कविता एक इत्र की तरह है, जिसकी शीशी में से इत्र उड़ भी जाए तो उसमें महक बाकी रह जाती है : मिश्रा
लेखक यतीन्द्र मिश्रा ने कहा कि कविता मेरा पहला प्यार
जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में अंतिम दिन दरबार हॉल में दोपहर 12 बजे हुए सत्र ‘कलिंग एंड द वॉर विदिन : बिना कलिंग विजय के’ में लेखक यतीन्द्र मिश्रा ने कहा कि कविता मेरा पहला प्यार है।
जयपुर। जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में सोमवार को अंतिम दिन दरबार हॉल में दोपहर 12 बजे हुए सत्र ‘कलिंग एंड द वॉर विदिन : बिना कलिंग विजय के’ में लेखक यतीन्द्र मिश्रा ने कहा कि कविता मेरा पहला प्यार है। ये एक ऐसी विधा है, जिसमें वह सबकुछ कहा जा सकता है, जो हम कहना चाहते हैं। कविता एक ऐसे इत्र की तरह है, जिसकी शीशी में से इत्र उड़ भी जाए, तब भी उसमें महक बाकी रह जाती है। उन्होंने प्रज्ञा तिवारी के साथ संवाद के दौरान कहा कि मेरा बचपन भक्ति कविताएं सुनते हुए गुजरा है। हमारे भक्ति संगीत में इतनी शक्ति है कि आज मीरा और नरसी को हुए पांच सौ साल गुजर गए हैं, लेकिन उनके भजन ‘वैष्णव जन तो तेने कहिए’ और ‘पायोजी मैंने राम रतन धन पायो’ आज भी लोक में प्रचलित है। उनका कहना था कि कोई कवि या कविता इसलिए महान या बड़ी नहीं होती कि वह किसी फेस्टिवल में सुनी जाए या उसे किसी बड़े पुरस्कार से सम्मानित किया जाए। आम आदमी के लिए लिखी गई कविता जिसे हर कोई आसानी से समझ ले, वही बड़ी कविता होती है।
नारा बन चुकी कविताएं लिखी जा रही हैं...
यतीन्द्र ने कहा कि आज के दौर की कविताओं की बात करते हुए कहा कि आजकल नारा बन चुकी कविताएं लिखी जा रही है। कविता को इतना टिपिकल मत बनाओं। कविता को रस की तरह लिखना चाहिए। तुलसीदास की एक चौपाई का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि गांव-देहात में अनपढ़ किसान जब बरसात के आने में देर हो जाती है और खेती सूखने लगती हैं तो कहते हैं ‘का बरसा जब कृषि सुखाने’। अब उन्हें यह बिल्कुल पता नहीं है कि यह तुलसीदास जी ने रामचरित मानस के बालकाण्ड़ में सीता स्वयंवर के समय कहीं है, लेकिन कविता की शक्ति यह है कि वो अंचल में कहावत की तरह प्रचलित हो जाए। मैं श्रेष्ठ लिखना पसंद करता हूं। आप भी वो लिखें जो आपको पसंद हो जिन पर आपका विश्वास हो।
मां की अनुपस्थिति को मैंने जिया कविता में :
यतीन्द्र ने मां का जिक्र करते हुए कहा कि हाल ही मैंने मेरी मां को खोया है। मैं अपनी मां के बहुत नजदीक था। मां की अनुपस्थिति को मैंने अपनी कवितापर जिसमें पंद्रह कविताएं हैं। ये कविताएं मैंने अपनी मां के लिए लिखी है। वे जहां भी होंगी इन्हें पढ़ रही होंगी। यह मेरी मां को श्रद्धांजलि है। उन्होंने उपस्थित युवाओं से कहा कि मैं अपनी मां को बहुत प्यार करता हूं और उन्हें खोकर उदास हूं। मैं जानता हूं कि मां-बाप हमेशा के लिए नहीं होते, लेकिन आपके पेरेंट्स जितने दिन आपके साथ रहें, अच्छा है। अपने प्रियजनों को उनके जाने के बाद भुला देना प्रेम नहीं है। दु:ख वह नहीं है, जिसे आप भुला दें, बल्कि आपने उन्हें बिसरा दिया तो मतलब आपने उन्हें प्रेम किया ही नहीं।
बाजार से मां के लिए उनकी पसंद की चीजें ले जाया करता था...
मां से अपने रिश्ते की अहमियत को बताते हुए यतीन्द्र ने कहा कि मैं जब भी घर से बाहर किसी दूसरे शहर में जाता था तो उस शहर के बाजार से मां के लिए उनकी पसंद की चीजें जैसे सुरमा, चूड़ी, बिंदी, परांदे, लहरिया, पचरंगी, चुनरी आदि जरूर लेकर आता था। इसके लिए कई बार मुझे आठ-आठ घंटे भी दुकानों पर बैठने पड़ता था, लेकिन मेरी इच्छा रहती थी कि मैं अपनी मां के लिए उनकी पसंद की कोई चीज लेकर जाऊं। जबकि मेरी मां ज्यादा मेकअप नहीं करती थी। मैं अपनी मां के लिए दुनिया की हर चीज खरीदकर लाना चाहता था। यहां तक कि जामुन और अमरूद जो मेरे शहर अयोध्या में भी मिल जाते है, लेकिन मैं अपनी मां के लिए आगरा, बेंगलूरु और इलाहबाद के अमरूद तथा जामुन लेकर आता था।में जिया है। इस संग्रह का एक पूरा खंड मां
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