सावन आज से : ताड़केश्वर महादेव मंदिर जहां हुआ करते थे ताड़ के पेड़ और मसान, लोककथाओं में उल्लेख-दशकों पूर्व तांत्रिक यहां रात में करते थे रुद्राभिषेक
ग्वाले की गाय आकर दूध गिरा देती थी
मंदिर की स्थापना हुई, उस समय मंदिर अरावली की पहाड़ियों के नजदीक और मंदिर के आस-पास ताड़ के पेड़ों की भरमार थी, इसी कारण ताड़केश्वर महादेव मंदिर नाम पड़ा
जयपुर। सुनने और पढ़ने पर बड़ा ही अजीब सा लगता है कि आज के चौड़ा रास्ता स्थित 'ताड़केश्वर महादेव' मंदिर एक 'मसान' अर्थात श्मसान घाट पर बना हुआ है। 'ताडकेश्वर महादेव मंदिर' जयपुर की स्थापना से पहले से ही आज के चौड़ा रास्ता में विराजित है। उस दौर में मंदिर, अरावली की पहाड़ियों के नजदीक जंगल से घिरा हुआ और आस-पास ताड़ के पेड़ों की भरमार थी। इसी कारण इस मंदिर को ताड़केश्वर महादेव कहा गया अर्थात् ताड़ के वृक्षों में स्थित शिव। लोक मान्यताओं के अनुसार, यह मंदिर जयपुर रियासत की स्थापना 1727 से पहले का है।
यह स्थल एक दौर में तांत्रिक साधकों की तपस्थली भी रहा हैं।
शिवलिंग स्वयंभू हैं, लेकिन मंदिर का वर्तमान स्वरूप का निर्माण जयपुर के संस्थापक महाराजा सवाई जयसिंह के शासनकाल में कराया गया। जयपुर की नगर योजना तैयार की जा रही थी, उस समय ज्योतिषीय और वास्तुशास्त्र की दृष्टि से ताड़केश्वर महादेव को नगर के महत्वपूर्ण शकित केंद्र के रूप में चिन्हित किया गया था। लोककथाओं में यह उल्लेख मिलता है कि पहले तांत्रिक यहां रात्रि में रुद्राभिषेक भी करते थे। बाद में यह स्थान सामाजिक पूजा-पद्धति का केंद्र बन गया।
मंदिर की वास्तुकला
मंदिर की वास्तुकला विशुद्ध राजस्थानी और नागर शैली की मिश्रित छाया प्रस्तुत करती है। पत्थरों से निर्मित यह मंदिर साधारण परंतु दिव्य अनुभूति से भरा हुआ है। स्वयंभू शिवलिंग और नंदी की मूर्ति विशेष आकर्षण का केंद्र हैं। प्रांगण में प्राचीन ताड़ के वृक्ष आज भी मौजूद हैं, जो मंदिर की ऐतिहासिकता को प्रमाणित करते हैं।
ग्वाले की गाय आकर दूध गिरा देती थी
जयपुर बसने से पूर्व इस क्षेत्र के आस-पास मीणा जाति के शासकों का राज था। उस समय यहां घना जंगल था। एक ग्वाले की गाय यहां ताड़ के पेड़ के नीचे आकर दूध गिरा जाती थी। घटना से ग्वाला काफी परेशान था। एक दिन शिवजी ने ग्वाले को स्वप्न में दर्शन देकर निकालने की बात कहीं। ग्वाले ने जब जमीन को खोदा तो उसमें से शिवलिंग निकला। जयपुर की स्थापना के समय सबसे पहले तीन शिवलिंगों की स्थापना करवाई गई थी, जिनमें से ताड़केश्वर महादेव भी एक है।
शिव भक्त ने बनवाया काशी विश्वनाथ मंदिर
ताडकेश्वर मंदिर के अहाते में काशी विश्वनाथ महादेव मंदिर भी है। मान्यता है कि विश्वेश्वर महादेव के दर्शनों के बिना ताड़केश्वर महादेव के दर्शन पूरे नहीं माने जाते हैं। यहीं कारण रहा कि ताड़केश्वरजी के साथ इनके भी भोग अर्पित किया जाता है। जयपुर निर्माण के समय किशनराम बंगाली जो महाराजा जयसिंह के मंत्री थे, ताडकेश्वर मंदिर में नित्य पूजा के लिए जाते थे। शिव के प्रति अगाध भक्ति के चलते उनके मन में विशाल शिवालय बनने इच्छा जाग्रत हुई। इसके लिए अपने भांजे राज्य के दीवान विद्याधर के नगर नियोजन से मंदिर बनवाया। बाद में वह पंड़ित गंगाराम पाराशर को सेवा पूजा के लिए सौंप दिया गया।
ताड़केश्वर महादेव मंदिर के दर्शनों से काशी विश्वनाथ के दर्शनों जितना पुण्य मिलता है। प्राण प्रतिष्ठा के बाद किशनाराम बंगाली व विद्याधर दीवान ने मंदिर को पुजारी पांचायणजी के वंशज गंगाराम पाराशर को सेवा के लिए सौंपा। पूर्वजों ने बताया है कि भगवान की मूर्ति स्वयं ही उत्पन्न हुई थी और यहां पर मसान हुआ करता था, तभी तो ताड़ के पेड़ हैं। तांत्रिक साधना का केन्द्र भी इसे बताया जाता है। भगवान शिव का अद्भुत स्थान है।
-पुजारी अमित कुमार पाराशर, ताड़केश्वर महादेव मंदिर, चौड़ा रास्ता

Comment List