राज्यों में आबादी अधिक है, उसके अनुरूप चिकित्सा शिक्षा के संस्थान कम हैं। इससे उलट कम आबादी वाले दक्षिणी राज्यों में अड़तालीस फीसदी चिकित्सा शिक्षण संस्थान हैं। फिर देश में मौजूदा आरक्षण व्यवस्था की वजह से आधी से अधिक सीटें भर जाती हैं। ऐसे में नब्बे फीसदी से अधिक अंक पाने वाले प्रतिभाशाली छात्रों का निराश होना स्वाभाविक है। ऐसे में उनका विदेशों में जाकर मेडिकल शिक्षा ग्रहण करने की विवशता भी एक बड़ा कारण है। यही मुख्य वजह है कि आज यूक्रेन में मेडिकल शिक्षा के लिए उत्तर  भारत के बिहार, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, दिल्ली, हरियाणा, झारखंड, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और हिमाचल जैसे हिंदी प्रांतों के छात्र अधिक जा रहे हैं। राजस्थान से औसतन हर साल ढाई हजार छात्र विदेश जाते हैं इनमें से यूक्रेन जाने वालों की संख्या एक हजार है। यूक्रेन में ही नहीं, रूस, चीन, कजाकिस्तान सहित मध्य एशियाई देशों में भी छात्र पढ़ने जा रहे हैं।

वर्ष 2021 के सरकारी आंकड़ों के अनुसार देश में कुल 595 मेडिकल कॉलेज संचालित हैं। इनमें 302 सरकारी और 218 निजी मेडिकल कॉलेज हैं। 47 डीम्ड विश्वविद्यालय, तीन केंद्रीय विश्वविद्यालय, 19 एम्स मेडिकल इंस्टीट्यूट्स हैं। इनमें 83 हजार 125 एमबीबीएस, 26 हजार 949 बीडीएस, 52 हजार 720 आयुष, 525 बीवीएससी एंड एच सीट, 542 और 313 मेडिकल और डेंटल कॉलेजों में सीट हैं। राजस्थान में अभी 26 सरकारी और प्राइवेट मेडिकल कॉलेज हैं। इनमें 15 सरकारी और 9 निजी, एक ईएसआई मेडिकल कॉलेज अलवर व जोधपुर में एम्स मेडिकल कॉलेज है। इनमें कुल 4 हजार 7 सौ पांच सीटें हैं। 15 और सरकारी मेडिकल कॉलेज सरकार के स्तर पर निर्माणाधीन हैं। तीन जिलों प्रतापगढ़, जालोर और राजसमंद में कॉलेज नहीं हैं। हर साल राजस्थान में ही एक लाख सोलह हजार पांच सौ तेरह छात्र परीक्षा देते हैं।

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सरकारी मेडिकल कॉलेजों में प्रति छात्र दो लाख रुपये प्रति वर्ष फीस है। वहीं निजी कॉलेजों में यह फीस प्रतिवर्ष दस से बीस लाख रुपये लगती है। यानी डॉक्टर बनने के लिए पचास लाख से लेकर पिचहत्तर लाख रुपये खर्च करने पड़ते हैं। जबकि विदेशों में यह फीस पचीस लाख में पूरी हो जाती है। इसमें पढ़ाई के साथ आवास और खाना-पीना भी शामिल है। फिर इन देशों में बारहवीं परीक्षा के प्राप्त अंकों के आधार पर, बिना कोई प्रतिस्पर्धी परीक्षा के प्रवेश मिल जाता है।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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