मन की बात कार्यक्रम : खुदीराम की फांसी से गूंजी आज़ादी की पुकार, अगस्त बना क्रांति का महीना; मोदी ने कहा- किले हमारी संस्कृति के प्रतीक

स्वदेशी आंदोलन ने स्थानीय उत्पादों को उर्जा दी : मोदी

 मन की बात कार्यक्रम : खुदीराम की फांसी से गूंजी आज़ादी की पुकार, अगस्त बना क्रांति का महीना; मोदी ने कहा- किले हमारी संस्कृति के प्रतीक

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा है कि स्वच्छ भारत मिशन की ताकत और इसकी जरूरत आज भी वैसी ही है और 11 वर्षों में ‘स्वच्छ भारत मिशन’ एक जन-आंदोलन बन गया है

नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा है कि स्वच्छ भारत मिशन की ताकत और इसकी जरूरत आज भी वैसी ही है और 11 वर्षों में ‘स्वच्छ भारत मिशन’ एक जन-आंदोलन बन गया है। मोदी ने अपने मासिक कार्यक्रम ‘मन की बात’ में आज कहा कि कुछ लोगों को कभी-कभी कोई काम नामुमकिन सा लगता है कि क्या ये भी हो पाएगा? लेकिन, जब देश एक सोच पर एक साथ आ जाए, तो असंभव भी संभव हो जाता है। ‘स्वच्छ भारत मिशन’ इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। जल्द ही इस मिशन के 11 साल पूरे होंगे। लेकिन, इसकी ताकत और इसकी जरूरत आज भी वैसी ही है। इन 11 वर्षों में ‘स्वच्छ भारत मिशन’ एक जन-आंदोलन बना है। लोग इसे अपना फर्ज मानते हैं और यही तो असली जन-भागीदारी है।

उन्होंने कहा कि हर साल होने वाले स्वच्छ सर्वेक्षण ने इस भावना को और बढ़ाया है। इस साल देश के 4500 से ज्यादा शहर और कस्बे इससे जुड़े और 15 करोड़ से अधिक लोगों ने इसमें भाग लिया। ये कोई सामान्य संख्या नहीं है। ये स्वच्छ भारत की आवाज है। प्रधानमंत्री ने कहा कि स्वच्छता को लेकर हमारे शहर और कस्बे अपनी जरूरतों और माहौल के हिसाब से अलग-अलग तरीकों से काम कर रहे हैं। और इनका असर सिर्फ इन शहरों तक नहीं है, पूरा देश इन तरीकों को अपना रहा है। उत्तराखंड में कीर्तिनगर के लोग, पहाड़ों में कचरा प्रबंधन की नई मिसाल कायम कर रहे हैं। ऐसे ही मेंगलुरु में तकनीक से ऑर्गेनिक कचरा प्रबंधन का काम हो रहा है। अरुणाचल में एक छोटा सा शहर रोइंग है। एक समय था जब यहाँ लोगों के स्वास्थ्य के सामने अपशिष्ट प्रबंधन बहुत बड़ी चुनौती थी। यहाँ के लोगों ने इसकी जिम्मेदारी ली। ‘ग्रीन रोइंग इनिशिएटिव शुरू हुआ और फिर अपशिष्ट पुनर्चक्रण से पूरा एक पार्क बना दिया गया। अहमदाबाद में रिवर फ्रंट पर सफाई ने भी सबका ध्यान खींचा है।

उन्होंने कहा कि भोपाल की एक टीम का नाम है ‘सकारात्मक सोच’। इसमें 200 महिलाएं हैं। ये सिर्फ सफाई नहीं करती, सोच भी बदलती हैं। एक साथ मिलकर शहर के 17 पार्कों की सफाई करना, कपड़े के थैले बांटना, इनका हर कदम एक संदेश है। ऐसे प्रयासों की वजह से ही भोपाल भी अब स्वच्छ सर्वेक्षण में काफी आगे आ गया है। लखनऊ की गोमती नदी टीम का जिक्र भी जरूरी है। 10 साल से हर रविवार, बिना थके, बिना रुके इस टीम के लोग स्वच्छता के काम में जुटे हैं। गोवा के पणजी शहर का उदाहरण भी प्रेरक है। वहां कचरे को 16 श्रेणी में बांटा जाता है और इसका नेतृत्व भी महिलाएं कर रही हैं। पणजी को तो राष्ट्रपति पुरुस्कार भी मिला है। स्वच्छता सिर्फ एक वक्त का, एक दिन का काम नहीं है। जब हम साल में हर दिन, हर पल स्वच्छता को प्राथमिकता देंगें तभी देश स्वच्छ रह पाएगा।

