
ईंधन की कीमतें
पेट्रोल-डीजल व रसोई गैस की बढ़ती कीमतें अब सरकार के लिए बड़ी चिंता का विषय बन गया है।
अन्तरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों की वजह से देश में पेट्रोल-डीजल व रसोई गैस की बढ़ती कीमतें अब सरकार के लिए बड़ी चिंता का विषय बन गया है। ऐसे में सरकार ईंधन के नए-नए विकल्पों पर विचार कर रही है। सबसे पहले सरकार ने जफरोटा से ईंधन बनाने का विकल्प रखा था। इसके लिए किसानों को बड़े पैमाने पर प्रोत्साहित किया गया, कई जगह इसके संयंत्र भी लगाए गए, मगर अपेक्षित नतीजे नहीं निकले। अब एथेनोल को कारगर विकल्प के बतौर देखा जा रहा है और सरकार इसके उत्पादन को बढ़ाने के लिए चीनी मिलों को प्रोत्साहित कर रही है। एथेनोल का उत्पादन गन्ने से होता है। चीनी फैक्ट्रियों में चीनी उत्पादन के बाद जो कचरा बच जाता है जिसे शीरा भी कहा जाता है। इस शीरा से एथेनोल बनता है। चीनी फैक्ट्रियां अभी एथेनोल की जगह शराब का उत्पादन कर लेती है। लेकिन सरकार ने अब एथेनोल के उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए इसकी कीमतों में एक रुपए की वृद्धि कर दी है ताकि एथेनोल के उत्पादन को प्रोत्साहन मिल सकें। एथेनोल की विशेषता यह है कि इसका उपयोग पेट्रोल में मिलाकर किया जा सकता है और स्वतंत्र रूप से भी इस्तेमाल किया जा सकता है। फिलहाल तेल कंपनियां इसे पेट्रोल में मिलाकर बेचती है जिससे पेट्रोल की कीमत कुछ कम बैठती है। एथेनोल पेट्रोल से सस्ता पड़ता है। सरकार ने अगले तीन-चार साल में एथेनोल की मिलावट को बीस फीसदी बढ़ाने का लक्ष्य रखा है। एथेनोल के उपयोग को देखते हुए परिवहन मंत्री नितिन गडकरी तो यहां तक कह चुके हैं कि वे अब वाहन निर्माता कंपनियों को कारों में पेट्रोल और एथेनोल दोनों से चलने वाले इंजन लगाने के निर्देश जारी करेंगे। उनका मानना है कि इससे पेट्रोल का दबाव कम होगा। एथेनोल का विकल्प अच्छा है, लेकिन सरकार ने यह नहीं बताया है कि एथेनोल का उत्पादन कितना हो सकेगा। इसके उत्पादन का मुख्य स्रोत गन्ना है और गन्ना बारहमासी फसल नहीं है। चीनी फैक्ट्रियां छह माह तक तो बंद रहती हैं। फिर घाटे की वजह कई चीनी मिले तो बंद पड़ी है और कई में पूरा उत्पादन नहीं हो पा रहा है। सरकार को एथेनोल का उत्पादन बढ़ाने के लिए पहले तो गन्ने की खेती करने वालों को प्रोत्साहित करना होगा, साथ ही चीनी मिलों को भी खड़ा करना होगा। यह भी एक चुनौती ही है।
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