मगरमच्छों का अड्डा बना रायपुरा का गंदा नाला

डेढ़ से दो किमी लंबे नाले में पांच दर्जन से अधिक मगरमच्छ

मगरमच्छों का अड्डा बना रायपुरा का गंदा नाला

रायपुरा का नाला करीब 2 किमी लंबा और 20 फीट चौड़ा है। इसमें करीब पांच दर्जन से अधिक मगरमच्छों का बसेरा है। मगरमच्छों का आबादी क्षेत्रों में आने का प्रमुख कारण इनका प्राकृतिक आवास नष्ट होना और उसमें भोजन की कमी भी है।

कोटा।  नगर निगम क्षेत्र में बसे रायपुरा व देवलीअरब के बाशिंदे डर के साय में जीवन बिता रहे हैं। रायपुर का नाला मगर मच्छों का अडडा बन चुका है। यह करीब डेढ़ से दो किमी लंबा और 20 फीट चौड़ा है। इसमें 5 दर्जन से अधिक मगरमच्छों का बसेरा है, जिनकी लंबाई 3 से 15 फीट तक है। नाले से 100 फीट की दूरी पर ही आबादी क्षेत्र है। कई बार मगरमच्छ नाले से निकलकर आबादी क्षेत्र में घुस जाते हैं। वहीं, नाले के किनारे बाड़ियां व खेत हैं, जहां किसान व माली समाज के लोग सब्जियों की खेती करते हैं। सुरक्षा दीवार के अभाव में मगरमच्छ खेतों में पहुंच जाते हैं। किसानों को हर पल हमले का खतरा सताता है। स्थानीय बाशिंदों व वन्यजीव प्रेमियों ने वन्यजीव विभाग व प्रशासन को लिखित में शिकायत देकर मगरमच्छों को अन्य जगह शिफ्ट करने की गुहार लगाई लेकिन किसी ने भी इस ओर ध्यान नहीं दिया। पूर्व में धोरों पर फसल धोते समय मगरमच्छ एक किसान पर जानलेवा हमला कर चुका है। इसके बावजूद वन विभाग न तो क्षेत्रवासियों की जिंदगी और न ही वन्यजीव के संरक्षण के प्रति गंभीर है। 

गंदगी से अटा नाला, कचरों से गहराई हुई कम
स्थानीय निवासी भैरूलाल व पप्पू कुमार ने बताया कि रायपुरा नाले की लंबे समय से सफाई नहीं हुई। वर्तमान में यह गंदगी व कचरे से अटा होने से इसकी गहराई बहुत कम हो गई। फैक्ट्रियों का रसायनयुक्त दूषित पानी भी इसी नाले में प्रवाहित होता है। पॉलिथिन व कचरे का ढेर से उठती दुर्गंध से राहगीरों का यहां से गुजरना तक मुश्किल हो गया है। नाले का गंदा पानी रायपुरा, देवली अरब व राजपुरा होते हुए चंद्रलोही नदी में मिल रहा है। जहां जलीय जीव-जंतुओं के जीवन पर भी खतरा मंडरा रहा है। वहीं, गंदे पानी में अनगिनत मच्छर पनप रहे हैं, जिससे डेंगू, मलेरिया, वायरल सहित अन्य जानलेवा बीमारियों का अंदेशा बना रहता है।  

खतरे के साय में खेती, हर पल जान का खतरा
किसान हीरा सुमन व मनमोहन मालव ने बताया कि नाले की एक तरफ जंगलात का वन क्षेत्र है तो दूसरी ओर छोटी-छोटी बाड़ियां व खेत हैं। जहां लोग सब्जियों की खेती करते हैं। सुरक्षा दीवार नहीं होने से मगरमच्छ खेतों में घुस जाते हैं। किसानों का रोजाना खेतों में काम करना होता है। ऐसे में हर पल जान का जोखिम बना रहता है। किसानों को मगरमच्छों से अपना बचाव करने के लिए सर्तक होकर खेतों में कामकाज करना पड़ता है। 