किले हमारी संस्कृति के प्रतीक : मोदी

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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा है कि किले हमारी संस्कृति के प्रतीक हैं, जहां संस्कार और स्वाभिमान आज भी इन किलों की ऊंची-ऊंची दीवारों से झाँकते हैं। उन्होने कहा कि हम सभी को गर्व से भर देने वाली यूनेस्को से एक और खबर आई है । यूनेस्को ने 12 मराठा किलों को वैश्विक धरोहर स्थल के रूप में मान्यता दी है। ग्यारह किले महाराष्ट्र में, एक किला तमिलनाडु में। हर किले से इतिहास का एक-एक पन्ना जुड़ा है। हर पत्थर, एक ऐतिहासिक घटना का गवाह है। सल्हेर का किला, जहाँ मुगलों की हार हुई। शिवनेरी, जहाँ छत्रपति शिवाजी महाराज का जन्म हुआ। यह किला ऐसा जिसे दुश्मन भेद न सके। खानदेरी का किला, समुद्र के बीच बना अद्भुत किला। दुश्मन उन्हें रोकना चाहते थे, लेकिन शिवाजी महाराज ने असंभव को संभव करके दिखा दिया। प्रतापगढ़ का किला, जहाँ अफजल खान पर जीत हुई, उस गाथा की गूंज आज भी किले की दीवारों में समाई है। विजयदुर्ग, जिसमें गुप्त सुरंगें थी, छत्रपति शिवाजी महाराज की दूरदर्शिता का प्रमाण इस किले में मिलता है। मैंने कुछ साल पहले रायगढ़ का दौरा किया था। छत्रपति शिवाजी महाराज की प्रतिमा के सामने नमन किया था। ये अनुभव जीवन भर मेरे साथ रहेगा।

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उन्होंने कहा देश के और हिस्सों में भी ऐसे ही अद्भुत किले हैं, जिन्होंने आक्रमण झेले, खराब मौसम की मार झेली, लेकिन आत्मसम्मान को कभी भी झुकने नहीं दिया। राजस्थान का चित्तौड़गढ़ का किला, कुंभलगढ़ किला, रणथंभौर किला, आमेर किला, जैसलमेर का किला तो विश्व प्रसिद्ध है। कर्नाटक में गुलबर्गा का किला भी बहुत बड़ा है। चित्रदुर्ग के किले की विशालता भी आपको कौतूहल से भर देगी कि उस जमाने में ये किला बना कैसे होगा!

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प्रधानमंत्री ने कहा उत्तर प्रदेश के बांदा में कालिंजर किला है। महमूद गजनवी ने कईं बार इस किले पर हमला किया और हर बार असफल रहा। बुन्देलखंड में ऐसे कई किले हैं - ग्वालियर, झांसी, दतिया, अजयगढ़, गढ़कुंडार, चँदेरी। ये किले सिर्फ ईंट-पत्थर नहीं है, ये हमारी संस्कृति के प्रतीक हैं। संस्कार और स्वाभिमान, आज भी इन किलों की ऊंची-ऊंची दीवारों से झाँकते हैं। मैं सभी देशवासियों से आग्रह करता हूँ, इन किलों की यात्रा करें, अपने इतिहास को जानें, गौरव महसूस करें।

