बढ़ता तापमान जिंदगी के लिए बड़ा खतरा
इंसान का चैन ही नहीं चुरा रहा, उसकी नींद भी उड़ा रहा
बीते दो दशकों में बढ़ते तापमान ने इंसान की हर साल औसतन 44 घंटे की नींद उड़ा दी है।
धरती का बढ़ता तापमान जहां पेड़ पौधों, फसलों, पशु-पक्षियों के लिए संकट का सबब बन रहा है, वह इंसान का चैन ही नहीं चुरा रहा है, उसकी नींद भी उड़ा रहा है, उसका तनाव बढ़ाने में भी अहम भूमिका निभाह रहा है, वहीं वह मां की कोख में पल रही जिंदगी के लिए भी बड़ा खतरा बनता जा रहा है। असलियत यह है कि बीते दो दशकों में बढ़ते तापमान ने इंसान की हर साल औसतन 44 घंटे की नींद उड़ा दी है। यही नहीं वह मां की कोख में पल रही जिंदगी के लिए भी बड़ा खतरा बन रहा है। दुनिया के शोध-अधययन इसके जीते-जागते सबूत हैं। अध्ययन में पाया गया कि हर साल तापमान में एक डिग्री सेल्सियस की बढ़ोतरी के कारण 10 हजार से ज्यादा लोगों ने पर्याप्त नींद की कमी महसूस की। यह स्थिति उच्च आय वाले देशों अमेरिका के अलावा एशिया महाद्वीप में अधिकाधिक मात्रा में पायी गई है। चूंकि इंसान का दिमाग गर्मी के प्रति बेहद संवेदनशील होता है, इसलिए गर्मी बढ़ने के साथ ही तनाव के तंत्र को भी जल्दी से सक्रिय कर देता है। यह स्थिति अच्छी नींद के लिए अनुकूल नहीं है, साथ ही स्वास्थ्य के लिए भी खतरनाक है।
शरीर में ज्यादा पसीना आने पर हमें अतिरिक्त पानी की जरूरत होती है। लू की स्थिति में हालात और बिगड़ जाते हैं, जिससे नींद प्रभावित होती है। इसलिए बेहतर नींद के लिए शरीर के तापमान को कम रखना बेहद जरूरी होता है। शहरी वातावरण में बढ़ती गर्मी में शरीर के तापमान को नियंत्रित करना आसान नहीं है। यह सर्वविदित सत्य है कि मां बनना एक महिला के लिए जीवन का वह सुखद अनुभव है, जिसका वर्णन असंभव है। जलवायु परिवर्तन से बढ़ती गर्मी अब गर्भवती महिलाओं के लिए जानलेवा साबित हो रही है। गौरतलब है कि गर्भवती महिलाओं के शरीर में इस दौरान कई बदलाव होते हैं। जैसे -जैसे गर्भावस्था आगे बढ़ती है, बढ़ता बच्चा लंग्स और ब्लड वैसल्स समेत शरीर के कई अंदरूनी अंगों पर दबाव डालता है। इससे गहरी सांस लेना या ब्लड फ्लो ठीक रखना मुश्किल हो जाता है। इस दौरान उनके शरीर में खून की मात्रा बढ़ जाती है, जिससे मेटाबॉलिज्म रेट बढ़ जाता है तथा शरीर में अंदरूनी गर्मी ज्यादा बढ़ जाती है। गर्मी बढ़ने से गर्भवती महिलाओं को पसीना ज्यादा आता है, जिससे डिहाईड्रेशन का खतरा बढ़ जाता है। ऐसे में चक्कर आना, बेहद थकान महसूस करना और गंभीर स्थिति में समय पूर्व प्रसव भी हो जाता है। इस वजह से वे गर्मी के प्रति काफी संवेदनशील होती हैं।
सबसे बड़ी चिंता की बात यह है कि गर्भावस्था के लिए खतरनाक गर्मी वाले दिनों के चलते प्रीटर्म डिलीवरी के मामले अब काफी बढ़ गए हैं। कारण पिछले पांच सालों में दुनिया के 90 फीसदी देशों में गर्भावस्था के लिए खतरनाक गर्म दिनों की संख्या दोगुनी हो गई है। यह केवल मौसमी बदलाव नहीं है, बल्कि यह हमारी नीतियों, हमारे ऊर्जा स्रोतों के साथ-साथ हमारी लापरवाही का नतीजा है। हकीकत में गर्म दिनों में बढ़ोतरी की अहम वजह कोयला, तेल और गैस जैसे जीवाश्म ईंधन का बहुतायत में जलना है। क्लाइमेट सेंट्रल की ताजा रिपोर्ट में साल 2020 से 2024 के बीच दुनिया के 247 देशों और 940 शहरों के तापमान के विश्लेषण में खुलासा हुआ कि औसतन हर साल ऐसे कुछ दिन होते हैं, जब तापमान अपने इतिहास के 95 फीसदी से ज्यादा होता है। ये दिन गर्भवती महिलाओं के लिए सबसे अधिक खतरनाक होते हैं। इन दिनों को ’हीट रिस्क डे’ कहा जाता है। यही नहीं हाई ब्लड प्रैशर, जेस्टेशनल डाइबिटीज, अत्याधिक थकान, अस्पताल में अचानक भर्ती करने की नौबत आ सकती है और गर्भ में ही बच्चे की मौत तक हो सकती है। यही नहीं समय पूर्व डिलीवरी जैसी स्थिति भी पैदा हो जाती है। इसके अलावा यदि गर्भवती महिला प्रदूषित हवा में सांस लेती है, तो प्रदूषित हवा में मौजूद बारीक कण गर्भवती महिला के फेफड़ों और हृदय पर गंभीर प्रभाव डालते हैं, जिससे गर्भस्थ शिशु का दिमागी विकास प्रभावित हो सकता है, जिसका असर महिला के शरीर पर जिंदगीभर बना रहता है।
अगर गर्भवती महिला के शरीर का तापमान 10 मिनट से ज्यादा 102 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा हो जाता है तो उसे हीट स्ट्रोक और हीट थकावट होने का खतरा होता है। ऐसे में गर्भवती महिला और गर्भस्थ शिशु को बचाना बेहद जरूरी होता है। गर्भवती महिला के लिए जरूरी है वह सीधी धूप से बचें, अधिक समय घर पर ही ठंडे स्थान पर रहे। कूलर व एसी का उपयोग करें। गर्म मौसम के दौरान अधिक समय आराम करें। डिहाईड्रेशन न हो, इसलिए खूब पानी पिएं, नारियल पानी और नींबू पानी का अत्याधिक इस्तेमाल करें। पौष्टिक ताजा हल्का भोजन लें, जिससे शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बनी रहे। ढीले कपड़े पहनें और जरूरी हो तो धीमी गति से चलें। मौजूदा हालात में चरम गर्मी गर्भवती महिलाओं के लिए सबसे बड़ा खतरा बन चुकी है। यदि हमें अपनी आने वाली नस्लों को सुरक्षित रखना है तो जीवाश्म ईंधन को जलाना बंद करना होगा। गर्भावस्था के दौरान एक दिन की जानलेवा गर्मी बड़ी समस्या खड़ी कर सकती है। अब भी समय है। अगर धरती को बचाना है तो जलवायु प्रणाली में हो रहे बदलावों को समझने और उसका माकूल जबाव देने के लिए सतत निगरानी बेहद जरूरी है।
-ज्ञानेन्द्र रावत
यह लेखक के अपने विचार हैं।

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