जालियां लगाकर करें सुरक्षित, क्रोकोडाइल पांइट बनाएं
नेचर प्रोमोटर एएच जैदी बताते हैं कि रायपुरा का नाला करीब 2 किमी लंबा और 20 फीट चौड़ा है। इसमें करीब पांच दर्जन से अधिक मगरमच्छों का बसेरा है। जिनके संरक्षण के लिए वन्यजीव विभाग को ठोस योजना बनानी चाहिए। नाले के किनारों से कुछ दूरी पर फैंसिग कर दी जाए तो यह सुरक्षित रह सकते हैं और ग्रामीणों का भय भी दूर हो सकता है। लेकिन इससे पहले नाले की पूरी तरह से सफाई करवाना जरूरी है ताकि उसकी गहराई अपने मूल स्वरूप में लौट सके। 

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सर्दी आते ही किनारों पर डेरा
सर्दी आने के साथ ही मगरमच्छ किनारे पर आकर दिनभर धूप का आनंद लेते रहते हैं। जैदी बताते हैं कि कुछ दिनों पहले ही नाले किनारे पर 10 से 12 मगरमच्छों का झुंड धूप सेंकते नजर आया था। नाले के बीच-बीच में जहां पानी सूख जाता है, वहीं आकर बैठ जाते हैं। कई बार तो ये बस्ती की ओर भी रुख कर लेते हैं। उन्होंने बताया कि ये चतुर भी इतने हैं कि जरा सी आहट होते ही तेजी से पानी में छलांग लगा लेते हैं।

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अब तक 65 से ज्यादा का कर चुके रेस्क्यू
वन विभाग के रेस्क्यू टीम के सदस्य धर्मेंद्र सिंह ने बताया कि वन विभाग हर साल करीब 90 से ज्यादा मगरमच्छों का आबादी क्षेत्रों से रेस्क्यू किया जाता है। वहीं, इस साल की बात करें तो अब तक करीब 65 से ज्यादा मगरमच्छों का रेस्क्यू कर चुके हैं। रेस्क्यू के दौरान लोगों की अनावश्यक मौके पर जमा भीड़ परेशान करती है। रेस्क्यू में सहयोग नहीं करते। उन्होंने बताया कि टीम के पास न तो रेस्क्यू वाहन है और न ही साधन-संसाधन उपलब्ध हैं। रस्सियां भी खुद वनकर्मी अपने खर्चे से खरीदते हैं। विभाग को वन्यजीवों के रेस्क्यू के लिए जाल, रस्सियां, वाहन सहित अन्य जरूरी संसाधन उपलब्ध करवाना चाहिए। 

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मवेशियों व इंसानों पर कर चुका हमला 
वन्यजीव प्रेमी जुनेद शेख ने बताया कि कुछ वर्षों पहले  रायपुरा नाले के किनारे बाड़ियां में सब्जियों की खेती करने वाले एक किसान पर मगरमच्छ ने जानलेवा हमला कर दिया था। मगरमच्छ ने किसान का पैर जबड़े में दबा लिया था और उसे पानी की ओर खींच रहा था लेकिन किसान ने पेड़ को जोर से पकड़ रखा था। उसके चिल्लाने  की आवाज सुन आसपास के खेतों में काम कर रहे मौके पर पहुंचे तो मगरमच्छ नाले में चला गया। लहुलुहान हालत में किसान को अस्पताल पहुंचाया। वहीं, 20 वर्ष पहले देवली अरब में नाले किनारे एक चबुतरा बना हुआ था। जहां एक महिला अपने बच्चे को बिठाकर कपड़े धो रही थी तभी मगरमच्छ ने बच्चे पर हमला कर दिया था। इसके अलावा मवेशियों व श्वानों को भी शिकार बना चुका है। 

