नई तकनीक : तीन व्यक्तियों के डीएनए से पैदा बच्चे आनुवंशिक बीमारियों से मुक्त, मां और पिता के अंडे और शुक्राणु को दाता महिला के अंडे से निषेचित कर तैयार करते हैं भ्रूण
यह एक ऐसा बदलाव है जो पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ता रहता है
ब्रिटेन में बच्चों को विनाशकारी और घातक बीमारियों से बचाने के लिए तीन लोगों के आनुवंशिक डीएनए का उपयोग किया गया है और इस नई तकनीक से आ बच्चों का जन्म संभव हुआ है
लंदन। ब्रिटेन में बच्चों को विनाशकारी और घातक बीमारियों से बचाने के लिए तीन लोगों के आनुवंशिक डीएनए का उपयोग किया गया है और इस नई तकनीक से आ बच्चों का जन्म संभव हुआ है। डॉक्टरों ने गुरुवार को यहां बताया कि ब्रिटिश वैज्ञानिकों द्वारा विकसित इस पद्धति में एक मां और पिता के अंडे और शुक्राणु को एक दाता महिला के दूसरे अंडे के साथ मिलाया जाता है। हालांकि यह तकनीक यहां एक दशक से वैध है, लेकिन बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक ये प्रमाण अब मिला है कि इससे लाइलाज माइटोकॉन्ड्रियल बीमारी से मुक्त बच्चों का जन्म हो रहा है।
बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक ये अवगुण आमतौर पर मां से बच्चे में जाते हैं जिससे गंभीर विकलांगता हो सकती है और कुछ बच्चों की जन्म के कुछ ही दिनों के भीतर ही मौत हो जाती है। दंपतियों को ये पता होता है कि अगर उनके पहले के बच्चे, परिवार के सदस्य या मां इससे प्रभावित हैं तो उन्हें खतरा है। इस बीच तीन-व्यक्ति तकनीक से पैदा हुए बच्चों को अपने अधिकांश डीएनए यानी आनुवंशिक खाका अपने माता-पिता से विरासत में मिलता है लेकिन इसका थोड़ा अंश लगभग 0.1 प्रतिशत दूसरी महिला से भी मिलता है। यह एक ऐसा बदलाव है जो पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ता रहता है। माइटोकॉन्ड्रिया रोग से मुक्त रहते हैं बच्चे माइटोकॉन्ड्रिया हमारी लगभग हर कोशिका के अंदर मौजूद सूक्ष्म संरचनाएं होती हैं। ये हमारे सांस लेने का कारण हैं क्योंकि ये ऑक्सीजन का उपयोग करके भोजन को ऊर्जा में परिवर्तित करती हैं जिसका उपयोग हमारा शरीर ईंधन के रूप में करता है।
लगभग 5,000 में से एक बच्चा माइटोकॉन्ड्रियल रोग के साथ पैदा होता है। चूंकि माइटोकॉन्ड्रिया केवल मां से बच्चे में ही स्थानांतरित होते हैं। इसलिए इस नवीन प्रजनन तकनीक में माता-पिता और एक अन्य महिला का उपयोग किया जाता है जो अपने स्वस्थ माइटोकॉन्ड्रिया दान करती है। इस तकनीक के तहत वैज्ञानिकों ने प्रयोगशाला में माता और दाता दोनों के अंडों को पिता के शुक्राणुओं से निषेचित किया है। इसके तहत भ्रूण तब तक विकसित होते हैं जब तक शुक्राणु और अंडे का डीएनए प्रो-न्यूक्लिया नामक संरचनाओं का एक जोड़ा नहीं बना लेता। इसमें बालों का रंग और कद की ऊंचाई जैसी मानव शरीर निर्माण के लिए आवश्यक रूपरेखाएं होती हैं। फिर दोनों भ्रूणों से प्रो-न्यूक्लिया निकाल दिए जाते हैं और माता-पिता के डीएनए को स्वस्थ माइटोकॉन्ड्रिया से भरे भ्रूण में डाल दिया जाता है। इससे उत्पन्न बच्चा आनुवंशिक रूप से अपने माता-पिता से संबंधित होता है लेकिन वो माइटोकॉन्ड्रियल रोग से मुक्त होता है। यह तकनीक एक दशक से भी पहले न्यूकैसल विश्वविद्यालय और न्यूकैसल अपॉन टाइन हॉस्पिटल्स एनएचएस फाउंडेशन ट्रस्ट द्वारा विकसित किया गया था और 2017 में एनएचएस के भीतर इस संदर्भ में एक विशेषज्ञ सेवा शुरू की गई थी।

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