वायु प्रदूषण व कोरोना का मिलाप जानलेवा
कोटा में एक्यूआई का स्तर 120 पर पहुंचा : वायु प्रदूषण से बढ़ जाता है कोरोना संक्रमण का खतरा
कोविड संक्रमण के लिए वायु प्रदूषण भी जिम्मेदार है। बाहरी हवा में मौजूद प्रदूषक इन्फ्लूएंजा व सार्स जैसे श्वसन संक्रमण के खतरों को बढ़ा सकते हैं। वर्तमान में कोटा में एक्यूआई 120 एक्यूआई पर पहुंच गया है। ऐसे में विशेष सावधानी बरतने की जरूरत है।
कोटा। ओमिक्रोन एक बार फिर पूरी दुनिया के लिए नई मुश्किल बन चुका है। अगर आप किसी ऐसे शहर में रहते हैं, जहां पर वायु प्रदूषण अधिक है तो संभल जाइए। कोरोना वायरस के संक्रमण का खतरा ऐसे में और बढ़ जाता है। यह दावा एक नए शोध में किया गया है। कोरोना वायरस प्रदूषित हवा के साथ मिलकर और खतरनाक रूप धर सकता है और एक बार यह सांस के जरिये फेफड़ों में चला गया तो यह तबीयत बिगाड़ भी सकता है। कोविड संक्रमण के लिए वायु प्रदूषण भी जिम्मेदार है। बाहरी हवा में मौजूद प्रदूषक इन्फ्लूएंजा व सार्स जैसे श्वसन संक्रमण के खतरों को बढ़ा सकते हैं। वर्तमान में कोटा में (वायु गुणवत्ता सूचकांक) एक्यूआई 120 एक्यूआई पर पहुंच गया है। ऐसे में विशेष सावधानी बरतने की जरूरत है।
यहां पर संक्रमण का खतरा अधिक
चिकित्सय अध्ययनों में पता चला है कि खराब वायु गुणवत्ता वाले क्षेत्रों में कोविड-19 के अधिक मामले सामने आए। यातायात से संबंधित कुछ वायु प्रदूषकों के संपर्क में आने से सार्स सीओवी-2 वायरस से संक्रमित होने का खतरा ज्यादा हो जाता है। जिन इलाकों में वायु प्रदूषण बहुत ज्यादा है, वहां रहने वाले लोगों को अगर कोरोना वायरस का संक्रमण होता है तो साफ हवा में रहने वाले लोगों की तुलना में उनकी स्थिति ज्यादा खराब हो जाती है। ऐसे लोगों को जल्द से जल्द उपचार की जरूरत पड़ सकती है। ज्यादा वायु प्रदूषण वाले इलाकों में रहने वाले लोगों में कोरोना संक्रमण का खतरा अधिक होता है।
प्रदेश के प्रमुख शहर व एक्यूआई स्तर
कोटा - 120
झालावाड़ - 112
जयपुर - 165
अजमेर - 90
अलवर - 74
भिवाड़ी - 243
जोधपुर - 149
अब दिल और फेफड़ों को संभालना जरूरी
चिकित्सकों के अनुसार वायु प्रदूषण की वजह से फेफड़े से संबंधित कई बीमारियां हो जाती है। यहां तक की बच्चों में भी लगातार सर्दी और खांसी की समस्या बनी रहती है। लगातार वायु प्रदूषण में रहने के कारण फेफड़ों की क्षमता कम हो जाती है। इससे श्वास सम्बंधी परेशानी होने लगती है। सबसे ज्यादा असर अस्थमा रोगियों को होता है। जिसमें रोगी को सांस लेने में तकलीफ होती है। चिकित्सकों का कहना है कि वायु प्रदूषण से दिल का दौरा पड़ने का खतरा बढ़ जाता है। जहरीली हवा के महीन कण पीएम 2.5 खून में प्रवेश कर जाते हैं। इससे धमनियों में सूजन आने लगती है और फिर दिल के दौरे का खतरा बढ़ जाता है।
प्रदूषण में भिवाड़ी सिरमौर
राजस्थान की बात करें तो भिवाड़ी की हवा सबसे ज्यादा प्रदूषित हो रही है। यहां का एक्यूआई 243 पर पहुंच चुका है। इस हवा में सांस लेना भी दुश्वार हो रहा है। इसके बाद 195 एक्यूआई के साथ बीकानेर दूसरे स्थान पर है। तीसरे स्थान पर 178 एक्यूआई के साथ भरतपुर, चौथे स्थान पर 165 एक्यूआई के साथ जयपुर और पांचवें स्थान पर 120 एक्यूआई के साथ कोटा बना हुआ है।
यह होता है एक्यूआई
एक्यूआई में पार्टिकुलेट मेटर यानि धूल के कणों का मापन होता है। धूल कण 10 माइक्रोन और 2.5 माइक्रोन तक मापे जाते हैं। इसके अलावा हवा में नाइट्रोजन डाई आॅक्साइड, सल्फर डाई आॅक्साइड, कार्बन मोनोक्साइड व ओजोन मापी जाती है। इसकी इकाई माइकोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर होती है। एक्यूआई के माध्यम से ही यह पता चलता है कि हवा में प्रदूषण का स्तर कहां तक पहुंच चुका है और इसके प्रमुख कारण क्या हैं।
बेहतर पर्यावरण जान बचाने में मददगार
साफ हवा और बेहतर पर्यावरण लोगों की जान बचाने में काफी मददगार साबित हो सकती है। वायु प्रदूषण को कम करने की नीतियों को एक आवश्यक सार्वजनिक स्वास्थ्य उपाय माना जाना चाहिए। पेड़ों-पौधों की अधिकता से ही वायु प्रदूषण को स्वच्छ हवा में बदला जा सकता है। इसके लिए सभी को प्रयास करना चाहिए।
- डॉ. सुरेन्द्र मीणा,पूर्व मौसम वैज्ञानिक
प्रदूषण व कोरोना का मिलाप जानलेवा है। प्रदूषण सांस की नली, प्रतिरोधक क्षमता और फेफड़े को प्रभावित करता है। ऐसे में कोरोना का संक्रमण हो तो बीमारी की गंभीरता बढ़ जाती है। प्रदूषण का दीर्घकालिक असर ज्यादा खतरनाक हो सकता है। क्योंकि अधिक समय तक खराब हवा में ही सांस लेते रहे तो फेफड़े खराब होंगे। प्रदूषण के दौरान वातावरण में मौजूद सूक्ष्म कण सांस के जरिये फफड़े व ब्लड में पहुंचकर शरीर के हर हिस्से को प्रभावित करते हैं। इससे फेफड़े की गंभीर बीमारी तो होगी ही, दिल व न्यूरो की गंभीर बीमारियां भी बढ़ सकती है।
- डॉ. अनिल जाटव, वरिष्ठ फिजिशियन
कोरोना महामारी के इस दौर म्ं वर्तमान में हवा की गति मंद हो गई। इस कारण हवा में प्रदूषक संवाहक ज्यादा फैल रहे है। तापमान में अधिकता के कारण मिट्टी के कण और प्रदूषण को बढ़ाने वाली गैसें ऊपरी मौसम में घुल नहीं पा रहे हैं। निर्माण कार्यो के दौरान उड़ने वाली धूल व मिट्टी के कण भी वायु प्रदूषण बढ़ाने में सहायक होते हैं।
- अनुराग, पर्यावरण अभियंता, प्रदूषण नियंत्रण मंडल

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