वन्यजीव प्रेमियों ने दिए सुझाव 
    - नाले किनारे चारों तरफ तार फेंसिंग कर दी जाए। 
    - वन विभाग को लोगों के बीच ज्यादा से ज्यादा जागरूकता फैलानी चाहिए। 
    - जितने हो सके उसने हेल्पलाइन नम्बर बांटना चाहिए। 
    - एक से ज्यादा क्रोकोडाइल रेस्क्यू टीम बनाई जाए। 
    - वन्यजीव विभाग रेस्क्यू के दौरान मगरमच्छों पर टेगिंग जरूर करवाएं। 
    - नहर व नालों में मृत जीव-जंतु, जानवर, मटन-चिकन के अवशेष व खाद्य सामग्री न फेंकी जाए। 
    - जब मगरमच्छों को भोजन नहीं मिलेगा तो वह आबादी क्षेत्रों से सटे नहर-नालों में नहीं आएंगे। 
    - इनके प्राकृतिक आवास को सुरक्षित रखा जाए। 
    - नाले से मगरमच्छों को सावनभादो डेम में शिफ्ट कर दिया जाए या फिर नाले की सफाई करवाकर क्रोकोडाइल पाइंट बनाकर विकसित किया जाए। 
    - इनके संरक्षण व भोजन की नियमित व्यवस्था की जाए। 

नालों में कई तरह का मिल रहा भोजन
मगरमच्छ मूवमेंट करते रहते हैं। जब बैराज के गेट खोले जाते हैं तो पानी के तेज बहाव के साथ यह नहरों व नालों में आ जाते हैं। वहीं, नदी-नालों में बसे मगरमच्छ तेज बहाव से कम बहाव वाले इलाके में चले जाते हैं। शहर के सभी नाले एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं। जैसे अंतनपुरा-गोबरिया बावड़ी का नाला विज्ञान नगर, संजय नगर, कंसुआ, डीसीएम, रायपुरा, देवली अरब होते हुए चंद्रलोई नदी से मिल रहा है और यह नदी चंबल से मिल रही है। ऐसे में यह इधर से उधर मूव करते रहते हैं। यही वजह से कि आज तक इनकी ठीक से गिनती नहीं हो पाई। रही बात इनके भोजन की तो नालों में मटन, चिकन, खाद्य सामग्री, मृत जीव-जंतु व मवेशी फेंक दिए जाते हैं, जो इनका भोजन बन रहे हैं। यदि मगरमच्छ भरपेट भोजन कर ले तो फिर उसे कम से कम छह माह तक भोजन की जरूरत नहीं होती। संभवत: मगरमच्छों का आबादी क्षेत्रों में आने का प्रमुख कारण इनका प्राकृतिक आवास नष्ट होना और उसमें भोजन की कमी भी है। इसलिए मगरमच्छों को नदी छोड़कर नालों की ओर आना पड़ रहा है।  
- डॉ. कृष्नेंद्र सिंह नामा, बायोलॉजिस्ट एवं रिसर्च सुपरवाइजर

मगरमच्छ को मारने पर 7 साल की सजा
मगरमच्छ शेड्यूल-1 श्रेणी का वन्यजीव है। इसे नुकसान पहुंचाने या मारने पर गैर जमानती 7 साल की सजा का प्रावधान है। जबकि, जुर्माने का कोई प्रावधान नहीं है। कई बार आबादी क्षेत्र में घुस जाने के दौरान लोग मगरमच्छ पर पत्थरों से हमला कर देते हैं। 

मगरमच्छ शेड्यूल-1 श्रेणी का वन्यजीव है। इनके प्राकृतिक आवास  से इन्हें कहीं ओर शिफ्ट करने से पहले वन्यजीव विभाग को मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक जयपुर व वाइल्ड लाइफ इंस्टिट्यूड आॅफ इंडिया देहरादून से परमिशन लेनी पड़ती है। हालांकि यह इलाका वन मंडल का है। मौके पर जाकर स्थिति देखने के बाद ही इस बारे में कुछ कहा जा सकता है। 
- अनुराग भटनागर, एसीएफ, वन्यजीव विभाग एवं मुकुंदरा हिल्स टाइगर रिजर्व कोटा

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