जयपुर में पुराने सिनेमा हॉलों के बंद होने से बदली मनोरंजन की तस्वीर
पहले 30 से 60 रुपए में टिकट मिलता था अब 200 से 500 रुपए तक खर्च करने पड़ते है
फिल्म देखने के लिए 200 से 500 रूपए तक खर्च करने पड़ते हैं। इस बदलाव से सबसे अधिक असर गरीब और मजदूर तबके पर पड़ा है, जो अब फिल्मों से धीरे-धीरे दूर होता जा रहा है।
जयपुर। कभी जयपुर की गलियों में फिल्म का पोस्टर लगते ही उत्साह की लहर दौड़ जाती थी, जिसमें एक समय छोटे और सस्ते सिनेमा हॉल आमजन के मनोरंजन का अहम जरिया हुआ करते थे। चांदी की टकसाल स्थित रामप्रकाश सिनेमा, सांगानेरी गेट स्थित मिनर्वा सिनेमा, सम्राट सिनेमा जैसे कई सिनेमा हॉल न केवल कम कीमत पर फिल्म दिखाते थे, बल्कि निम्न और मध्यम वर्ग के दर्शकों के लिए सिनेमा देखने का सपना भी साकार करते थे, लेकिन बीते कुछ वर्षों में इन पारंपरिक सिनेमाघरों का लगातार बंद होना अब एक सामाजिक चिंता का विषय बन गया है। मल्टीप्लेक्स कल्चर और मॉल में बने महंगे सिनेमा हॉलों के बढ़ते चलन ने छोटे सिनेमा घरों की कमर तोड़ दी है। जहां पहले 30 से 60 रुपए में टिकट मिल जाया करता था, वहीं अब वहीं फिल्म देखने के लिए 200 से 500 रूपए तक खर्च करने पड़ते हैं। इस बदलाव से सबसे अधिक असर गरीब और मजदूर तबके पर पड़ा है, जो अब फिल्मों से धीरे-धीरे दूर होता जा रहा है।
एक दौर था जब जयपुर की गलियों में पोस्टर लगते ही आस-पास के गरीब और मध्यम वर्ग के परिवारों में फिल्म देखने की तैयारी शुरू हो जाती थी। छोटे-बजट वाले सिनेमा हॉल आमजन के मनोरंजन का प्रमुख जरिया थे। टिकटें सस्ती थीं, माहौल अपनापन भरा और फिल्में लोगों के दिलों तक सीधा रास्ता बना लेती थीं।
-महेश (स्थानीय निवासी)
प हले के कुछ लोग दिनभर मजदूरी करके रात को अपनी थकान उतारने के लिए फिल्म देखने जाते थे, लेकिन अब टिकट महंगा होने की वजह से थिएटर गरीब वर्ग से दूर होता जा रहा है।
-दीपक (स्थानीय निवासी)
ग रीब तबके के लिए सिनेमा केवल मनोरंजन नहीं था, बल्कि हफ्ते भर की थकान मिटाने, भावनात्मक जुड़ाव पाने और परिवार के साथ कुछ पल बिताने का माध्यम था। ये सामाजिक मेलजोल का केंद्र भी थे, जहां लोग एक-दूसरे से मिलते, साथ हंसते और भावनाओं को साझा करते थे।
-प्रकाश जांगिड़ (स्थानीय निवासी)

Comment List