छोटे-छोटे हाथों से बड़ा नाम कमाया है तैराकी में कोटा की बेटियों ने
राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर बना चुकी है अपनी पहचान, प्रशिक्षकों ने कहा नहीं मिलती है कोई सरकारी सुविधा
कोटा में तैराकी के लिए फिलहाल 3 स्थान है। इन स्थानों पर ही कोटा की तैराक लड़कियां तैराकी का अभ्यास कर रही है। यहा की करीब 50 लड़कियां हर वर्ष तैराकी प्रतियोगिता में शामिल होती हैं। कोटा 4-5 लड़कियां अब तब नेशनल और करीब 40 लड़कियां स्टेट लेवल पर आयोजित प्रतियागिता में अपनी छाप छोड़ चुकी हैं।
कोटा। दूसरे खेलों की तरह ही हमारे शहर लड़कियों ने तैराकी में भी राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर अपनी छाप छोड़ी हैं। कोटा की बेटियां बीते करीब 15 सालों से तैराकी में अपने हाथ दिखा रही हैं। ये अलग बात है कि इन लड़कियों को भी सरकारी सुविधा के नाम पर नेशनल या स्टेट खेलने वाली लड़कियों को तरणताल की फीस में कुछ प्रतिशत की छूट मिल रही है। अगर कोटा की इन तैराक लड़कियों को विशेषज्ञ कोच और सरकारी प्रोत्साहन मिले तो ये बेटियां अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर भी अपनी पहचान बना सकती है। कोटा में तैराकी के लिए फिलहाल 3 स्थान है। श्रीनाथपुरम, नयापुरा स्थित तरणताल और एक 25 मीटर का पुल अन्य स्थान पर है। इन स्थानों पर ही कोटा की तैराक लड़कियां तैराकी का अभ्यास कर रही है। बताया जाता है कि यहा की करीब 50 लड़कियां हर वर्ष तैराकी प्रतियोगिता में शामिल होती हैं। ये प्रतियोगिताएं स्कूली और ओपन दोनों तरह की होती है। कोटा 4-5 लड़कियां अब तब नेशनल और करीब 40 लड़कियां स्टेट लेवल पर आयोजित प्रतियागिता में अपनी छाप छोड़ चुकी हैं।
इन लड़कियों को प्रशिक्षण देने वाले बताते हैं कि तैराकी में यहां की बच्चियों ने खूब नाम कमाया है। तैराकी में कोटा को पहला मैडल साल 2013 में रियट डिसिल्वा ने दिलवाया था। इसके अलावा अक्षी किराड़ ने भी मेडल जीता है। इनके अलावा वर्णिता सैन, मितांशी खारौल, परी, हंसी शर्मा, जिया जनार्दन, भावना हाडा, अंबिका सोनी, नंदनी शर्मा, श्रेया गुपता, समृद्धि, सानवी कालरा तथा कृतिका भंडारी ये वो लड़कियां है जिन्होंने तैराकी में अपना ही नहीं वरन इस शहर और राज्य का भी नाम रोशन किया है। तैराकी सीखने वाली इन लड़कियों को तैराकी का गुर सिखाने वाले बताते हैं कि यहां की बेटियों ने तैराकी में खूब मेहनत की है और कर रही हैं। इन लड़कियों में बहुत आत्मविश्वास हैं। अच्छी बात तो ये है कि इन लड़कियों के परिजन इनको सपोर्ट कर रहे हैं। जो किसी भी लड़की को किसी भी क्षेत्र में आगे बढ़ाने में बहुत महत्वपूर्ण होता हैं। प्रशिक्षकों का कहना हैं कि इनके लिए एक विशेषज्ञ प्रशिक्षक की व्यवस्था सरकार यानि खेल परिषद की ओर से हो जाए तो ये और अच्छा प्रदर्शन कर सकती है।
सरकार की ओर से तैराकी सीख रही लड़कियों के लिए कोई सुविधा उपलब्ध नहीं करवाई गई है। ये बच्चियां जो भी कर रही है अपने ही लेवल पर प्रशिक्षकों के सहयोग से कर रही हैं। इस क्षेत्र में लड़कियों का भविष्य बहुत अच्छा है।
- रामगोपाल खारौल, शारीरिक शिक्षक।
यहां की लड़कियां तैराकी में खूब मेहनत कर रही हैं। इनकी मेहनत रंग लाई भी है। राजस्थान में कोटा में सबसे ज्यादा तरणताल हैं लेकिन अभ्यास करवाने के लिए कोई सरकारी कोच नहीं है।अगर खिलाड़ियों को पूरी सुविधाएं मिले तो यहां की लड़कियां तैराकी में कई कीर्तिमान स्थापित कर सकती हैं।
- प्रमोद यादव, सचिव, कोटा जिला तैराकी संघ।
मैं बीते 5-6 साल से तैराकी का रोजाना लगभग 3 घंटे अभ्सास कर रही हंू। पापा खुद एक अच्छे तैराक है तो इसमें रूचि बढ़ी। मम्मी-पापा पूरा सपोर्ट कर रहे हैं। पढ़ाई पर मेरी प्रैक्टिस का कोई फर्क नहीं पड़ता है।
- मितांशी खारौल, खारौल, तैराक।
मैं 5 साल से तैराकी कर रही हूं। स्कूल में मम्मी ने तैराकी की क्लास ज्वाइन करवाई थी तभी से तैराकी का शौक लगा। लगभग 4 घंटे रोज अभ्यास करती हूं। नेशनल खेल चुकी हूं। मम्मी-पापा पूरा सपोर्ट करते हैं। पढ़ाई पर प्रैक्टिस का कोई फर्क नहीं पड़ता है।
- हंसी शर्मा, तैराक।

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