भारत की विदेश नीति में मंदिर डिप्लोमेसी की शानदार भूमिका

भारतीय मदद से बहाल किया गया

भारत की विदेश नीति में मंदिर डिप्लोमेसी की शानदार भूमिका

दक्षिण पूर्व एशिया जाने वाला लगभग हर भारतीय राजनेता भारत द्वारा पुनर्स्थापित मंदिरों का दौरा करता है।

दुबई। अयोध्या में राम मंदिर के उद्घाटन के बाद इसकी काफी ज्यादा बात हो रही है। मंदिर एक आस्था की जगह होने के साथ-साथ वियतनाम से लेकर अबू धाबी तक भारत की सॉफ्ट पावर डिप्लोमेसी के लिए एक टूल की तरह भी काम करते रहे हैं। भारतीय विदेश नीति में मंदिरों ने एक शानदार भूमिका निभाई है। मंदिरों ने भारत को दक्षिण पूर्व एशिया में नए राजनयिक संबंध खोलने की अनुमति दी है तो भारत की सॉफ्ट पावर को बढ़ावा देने के लिए भी मंदिरों का इस्तेमाल हुआ है। मंदिर कूटनीति ने दक्षिण पूर्व एशिया तक भारत की कूटनीतिक पहुंच में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। शीत युद्ध खत्म होने के बाद भारत को नए राजनयिक साझेदारों की तलाश थी। इस तलाश ने भारत को दक्षिण-पूर्व एशिया की ओर रुख करने के लिए मजबूर किया और इन देशों से जुड़ने के लिए भारत ने संस्कृति पर भरोसा किया। दक्षिण पूर्व एशिया के साथ भारत ने हिंदू और बौद्ध धर्म की अपनी साझा विरासत पर ध्यान केंद्रित किया। प्रसिद्ध राष्ट्रीय विरासत स्थलों को पुनर्स्थापित करके भारत ने विदेशों में अपनी सॉफ्ट पावर को बढ़ाया। 1986 में भारत कंबोडिया के प्रतिष्ठित अंगकोरवाट मंदिर के जीर्णोद्धार के लिए सहमत हुआ। इसके बाद भारत ने 12वीं शताब्दी के बौद्ध ता प्रोम मंदिर का जीर्णोद्धार किया। वियतनाम में भारत 2014 में हिंदू मंदिरों के संरक्षण पर सहमत हुआ। म्यांमार में क्षतिग्रस्त बागान पैगोडा को भारतीय मदद से बहाल किया गया। दक्षिण पूर्व एशिया जाने वाला लगभग हर भारतीय राजनेता भारत द्वारा पुनर्स्थापित मंदिरों का दौरा करता है।

पड़ोसी देशों से संबंध बेहतर करने में मंदिरों की भूमिका
मंदिर पड़ोसी देशों में भी भारतीय सॉफ्ट पावर के लिए भी एक टूल हैं। श्रीलंका में भारत ने तिरुकेथीस्वरम मंदिर के जीर्णोद्धार में मदद की, ये मंदिरदोनों देशों में तमिलों को सांस्कृतिक रूप से जोड़ता है। श्रीलंका में एक साल तक चले गृहयुद्ध के कारण यह मंदिर क्षतिग्रस्त हो गया था। भारत ने बांग्लादेश में मंदिरों के जीर्णोद्धार और भूटान में बौद्ध मठों के निर्माण में भी सक्रिय भूमिका निभाई है। भारत इस क्षेत्र का एकमात्र देश है जो अपने सभी पड़ोसियों के साथ सांस्कृतिक विरासत साझा करता है और मंदिर कूटनीति उन संबंधों को सुदृढ़ करने में मदद करती है।

मंदिर सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का भी प्रतीक बन रहे हैं भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर अपनी किताब व्हाई भारत मैटर्स में कहते हैं कि भारत का तात्पर्य आज भारत में देखे गए परिवर्तनों से है। उनका तर्क है कि देश सभ्यता के रूप में अपनी स्थिति को लेकर अधिक आश्वस्त और मुखर हुआ है। उस सांस्कृतिक आत्मविश्वास ने भारत की विदेश नीति को बदल दिया है। इसलिए विदेशों में मंदिर जैसे सांस्कृतिक प्रतीक तेजी से भारतीय संस्कृति के प्रसार और उत्थान का संकेत बन रहे हैं। इसी का असर है कि पीएम मोदी फरवरी में बीएपीएस मंदिर के उद्घाटन में मुस्लिम देश यूएई के अबू धाबी शहर जाएंगे। डॉ. जयशंकर ने किताब में बताया है कि भारत सरकार कैसे विदेशों में हिंदू मंदिरों का कायाकल्प कर रही है।

 

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