प्लास्टिक वेस्ट : राजस्थान के शहरों के हालात देश के मेट्रो सिटी से भी खराब, जयपुर शहर में प्रतिदिन 1400 मीट्रिक टन कचरे में से 280 मीट्रिक टन सिर्फ प्लास्टिक वेस्ट
राजस्थान में रोजाना निकलता है 1100 मीट्रिक टन प्लास्टिक वेस्ट
40 माइक्रोमीटर या उससे कम मोटाई वाले प्लास्टिक को सिंगल यूज प्लास्टिक कहा जाता है, जिसे एक बार उपयोग के बाद फेंक दिया जाता है।
जयपुर। प्लास्टिक कचरे का संकट अब किसी सामान्य पर्यावरणीय समस्या से कहीं ज्यादा गहरा होता जा रहा है। राजस्थान में प्रतिदिन 1100 मीट्रिक टन प्लास्टिक वेस्ट उत्पन्न हो रहा है, जो देश के मेट्रो शहरों के मुकाबले कहीं अधिक खतरनाक स्थिति में पहुंच चुका है, जबकि दिल्ली, मुंबई, कोलकाता और बेंगलुरु जैसे शहरों में जागरूकता और प्रबंधन तंत्र के चलते हालात थोड़े बेहतर हैं।
राजस्थान की तस्वीर
प्रदेश के हर शहर में सिंगल यूज प्लास्टिक का अनियंत्रित उपयोग हो रहा है। रिपोर्ट के अनुसार राज्य में हर रोज 15 हजार मीट्रिक टन ठोस कचरे में से करीब 1100 मीट्रिक टन प्लास्टिक वेस्ट होता है। अकेले जयपुर शहर में रोज निकलने वाले 1400 मीट्रिक टन कचरे में से 280 मीट्रिक टन सिर्फ प्लास्टिक वेस्ट है।
क्या है सिंगल यूज प्लास्टिक
40 माइक्रोमीटर या उससे कम मोटाई वाले प्लास्टिक को सिंगल यूज प्लास्टिक कहा जाता है, जिसे एक बार उपयोग के बाद फेंक दिया जाता है। इनमें पॉलीथीन बैग, पानी की बोतल, स्ट्रॉ, कप, प्लेट, रैपिंग मटेरियल आदि आते हैं।
1. दिल्ली: कानून सख्त
देश की राजधानी दिल्ली में 2017 से सिंगल यूज प्लास्टिक पर प्रतिबंध है और वहां नगर निगम व प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड मिलकर निगरानी रखते हैं। दिल्ली में प्रतिदिन औसतन 690 मीट्रिक टन प्लास्टिक कचरा उत्पन्न होता है, लेकिन लगभग 60 प्रतिशत वेस्ट को रिसाइकिल किया जाता है। इसके लिए स्थानीय निकायों की ओर से नियमित जागरूकता अभियान चलाया है।
2. मुंबई: समुद्री प्रदूषण चुनौती
मुंबई में प्लास्टिक वेस्ट की समस्या समुद्र के किनारों पर सबसे ज्यादा देखने को मिलती है। बीएमसी ने 2018 में सख्ती से सिंगल यूज प्लास्टिक पर बैन लगाया था और अब वहां प्लास्टिक कैरी बैग्स की जगह कपड़े और जूट बैग्स को बढ़ावा दिया जा रहा है। मुंबई में प्रतिदिन करीब 700 मीट्रिक टन प्लास्टिक कचरा उत्पन्न होता है, जिसमें से 40 प्रतिशत समुद्र में पहुंचने का खतरा रहता है।
3. बेंगलुरु: टेक्नोलॉजी का सहारा
आईटी सिटी बेंगलुरु में प्लास्टिक वेस्ट प्रबंधन के लिए कई स्टार्टअप्स सक्रिय हैं। शहर में रोजाना 313 मीट्रिक टन प्लास्टिक वेस्ट जनरेट होता है, लेकिन इसमें से 70 प्रतिशत तक प्रोसेस कर लिया जाता है। बेंगलुरु महानगर पालिका ने कई सख्त दिशा निर्देश लागू किए हैं और डिजिटल ट्रैकिंग सिस्टम के माध्यम से वेस्ट कलेक्शन को मॉनिटर किया जा रहा है।
4. कोलकाता: सख्ती की कमी
कोलकाता में प्रतिदिन 540 मीट्रिक टन प्लास्टिक कचरा निकलता है, लेकिन यहां नियमों के अभाव में वेस्ट मैनेजमेंट की स्थिति राजस्थान जैसी ही है। प्लास्टिक बैन को लेकर प्रशासन का रवैया काफी नरम रहा है, जिसके चलते हालात नियंत्रण में नहीं आ सके हैं।
प्लास्टिक की शुरुआत और विस्तार
1933 में इंग्लैंड में प्लास्टिक की खोज हुईए 1965 में इसका पेटेंट हुआ। तब से लेकर अब तक यह मानव जीवन का हिस्सा बन चुका है, लेकिन इसकी बायोडिग्रेडेबल प्रकृति न होने से यह पृथ्वी के लिए अभिशाप बन गया है।
हाल ही टास्क फोर्स की मीटिंग के बाद प्लास्टिक वेस्ट को लेकर सभी विभागों को निर्देश दिए गए है। साथ ही मेले और धार्मिक स्थलों को प्लास्टिक फ्री बनाने की दिशा में जल्द काम होगा। यूएलबी पर प्लास्टिक कलेक्शन एकत्रित कर उसका निस्तारण किया जाएगा, इसका प्लान तैयार कर रहे है।
- जुईकर प्रतीक चन्द्रशेखर, निदेशक, स्वच्छ भारत मिशन (अर्बन)

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