कांवड़ यात्रा भोजनालय विवाद पर सुप्रीम कोर्ट का निर्देश, कहा- कांवड़ यात्रा में भोजनालय मालिक लाइसेंस और पंजीकरण प्रमाणपत्र प्रदर्शित करें

ग्राहकों को यह जानने का अधिकार

कांवड़ यात्रा भोजनालय विवाद पर सुप्रीम कोर्ट का निर्देश, कहा- कांवड़ यात्रा में भोजनालय मालिक लाइसेंस और पंजीकरण प्रमाणपत्र प्रदर्शित करें

उच्चतम न्यायालय ने कांवड़ यात्रा मार्ग के भोजनालयों पर 'क्यूआर कोड' प्रदर्शित करने संबंधी विवाद पर मंगलवार को राज्य सरकारों को कोई निर्देश नहीं दिया

नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने कांवड़ यात्रा मार्ग के भोजनालयों पर 'क्यूआर कोड' प्रदर्शित करने संबंधी विवाद पर मंगलवार को राज्य सरकारों को कोई निर्देश नहीं दिया, लेकिन दुकानदारों से कहा कि वे लाइसेंस और पंजीकरण प्रमाणपत्र प्रदर्शित करें।

न्यायमूर्ति एम एम सुंदरेश और न्यायमूर्ति एन के सिंह की पीठ ने कहा कि ग्राहकों को यह जानने का अधिकार है कि क्या संबंधित भोजनालय में पहले मांसाहारी भोजन परोसा जाता था। अगर कोई केवल कांवड़ यात्रा के दौरान शाकाहारी भोजन परोसता है तो इसके बारे में ग्राहकों को जानकारी होनी चाहिए। पीठ ने कहा कि "हमें सूचित किया गया है कि आज यात्रा का अंतिम दिन है। इस समय हम सभी संबंधित होटल मालिकों से अनुरोध करते हैं कि वे वैधानिक रूप से आवश्यक लाइसेंस और पंजीकरण प्रमाणपत्र प्रदर्शित करने के आदेश का पालन करें। हम अन्य विवादित मुद्दों पर चर्चा नहीं कर रहे हैं।"

पीठ ने कांवड़ यात्रा मार्ग के भोजनालयों पर 'क्यूआर कोड' प्रदर्शित करने संबंधी उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड सरकारों के निर्देश को चुनौती देने वाली याचिका पर यह कहते हुए कोई भी आदेश जारी करने से इनकार कर दिया कि मंगलवार (22 जुलाई) यात्रा का आखिरी दिन है।

प्रो. अपूर्वानंद झा की ओर से दायर इस याचिका में दलील दी गई थी कि ये निर्देश शीर्ष अदालत के 2024 के एक आदेश के खिलाफ है। अदालत ने अपने आदेश में कहा था कि कांवड़ यात्रा मार्ग पर विक्रेताओं को अपनी पहचान उजागर करने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता। ऐसे निर्देश संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 17, 19 और 21 का उल्लंघन है।

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याचिकाकर्ता ने उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड राज्यों को सभी क्यूआर कोड-आधारित पहचान संबंधी अनिवार्यताओं या किसी भी अन्य ऐसी व्यवस्था को तुरंत वापस लेने का निर्देश देने की अपील की, जिससे विक्रेताओं के मालिक होने की पहचान या धार्मिक पहचान का खुलासा होता हो। याचिका में राज्यों को हलफनामा दायर करके यह बताने का निर्देश देने की भी अपील की गई थी कि वर्तमान अनिवार्यताएं संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन कैसे नहीं करती हैं।

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