इस आनुवंशिक बीमारी का स्टेम सेल थैरेपी से इलाज संभव : राजस्थान में बढ़ रहे सिकल सेल के रोगी आदिवासी जिलों में प्रभाव ज्यादा
गर्भावस्था के दौरान ही जांच होना जरूरी
सर्वे के अनुसार नौ आदिवासी जिलों में 10 हजार से ज्यादा रोगी मिले, जहां एक ही समुदाय या आपसी परिवार में होती है शादी, वहां इस बीमारी का खतरा ज्यादा
जयपुर। राजस्थान के कई जिलों विशेषकर आदिवासी आबादी वाले क्षेत्रों में सिकल सेल रोग यानी एससीडी के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं लेकिन अब गैर-आदिवासी जिलों से भी इस बीमारी के केस सामने आ रहे हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि यह बीमारी माता-पिता से बच्चों में आनुवंशिक रूप से ट्रांसफर होती है, जिसमें दोनों से गड़बड़ जीन मिलने पर शरीर में सिकल हीमोग्लोबिन बनता है, जो सामान्य हीमोग्लोबिन से अलग होता है। राज्य में इस बीमारी के बढ़ते मामलों को देखते हुए विशेषज्ञों ने स्टेम सेल बैंकिंग, उन्नत इलाज और समय से जांच को बढ़ावा देने की अपील की है। राजस्थान के स्वास्थ्य विभाग के एक सर्वे के मुताबिक नौ आदिवासी जिलों में लगभग 10 हजार 746 लोग सिकल सेल या इसके ट्रेट से प्रभावित हैं।
ये बीमारी की बड़ी वजह
सीनियर कंसल्टेंट ऑब्सटेट्रिक्स एंड गायनेकोलॉजी डॉ. हिमानी शर्मा ने बताया कि अक्सर बीमारी का इलाज तब शुरू होता है जब इसके लक्षण सामने आ जाते हैं, जिससे समय पर इलाज नहीं हो पाता। कई बार ऐसे समुदायों में जहां आपस में शादी का चलन ज्यादा होता है, वहां माता-पिता दोनों में एक जैसी बीमारी के जीन हो सकते हैं। इससे बच्चों में आनुवांशिक बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है। हैरत की बात है कि आज भी ज्यादातर लोग जेनेटिक जांच या गर्भ में ही बीमारी पहचानने वाले टेस्ट जैसे सीवीएस या एम्नियोसेंटेसिस नहीं कराते।
क्या है सिकल सेल रोग और लक्षण
सिकल सेल रोग में लाल रक्त कणों का आकार बदल जाता है, जिससे वे शरीर में ठीक से ऑक्सीजन नहीं पहुंचा पाते। इससे ब्लड फ्लो बाधित होता है और व्यक्ति को लगातार दर्द, थकान, संक्रमण और अंगों को नुकसान जैसे लक्षण झेलने पड़ते हैं।
इसलिए कारगर है स्टेम सेल थैरेपी
विशेषज्ञों का कहना है कि हेमटोपोएटिक स्टेम सेल ट्रांसप्लांट विशेष रूप से कोर्ड ब्लड से इस बीमारी को जड़ से ठीक करने में मददगार हो सकता है। कोर्ड ब्लड में पाए जाने वाले स्टेम सेल स्वस्थ रक्त कोशिकाएं बनाने की क्षमता रखते हैं। यदि किसी स्वस्थ भाई-बहन से मेल खाती कोशिकाएं मिल जाएं तो ये दोषपूर्ण कोशिकाओं की जगह ले सकती हैं। विशेषज्ञ बताते हैं कि अगर जन्म के समय कोर्ड ब्लड सही तरीके से सुरक्षित किया जाए तो वह बाद में स्टेम सेल ट्रांसप्लांट में काम आ सकता है, खासकर तब जब किसी बच्चे का भाई या बहन बिल्कुल स्वस्थ हो।
गर्भावस्था के दौरान ही जांच होना जरूरी
सीनियर कंसल्टेंट ऑब्सटेट्रिक्स एंड गायनेकोलॉजी डॉ. मानिनी पटेल ने बताया कि सिकल सेल एक जेनेटिक रोग है, इसलिए जल्दी जांच और पेरेंट्स का कैरियर स्टेटस जानना बेहद जरूरी है। अगर दोनों माता-पिता सिकल सेल ट्रेट के कैरियर हैं तो उनके बच्चे को यह रोग होने की 25 प्रतिशत संभावना होती है। ऐसी स्थिति में गर्भावस्था के दौरान सीवीएस या एम्नियोसेंटेसिस जैसे टेस्ट से पता लगाया जा सकता है कि बच्चा संक्रमित है, कैरियर है या पूरी तरह स्वस्थ है। अगर लक्षण आने से पहले स्क्रीनिंग, जेनेटिक काउंसलिंग और स्टेम सेल एवं जेनेटिक थेरेपी को अपनाया जाए तो इस बीमारी के प्रभाव को काफी हद तक कम किया जा सकता है। इसका सही असर तब होता है जब गर्भावस्था के दौरान ही सही जानकारी, जेनेटिक काउंसलिंग और अन्य प्रक्रियाएं अपनाई जाएं।

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