स्वदेशी आंदोलन ने स्थानीय उत्पादों को उर्जा दी : मोदी
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा है कि स्वदेशी आंदोलन ने स्थानीय उत्पादों, खासकर हैंडलूम को एक नई ऊर्जा दी थी और इसी स्मृति में देश हर साल सात अगस्त को ‘राष्ट्रीय हैंडलूम दिवस’ मनाता है। उन्होने कहा कि “आप कल्पना कीजिए, बिल्कुल भोर का वक्त, बिहार का मुजफ्फरपुर शहर, तारीख है, 11 अगस्त 1908 हर गली, हर चौराहा, हर हलचल उस समय जैसे थमी हुई थी। लोगों की आँखों में आँसू थे, लेकिन दिलों में ज्वाला थी। लोगों ने जेल को घेर रखा था, जहां एक 18 साल का युवक, अंग्रेजों के खिलाफ अपना देश-प्रेम व्यक्त करने की कीमत चुका रहा था। जेल के अंदर, अंग्रेज अफसर,एक युवा को फांसी देने की तैयारी कर रहे थे। उस युवा के चेहरे पर भय नहीं था, बल्कि गर्व से भरा हुआ था। वो गर्व, जो देश के लिए मर-मिटने वालों को होता है। वो वीर, वो साहसी युवा थे, खुदीराम बोस। सिर्फ 18 साल की उम्र में उन्होंने वो साहस दिखाया, जिसने पूरे देश को झकझोर दिया। तब अखबारों ने भी लिखा था –“खुदीराम बोस जब फांसी के फंदे की ओर बढ़े, तो उनके चेहरे पर मुस्कान थी”। ऐसे ही अनगिनत बलिदानों के बाद, सदियों की तपस्या के बाद, हमें आज़ादी मिली थी। देश के दीवानों ने अपने रक्त से आजादी के आंदोलन को सींचा था।”

उन्होंने कहा कि अगस्त का महीना इसलिए तो क्रांति का महीना है। एक अगस्त को लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक की पुण्यतिथि होती है। इसी महीने 8 अगस्त को महात्मा गाँधी के नेतृत्व में ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ की शुरुआत हुई थी। फिर आता है 15 अगस्त, हमारा स्वतंत्रता दिवस, हम अपने स्वतंत्रता सेनानियों को याद करते हैं, उनसे प्रेरणा पाते हैं, लेकिन साथियों, हमारी आजादी के साथ देश के बंटवारे की टीस भी जुड़ी हुई है, इसलिए हम 14 अगस्त को ‘विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस’ के रूप में मनाते हैं।

प्रधानमंत्री ने कहा कि सात अगस्त 1905 को एक और क्रांति की शुरुआत हुई थी। स्वदेशी आंदोलन ने स्थानीय उत्पादों और खासकर हैंडलूम को एक नई ऊर्जा दी थी। इसी स्मृति में देश हर साल 7 अगस्त को ‘राष्ट्रीय हैंडलूम दिवस’ मनाता है। इस साल 7 अगस्त को ‘राष्ट्रीय हैंडलूम दिवस’ के 10 साल पूरे हो रहे हैं। आजादी की लड़ाई के समय जैसे हमारी खादी ने आजादी के आंदोलन को नई ताकत दी थी, वैसे ही आज जब देश, विकसित भारत बनने के लिए कदम बढ़ा रहा है, तो टेक्सटाइल सेक्टर देश की ताकत बन रहा है। इन 10 वर्षों में देश के अलग-अलग हिस्सों में इस क्षेत्र से जुड़े लाखों लोगों ने सफलता की कईं गाथाएं लिखी हैं।

महाराष्ट्र के पैठण गाँव की कविता धवले पहले एक छोटे से कमरे में काम करती थीं - न जगह थी और न ही सुविधा। सरकार से मदद मिली, अब उनका हुनर उड़ान भर रहा है। वो तीन गुणा ज्यादा कमा रही हैं। खुद अपनी बनाई पैठणी साड़ियां बेच रही हैं। उड़ीसा के मयूरभंज में भी सफलता की ऐसी ही कहानी है। यहाँ 650 से ज्यादा आदिवासी महिलाओं ने संथाली साड़ी को फिर से जीवित किया है। अब ये महिलाएं हर महीने हजारों रुपए कमा रही हैं। ये सिर्फ कपड़ा नहीं बना रही, अपनी पहचान गढ़ रही हैं। बिहार के नालंदा से नवीन कुमार की उपलब्धि भी प्रेरणादायक है। उनका परिवार पीढ़ियों से इस काम से जुड़ा है। लेकिन सबसे अच्छी बात ये कि उनके परिवार ने अब इस क्षेत्र में आधुनिकता का भी समावेश किया है। अब उनके बच्चे हैंडलूम तकनीक की पढ़ाई कर रहे हैं। बड़े ब्रांडों में काम कर रहे हैं। ये बदलाव सिर्फ एक परिवार का नहीं है, ये आसपास के अनेक परिवारों को आगे बढ़ा रहा है।

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