भारत के रुख से ट्रूडो के तेवर पड़े नरम
अपने नौ दिवसीय अमेरिका के प्रवास दौरान भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने कई अवसरों पर पश्चिमी देशों के दोहरे मापदंडों पर जमकर प्रहार किए।
संयुक्त राष्ट्र महासभा का मंच हो या अमेरिका के न्यूयॉर्क शहर में आयोजित विदेश संबंधी परिषद की बैठक। वॉशिंगटन डीसी में अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन, रक्षा मंत्री लॉयड ऑस्टिन और वाणिज्य मंत्री जीना रेमेंडो से द्विपक्षीय संबंधों पर भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने बातचीत की। फिर अमेरिका के विभिन्न बुद्धिजीवी संगठनों की ओर से आयोजित कई गोष्ठियों में भाग लिया।
अपने नौ दिवसीय अमेरिका के प्रवास दौरान भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने कई अवसरों पर पश्चिमी देशों के दोहरे मापदंडों पर जमकर प्रहार किए। वहीं, संयुक्त राष्ट्र में सुधार की मांग की। निज्जर हत्याकांड पर लगाए गए आरोपों पर भारत का पक्ष प्रभावी तरीके से रखा। दूसरी ओर कनाडा के खिलाफ लिए गए भारत के कड़े फैसलों के बाद कनाडाई प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो के तेवर भी अब नरम पड़ने लगे हैं। वहीं जयशंकर ने भी खालिस्तानी अलगाववादियों के मसले पर दोनों देशों के बीच वार्ता की जरूरत बताई।
भारतीय विदेश मंत्री ने विभिन्न मुद्दों पर भारत का पक्ष न केवल प्रभावी तरीके से रखा बल्कि सख्त संदेश भी दिया कि अब वह समय नहीं रहा जब पश्चिम के कुछ देश अपने अनुसार दुनिया का एजेंडा तय करें। भारत, पश्चिमी देश नहीं है, लेकिन वह पश्चिम-विरोधी भी नहीं है। हमारा देश अब एक नई शक्ति के रूप में उभर रहा है। उसकी मजबूत विदेश नीति अपने राष्ट्रीय हितों के साथ ‘विश्व-मित्र’ की अवधारणा पर आधारित है।
खालिस्तानी अलगाववादी निज्जर की हत्या के संदर्भ में अभिव्यक्ति की आजादी, मानवाधिकार और लोकतंत्र के सवाल उठाने वालों से ही उन्होंने यह पूछ लिया कि पिछले कुछ अर्से से खालिस्तानी तत्वों की ओर भारतीय दूतावासों और कांसूलेट्स पर हुए हमलों और कनाडा में राजनयिकों की हत्या करने वाले पोस्टरों के साथ निकाली गई रैलियों पर आपकी ओर से कितनी चर्चाएं हुईं? प्रदर्शनों और रैलियों को अनुमति देने पर आप लोगों की प्रतिक्रियाएं क्या रहीं?
अपनी राजनीतिक सुविधा के लिए जो देश, अलगाव और आतंकी और हिंसक गतिविधियों को वैचारिक अभिव्यक्ति की आड़ देकर किसी लोकतांत्रिक देश की संप्रभुता और अखंडता को खतरा पहुंचाने वालों को प्रश्रय दे रहे हों, यह कहां तक उचित है? इस पर उन देशों से सवाल क्यों नहीं पूछे जाते? भारत लोकतांत्रिक देश है उसकी कभी ऐसी नीति नहीं रही है।
पिछले सप्ताह कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो द्वारा अपनी संसद में निज्जर की हत्या में भारतीय एजेंटों का हाथ होने का आरोप लगाया गया था। इस हत्याकांड की जांच का खुलासा न तो उसकी अपनी खुफिया एजेंसियां कर पाईं। और ना ही जांच पूरी हुई। उनके पास पुख्ता सबूत भी नहीं है। सबूत हैं तो भारत को क्यों नहीं दिए जा रहे? आश्चर्य है कि इस मामले में कनाडा को अपने पश्चिमी मित्र देशों का साथ भी नहीं मिल पा रहा है। आतंकवादी तत्व प्रश्रय देने वाले देश में विशेष समुदाय के लोगों को कनाडा छोड़कर चले जाने की धमकियां दे रहे हैं।
सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि श्रीलंका और बांग्लादेश भी कनाडा पर आतंकवादियों को संरक्षण और शरण देने का खुलकर आरोप लगा रहे हैं। हाल ही बांग्लादेश के विदेश मंत्री ए.के. मोमेन ने कनाडा को हत्यारों का गढ़ बताया है। उन्होंने बांगलादेश के जनक शेख मुजीबुर रहमान के हत्यारे का प्रत्यर्पण नहीं करने के लिए कनाडा की तीखी आलोचना की। इससे पूर्व श्रीलंका के विदेश मंत्री अली साबरी ने भी कनाडा पर बिना सबूत सौंपे भारत पर लगाए जा रहे आरोपों की निंदा की है। कनाडा को श्रीलंका में लिट्टे की ओर से किए गए नरसंहार में हिंसा नजर नहीं आती। उलटे वह इस मामले में श्रीलंका की आलोचना करता आया है। ऐसे में भारत, श्रीलंका और बांग्लादेश को मिलकर यह आवाज उठाने की जरूरत है कि पश्चिम को अब अपना नजरिया बदलना होगा।
मुद्दा सिर्फ यही नहीं, ट्रूडो ने तो अपनी संसद में एक नाजी सैनिक अफसर को सम्मानित कर दिया। बाद में इस कृत्य पर उन्हें सार्वजनिक रूप से माफी मांगनी पड़ी। इस पर उन्हें पोलैंड जैसे नाटो देश के विरोध को भी झेलना पड़ा। पोलैंड अब उससे उस नाजी सैन्य अधिकारी को सौंपने की मांग कर रहा है। कनाडा महंगाई और आवासीय समस्या से अलग जूझ रहा है। ट्रूडो की लोकप्रियता में गिरावट आ रही है। ट्रूडो के आरोप के बाद, भारत की ओर से जब एक के बाद एक जवाबी कदमों से अब उनके तेवर भी ढीले पड़े हैं। नरम रुख अपनाते हुए उन्होंने भारत को एक उभरती अर्थव्यवस्था बताते हुए उसके बढ़ते वैश्विक कद को स्वीकारा है। वहीं, अब दोनों देशों के पारंपरिक मैत्री संबंधों को बरकरार रखने का भारत से आग्रह भी कर रहे हैं।
-महेश चन्द्र शर्मा
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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