जैन धर्म की कठिन तपस्या का एक अनिवार्य हिस्सा और मूलगुण है केशलोच: मुनि अनुमान सागर
संत अहिंसा व्रतों के पालन के साथ ही शरीर से राग भाव को भी हटाते है।
जैन संत का केशलोंच कार्यक्रम कई बार तो पहले से ही निर्धारित होता है, लेकिन कई साधु इसे आकस्मिक भी करते हैं। साधु संत के केशलोंच कार्यक्रम को देखने के लिए दूर दूर से श्रद्धालु पहुंचते हैं। जैन साधु सिर, दाढ़ी व मूंछ के बालों को निकालते समय कंडे की राख का उपयोग करते हैं ताकि खून निकलने पर रोग न फैले।
टोडारायसिंह। जैन धर्म की कठिन तपस्या का एक अनिवार्य हिस्सा और मूलगुण है केशलोंच। जैन साधु अपने आत्मसौंदर्य को बढ़ाने के लिए कठिन साधना करते हैं। जैन संत जब अपने हाथों से घास- फूस की तरह सिर, दाढ़ी व मूंछ के बाल को आसानी से उखाड़ देते हैं तो यह पल देखते ही कई श्रद्धालु भाव विभोर हो जाते हैं। इस कठिन तपस्या के जरिए जैन साधु में शरीर की सुंदरता का मोह खत्म हो जाता है।
यह बात मुनि अनुमान सागर केशलोच के वक्त प्रवचन मे कही। उन्होंने कहा कि जैन साधु जब केशलोंच करते है तो आत्मा की सुंदरता कई गुना बढ़ जाती है। यहीं से संत का संतत्व निखरकर कुंदन बनता है। ऐसा नहीं है कि अपने हाथों से सिर के बाल, मूंछ और दाढ़ी के बाल तोड़ना एक बार की विधि हो। साल में तीन से चार बार केशलोंच की परम्परा होती है। जैन संत अहिंसा व्रतों के पालन के साथ ही शरीर से राग भाव को भी हटाते है। दिगंबर जैन संत एक केशलोंच करने के बाद दूसरा केशलोंच दो माह व अधिकतम चार माह में करते हैं। यानी केश के बड़े होते ही वह लोंच कर देते हैं। जैन संतों की तपस्या का यह अनिवार्य हिस्सा है।
दीक्षा लेने के बाद हर साधु को इस कठिन तपस्या से गुजरना होता है। केशलोंच करने के पीछे एक कारण यह भी है कि साधु किसी पर अवलंबित नहीं होते हैं। वह स्वावलंबी होते है। साधु शरीर की सुंदरता को नष्ट करने और अहिंसा धर्म का पालन करने के लिए केशलोंच करते है। लेकिन जब यह केशलोंच करते है तो इनके चेहरे पर मुस्कुराहट देखने को मिलती है। वहीं दूसरी तरफ श्रद्धालुओं का चेहरा भाव विभोर हो जाता है। बालों को उखाड़ते समय संत को उफ तक करने की इजाजत नहीं है। जैन संत का केशलोंच कार्यक्रम कई बार तो पहले से ही निर्धारित होता है, लेकिन कई साधु इसे आकस्मिक भी करते हैं। साधु संत के केशलोंच कार्यक्रम को देखने के लिए दूर दूर से श्रद्धालु पहुंचते हैं। जैन साधु सिर, दाढ़ी व मूंछ के बालों को निकालते समय कंडे की राख का उपयोग करते हैं ताकि खून निकलने पर रोग न फैले। पसीने के दौरान हाथ फिसल न जाए। केशलोंच करने के दौरान बालों को हाथों से खींचकर निकाला जाता है। अपने हाथों से बालों को उखाड़कर दिगंबर जैन संत इस बात का परिचय देते हैं कि जैन धर्म कहने का नहीं, सहने का धर्म है। बालों को उखाड़ने से बालों में होने वाले जीवों का जो घात हुआ है। उन्हें जो कष्ट हुआ है, उसका प्रायश्चित भी संत करते हैं। आचार्य, उपाध्याय व साधु केशलोंच के दिन उपवास रहते हैं। इस दिन अन्न व जल का ग्रहण नहीं करते हैं। कई साधु केशलोंच के दिन मौन भी रखते हैं। जैन समाज प्रवक्ता मुकुल जैन ने बताया कि इस अवसर पर जैन समाज अध्यक्ष संत कुमार जैन, पंडित संजीव कासलीवाल, धनराज जैन, अविनाश बाकलीवाल, जंबू जैन, मोनु जैन, चिराग, रजत, इगू, पिगू, अमन जैन, आर्जव वेद, सहित हजारों की संख्या मे महिला पुरुषों ने भाग लिया।

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