पंचायती राज दिवस विशेष: 3 दशक में बदला सियासत का चेहरा

जातियों का टूटा वर्चस्व 200 नए जिला प्रमुख, 2100 प्रधान और 68000 सरपंच बने

पंचायती राज दिवस विशेष: 3 दशक में बदला सियासत का चेहरा

एससी, एसटी और ओबीसी के साथ-साथ सभी वर्गो की महिलाओं ने प्रदेश की राजनीति में स्थान बनाया है। यह आंकड़ा बेहद चौंकाने वाला और 360 डिग्री बदलाव को दिखाता है।

जयपुर। एससी, एसटी और ओबीसी के साथ-साथ सभी वर्गो की महिलाओं ने प्रदेश की राजनीति में स्थान बनाया है। यह आंकड़ा बेहद चौंकाने वाला और 360 डिग्री बदलाव को दिखाता है। पिछले तीन दशक में 200 जिला प्रमुख, 2100 प्रधान और 68,000 सरपंच के रूप में नए लोग सामने आ चुके हैं। इनमें आधी तादाद महिलाओं की है। प्रदेश में पंचायतीराज में जातियों, वर्गों और महिलाओं का आरक्षण हर बार बदल जाने से यह बदलाव हुआ है।

राजस्थान से पंचायतीराज शुरू
दो अक्टूबर, 1959 को नागौर से पंचायतीराज की नींव रखने के बाद 1960 में पहला चुनाव हुआ। इसके बाद 1965, 1978, 1981 और 1988 में चुनाव हुए। फिर 1995, 2000, 2005, 2010, 2015 और 2020 में हुए।

ग्रामीण राजनीति में पहचान बना
महिलाओं के लिए पहले 33 प्रतिशत और बाद में 50 प्रतिशत आरक्षण लागू होने से लाखों महिलाओं ने ग्रामीण राजनीति में पहचान बनाई।  

छह चुनावों से निकले सात लाख नए नेता
1991 में जहां 27 जिले, 197 तहसीलें और साढेÞ सात हजार ग्राम पंचायतें थींं, वो 2020 तक 33 जिले, 352 पंचायत समिति और 11,341 ग्राम पंचायत तक पहुंच गई। 2000 में 9186 पंचायतें, 32 जिले और 248 पंचायत समितियां थी। इन चुनावों में हर बार एक लाख से अधिक वार्ड पंच, 5000 से अधिक पंचायत समिति सदस्य, एक हजार से अधिक जिला परिषद सदस्यों ने चुनाव लड़ा।

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गोविन्द सिंह डोटासरा पहले प्रधान और बाद में पार्टी चीफ पद तक पहुंचे
पीसीसी चीफ गोविन्द सिंह डोटासरा पहले प्रधान और बाद में पार्टी चीफ पद तक पहुंचे। कांग्रेस के दिग्गज नेता विश्वेन्द्र सिंह, रामेश्वर डूडी, महिपाल मदेरणा, टीकाराम जूली, भरोसीलाल जाटव जिला प्रमुख से लेकर बड़े ओहदों तक पहुंचे। गिर्राज तिवाड़ी भरतपुर प्रधान से लेकर विधानसभा अध्यक्ष और उपाध्यक्ष तक पहुंचे। पूर्व मंत्री अमीन खां, विधायक मेवाराम जैन सरपंच रहे। पूर्व मंत्री भरत सिंह जिला परिषद सदस्य से शुरुआत कर मंत्री बने और मंत्री बनने के बाद वार्ड पंच भी बने।

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प्रधान का चुनाव लड़ने के बाद मिली पहचान से एक किसान का बेटा राजनीति में बड़े मुकाम तक पहुंच पाया। पंचायत स्तर से ही राजनीति निखरती है व धरातल की समस्याओं को समझा जा सकता है।
- गोविंद सिंह डोटासरा, पीसीसी चीफ

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सीटों पर आरक्षण बदलने से प्रदेश की राजनीति में ऐसा बदलाव आया कि हाशिये के लोग भी मुख्यधारा की राजनीति में स्थापित हुए। इस संशोधन की यह बड़ी बात है।
- रफीक पठान, प्रवक्ता, सरपंच संघ, राजस्थान

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