विनाश के बीज हैं व्यसन
मनुष्य को क्यों यह सब समझ नहीं आ पाता हैं ?
हम सभी इस तथ्य से वाकिफ हैं की किसी भी प्रकार के नशेबाजी की दुष्प्रवृति से व्यक्ति और समाज को असीम हानि उठानी पड़ती है।
हम सभी इस तथ्य से वाकिफ हैं की किसी भी प्रकार के नशेबाजी की दुष्प्रवृति से व्यक्ति और समाज को असीम हानि उठानी पड़ती है, स्वास्थ्य बिगड़ता है, बुद्धिबल घटता है, क्रिया शक्ति क्षीण होती है, निंदा होती है, परिवार में विक्षोभ पनपता है, बच्चे कुसंस्कारी बनते हैं। दुर्व्यसनों के इतने सारे नकारात्मक असर के बावजूद भी सभी प्राणियों में श्रेष्ठ होने का दावा करने वाले मनुष्य को क्यों यह सब समझ नहीं आ पाता हैं, अपनी बुद्धि पर बड़ा गर्व करनेवाले मनुष्य को क्या इतनी भी समझ नहीं है की उसे किस वस्तु का सेवन करना है और किससे दूर रहना है। जन साधारण के स्वास्थ्य को बर्बाद करनेवाले दुर्व्यसनों में नशा सेवन सर्वाधिक व्यापक है और उसमें भी प्रमुख्त: तंबाकू और शराब ने तो सर्वसाधारण को अपने चंगुल में इस कदर फंसाकर रखा है की पीढ़ी की पीढ़ीयां उसमें बर्बाद हो चुकी हैं।
तंबाकू एक ऐसा विषैला पदार्थ है, जो मनुष्य की प्रकृति और शारीरिक स्थिति में समाविष्ट कराए जाने पर सुखद परिणाम कभी भी उत्पन्न नहीं कर सकता, उसमें केवल हानि ही हानि है, लाभ तनिक भी नहीं। फिर भी न जाने क्यों लोग उसे खाने, पीने से लेकर सूंघने, दांतों पर रगड़ने आदि कामों से लेकर अपने धन, और स्वास्थ्य की बर्बादी ही करते चले जा रहे है। स्पष्ट है कि तंबाकू एक ऐसा विषैला पदार्थ है, जिसमें कई घातक जहर होते हैं, जैसे कि निकोटिन, कोलतार, कार्बन मोनोआॅक्साइड, कोयले की गैस आदि-आदि। इन घातक जहरीले पदार्थों के प्रभाव से तंबाकू सेवन करने वाले व्यक्ति को कैंसर, हार्टअटैक, पक्षाघात, हाथ-पैर गलना, रक्तचाप असंतुलन तथा शारीरिक कमजोरी जैसे रोग हो जाते हैं। मस्तिष्क की क्षमता शिथिल हो जाती है। स्वभाव चिड़चिड़ा हो जाता है। अनिद्रा, बेचैनी, उदासी व निराशा के भाव तंबाकू के प्रभाव से व्यक्तित्व का अंग बन जाते हैं। ऐसे मनुष्य का व्यक्तित्व इतना विकृत हो जाता है की कोई भी व्यक्ति उसके नजदीक संपर्क में आने से ग्लानि अनुभव करता है, क्योंकि उसके दांत व चेहरा गंदे व वीभत्स हो जाते हैं तथा बदबू फैलाते हैं। कई लोग यह भ्रम पाल लेते हैं कि तंबाकू और सिगरेट से तनाव में कमी आती है।
सिनेमा संस्कृति और मनमौजीपन के प्रभाव में आकर भी कई लोग धूम्रपान की आदत के शिकार हो जाते हैं। विज्ञापनों का आकर्षण व धूम्रपान करते हुए आकर्षक चित्रों को देखकर भी कुछ लोग धूम्रपान अपना लेते हैं, किंतु ऐसे भोले-भाले लोगों को इसके दुष्परिणामों का तब पता लगता है, जब वे जीवन में बहुत कुछ खो चुके होते हैं। किंतु यदि धूम्रपान से पीड़ित कोई व्यक्ति स्वयं को इससे मुक्त करना चाहता है, तो यह बिल्कुल भी कठिन नहीं है, केवल एक संकल्प की आवश्यकता है और बस! तत्क्षण इसका त्याग हो सकता है। दुनिया में ऐसे कई उदाहरण प्रत्यक्ष देखे गए हैं कि लगातार धूम्रपान करने वालों ने सद्बुद्धि आते ही एक क्षण में इसका त्याग किया है। किन्तु कुछ लोगों को यह भ्रम रहता है कि बरसों तक धूम्रपान करने के बाद अब इसको छोड़ देने से जीवन और स्वास्थ्य पर कोई न कोई प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा किंतु यह वास्तविकता नहीं है। सच्चाई तो यह है कि जब जागे तब सवेरा। मनुष्य को भगवान ने बुद्धि, विवेक तर्क और ज्ञान की शक्तियां किसी महत्वपूर्ण उपयोग के लिए दी होती हैं, परन्तु जब वही शक्तियां मनुष्य के कल्याण के विपरीत काम करने लगती हैं, तब मनुष्य की मूर्खता स्पष्ट हो जाती है।
यह दुर्भाग्य है हमारे देश का कि आज वह पश्चिम की बुरी आदत को तेजी से अपनाता और बुराइयों की जड़ सींचता चला जाता है, जबकि हमारे ही विद्वानों द्वारा इन बुराइयों से अवगत होने के बाद करोड़ों अंग्रेज सिगरेट-शराब छोड़कर शुद्ध और सात्विक जीवन की ओर आकर्षित हो रहे हैं। अब अपने देश की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को छोड़ किसी और संस्कृति की सिखाई हुई बातों का अनुसरण करके हम अपने भविष्य की पीढ़ियों के लिए कौनसी मिसाल बना रहे हैं, इसका उत्तर तो हमें अपनेआप से ही मांगना होगा।
-राजयोगी ब्रह्माकुमार निकुंज
आध्यात्मिक शिक्षा विश्लेषक ।
यह लेखक के अपने विचार हैं।

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