कई महीनों से बंद पड़े ऑक्सीजन प्लांट

हर रोज 150 से 250 सिलेंडर बाहर से मंगा रहे अस्पताल, जबकि इससे ज्यादा के प्लांट मौजूद

कई महीनों से बंद पड़े ऑक्सीजन प्लांट

सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार इन प्लांटों के भुगतान की फाइल मेडिकल कॉलेज और राज्य सरकार के बीच घूम रही है।

कोटा। जिले के अस्पतालों में कोरोना महामारी के समय दर्जन भर ऑक्सीजन प्लांट लगाए गए थे। लेकिन समय के साथ रखरखाव और मरम्मत की कमी के चलते ये प्लांट बंद होते गए और हालात यहां तक पहुंच गए हैं कि अस्पतालों में प्लांट होने के बावजूद बाहर से ऑक्सीजन के सिलेंडर मंगाने पड़ रहे हैं। जिले के लगभग सभी अस्पतालों मात्र एक से दो प्लांट ही संचालन की अवस्था में हैं बाकि प्लांट या तो खराब पड़े हैं या उन्हें चलाने की स्वीकृति नहीं मिल पाई है। ऐसे में अस्पताल प्रशासन हर रोज 100 से 150 सिलेंडर बाहर से मंगा रहे हैं। वहीं अस्पतालों के अधीक्षकों का दावा है कि प्लांटों के संचालन के लिए मेडिकल कॉलेज प्रशासन को पत्र लिखकर स्थिति से अवगत कराया हुआ है।

मेडिकल कॉलेज और एमबीएस में दो-दो प्लांट चालू
कोटा संभाग में एमबीएस और मेडिकल कॉलेज अस्पताल दो सबसे बड़े अस्पताल हैं। जहां दोनों की कुल क्षमता करीब 1100 बेड की है। जिसके चलते दोनों अस्पतालों में ऑक्सीजन की खपत भी हर रोज करीब 400-500 सिलेंडर की होती है। जबकि इससे ज्यादा क्षमता के प्लांट दोनों अस्पतालों में मौजूद हैं। इसके बाद भी अस्पताल प्रशासन बाहर से महंगे दामों पर सिलेंडर मंगा रहा है। मेडिकल कॉलेज अस्पताल में प्रतिदिन 100 से 120 सिलेंडर और एमबीएस अस्पताल में 200 से 250 सिलेंडर बाहर से मंगाए जा रहे हैं। वहीं देखा जाए तो मेडिकल कॉलेज अस्पताल में पांच ऑक्सीजन प्लांट और एमबीएस अस्पताल में 9 ऑक्सीजन प्लांट मौजूद हैं। इनमें से मेडिकल कॉलेज के केवल दो चालू हैं और एमबीएस में एक भी प्लांट चालू अवस्था में नहीं हैं। जिनकी भरपाई के लिए बाहर से सिलेंडर मंगाए जा रहे हैं।

जेके लोन और एसएसएच में भी यही स्थिति
मेडिकल कॉलेज और एमबीएस अस्पताल के अलावा सुपर स्पेशलिटी अस्पताल और जे के लोन अस्पताल में भी यही स्थिति है। यहां भी जेके लोन में एक और एसएसएच में दो प्लांट ही संचालित हो रहे हैं। जबकि जे के लोन में 4 और एसएसएच में 6 प्लांट मौजूद हैं। वहीं सुपर स्पेशलिटी अस्पताल में हर महीने करीब 150 सिलेंडर और जेके लोन अस्पताल में हर दिन 125 से 135 सिलेंडर बाहर से मंगाए जा रहे हैं। 

मेडिकल कॉलेज और सरकार के बीच फंसे प्लांट
जिला अस्पतालों में मौजूद ऑक्सीजन प्लांटों के निर्माण और संचालन से संबंधित भुगतान को लेकर मामला मेडिकल कॉलेज और राज्य सरकार के बीच फंसा हुआ है। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार इन प्लांटों के भुगतान की फाइल मेडिकल कॉलेज और राज्य सरकार के बीच घूम रही है। जिसके चलते प्लांटों के संचालन की स्वीकृति नहीं मिलने के कारण बाहर से सिलेंडर मंगाने पड़ रहे हैं।

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केडीए से नहीं मिली स्वीकृति 
कोरोना काल में अस्पतालों में केडीए और अन्य संस्थाओं की ओर से ऑक्सीजन प्लांट लगाए गए थे। जिनमें लिक्विड और जनरेशन प्लांट शामिल थे। लेकिन बावजूद इसके इन अस्पतालों में प्रशासन की देखरेख में कमी के चलते से सभी प्लांट महीनों से बंद पड़े हैं। जिसमें 500 एलएमपी में 100 सिलेंडर की कैपिसिटी तथा 1000 एलएमपी के प्लांट में 200 सिलेंडर उत्पादन की कैपिसिटी है। कंपनी की आरे से 3 साल की गारंटी पर ये प्लांट लगाए गए थे जिसमें प्लांट में किसी भी प्रकार की तकनीकी खराबी होने पर मरम्मत व देखरेख की जिम्मेदारी कंपनी की थी। कंपनी की समयावधि समाप्त होने के बाद अधिकतर ऑक्सीजन प्लांट तकनीकी खराबी से बन्द पड़ गए। इनमें कुछ प्लांटो में कम्प्रेशर खराब है तो ओर कुछ में ऑयल से सम्बन्धित समस्या आने के कारण बन्द है। इसके अलावा कई प्लांटों में केडीए और चिकित्सा विभाग के बीच मामला फंसा हुआ है। सूत्रों के अनुसार प्लांटों के निर्माण और संचालन से संबंधित बकाया शेष राशि का भुगतान नहीं होने से केडीए की ओर से इनके संचालन की स्वीकृति नहीं मिली है। 

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लोगों का कहना है
कोरोना के समय लगाए गए ये प्लांट अस्पताल और प्रशासन के बीच लटके हैं। कई प्लांटों को बंद हुए सालभर से ज्यादा हो गया है। इमरजेंसी की स्थिति में कभी भी बड़ा हादसा हो सकता है। इसके लिए जिम्मेदार कौन होगा।
- दिनेश सुमन, छावनी

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अस्पताल में ऑक्सीजन प्लांट के बंद होने की समस्या के बारे में जानकारी है। लेकिन अभी ऑक्सीजन सप्लाई में कोई दिक्कत नहीं लेकिन अस्पतालों को आपातकालीन स्थिति के लिए प्लांटों को तैयार रखना चाहिए। क्योंकि कभी भी बड़ी दुर्घटना होने पर हाथों हाथ ऑक्सीजन की सप्लाई कैसे मिल पाएगी।
- मोहम्मद खालिद, विज्ञान नगर

इनका कहना है
अस्पतालों में कितने प्लांट बंद हैं कितने संचालित हैं और कितने सिलेंडर बाहर से मंगाए जा रहे हैं, इसकी जानकारी अधीक्षक बेहतर ढंग से बता पाएंगे। फिर भी मामले को दिखाकर समस्या को हल करने का प्रयास करेंगे।
- डॉ. संगीता सक्सेना, प्रधानाचार्य एवं नियंत्रक, मेडिकल कॉलेज, कोटा

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