कई गांव श्मशान से वंचित, खेतों में अंतिम संस्कार
दु:खद हकीकत- 21वीं सदी का गांव : जहां मौत के बाद भी नहीं मिलता सुकून
शव के पास खड़े लोग घंटों भीगते रहे और ग्रामीणों की आंखों के सामने वह मंजर किसी भयावह तस्वीर से कम नहीं था।
छीपाबडौद। छीपाबडौद तहसील क्षेत्र के आसपास आज भी ऐसे गांव हैं। जहां श्मशान घाट तक नहीं है। गगचाना ग्राम पंचायत के नियाना गांव की हकीकत जानकर दिल पसीज जाएगा। गांव में जब कोई गुजर जाता है तो परिजन शव को खेत में ले जाते हैं और वहीं अंतिम संस्कार करते हैं। सोचिए, बारिश हो या धूप खुले आसमान के नीचे ही चिता सजाई जाती है। न टीन शेड, न चबूतरा, न कोई सुविधा। 21वीं सदी में भी इंसान की आखिरी यात्रा इतनी बेबस हो सकती है यह किसी को भी झकझोर देगा।
बारिश में बुझती रही चिता
हाल ही में गांव के श्रवणलाल मेघवाल का निधन हुआ। परिजन जब अंतिम संस्कार करने पहुंचे तो आसमान से मूसलधार बारिश शुरू हो गई। कई बार चिता में आग लगाने की कोशिश हुई, लेकिन हर बार आग बुझ गई। शव के पास खड़े लोग घंटों भीगते रहे और ग्रामीणों की आंखों के सामने वह मंजर किसी भयावह तस्वीर से कम नहीं था। कई घंटे बाद बड़ी मुश्किल से चिता जली। ग्रामीण कहते हैं कि मौत के बाद इंसान को शांति मिलनी चाहिए, लेकिन हमारे गांव में तो अंतिम संस्कार ही सबसे बड़ी पीड़ा बन गया है। बरसों से यही हाल है, पंचायत को बार-बार बताया गया पर कोई समाधान नहीं हुआ।
पंचायत की चुप्पी और सिस्टम पर सवाल
ग्राम पंचायत और प्रशासन की लापरवाही अब सवालों के घेरे में है। आखिर कब तक इस गांव के लोग अपने अपनों को खेतों में जलाने को मजबूर रहेंगे? क्या यह सभ्य समाज के माथे पर कलंक नहीं है?
यह अकेले नियाना की हकीकत नहीं
सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि आज भी कई गांव ऐसे है। जहां श्मशान घाट तक नहीं बने हैं। अंतिम संस्कार की व्यवस्था के लिए ग्रामीण खेतों, नालों या खुले स्थानों का सहारा लेते हैं। यह तस्वीर सिर्फ नियाना की नहीं, बल्कि पूरे क्षेत्र की हकीकत बयां करती है।
गांव के बुजुर्गों ने आंसू भरी आंखों से कहा
"हमने अपने माता-पिता, रिश्तेदारों सभी का अंतिम संस्कार ऐसे ही खेतों में किया है। बरसात में सबसे ज्यादा तकलीफ होती है। कई बार पंचायत को कहा, लेकिन आज तक कोई सुनवाई नहीं हुई।"
इनका कहना है
यह बेहद दु:खद है कि आज भी हमारे गांव में श्मशान घाट नहीं है। पंचायत और प्रशासन से कई बार गुहार लगाई, लेकिन अब तक कुछ नहीं हुआ।
- बृजेश वैष्णव, पूर्व वार्ड पंच
बरसात के दिनों में शव जलाना सबसे बड़ी मुश्किल बन जाता है। कीचड़ में फिसलते हुए खेत तक पहुंचना पड़ता है और चिता जलाना तो और भी कठिन होता है।
- मेघराज नागर, ग्रामीण
सरकार विकास के बड़े-बड़े दावे करती है, लेकिन हमारे गांव के लोग अपने प्रियजनों का अंतिम संस्कार तक सम्मानपूर्वक नहीं कर पा रहे हैं। यह व्यवस्था पर सवाल खड़ा करता है।
- लड्डूलाल, ग्रामीण
श्मशान घाट न होना समस्या है। भूमि चयन नहीं होने के कारण मामला अटका हुआ है। जल्द ही इस दिशा में कदम बढ़ाएंगे।
-द्रौपदी धाकड़, सरंपच प्रशासक

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