आखिर क्यों घट रही है डॉल्फिन की आबादी
पशु-पक्षियों और जलीय जीवों को पर्यावरण प्रदूषण से बहुत नुक्सान पहुंच रहा
पर्यावरण प्रदूषण की समस्या आज भारत ही नहीं, बल्कि संपूर्ण विश्व की एक बड़ी समस्या बनकर उभरी है।
पर्यावरण प्रदूषण की समस्या आज भारत ही नहीं, बल्कि संपूर्ण विश्व की एक बड़ी समस्या बनकर उभरी है। मनुष्य तो मनुष्य पशु-पक्षियों और जलीय जीवों को पर्यावरण प्रदूषण से बहुत नुक्सान पहुंच रहा है, लेकिन इनका कोई धणी-धोरी नजर नहीं आता। यह बहुत ही दुखद है कि आज हमारे देश में पर्यावरण प्रदूषण से जीव-जंतुओं की जान पर बन आई है। जल में होने वाले रासायनिक प्रदूषण से आज जलीय जीवों की अनेक प्रजातियां खतरे में हैं। जल में पालीथीन युक्त कचरा भी जलीय जीवों के लिए एक प्रमुख खतरा बनकर उभरा है। आज इंसानी दरियादिली के लिए दुनियाभर में मशहूर गंगा नदी डॉल्फिन लगातार खतरे में हैं। जल में रासायनिक तत्वों की अधिकता के साथ ही यह कई बार मछली पकड़ने वालों के जाल में उलझ जाती हैं और इन्हीं चीजों ने इन्हें खतरे में डाल दिया है। गंगा और गंगे डॉल्फिन का गहरा रिश्ता है। गंगा को भारत की सबसे पवित्र नदियों में से एक माना जाता रहा है, लेकिन देश में राष्टÑीय जलीय जीव के रूप में जानी जाने वाली गंगे डॉल्फिन अब गंगा की कम होती निर्मलता-स्वच्छता की ही तरह खत्म हो रही है। आज से चार-पांच साल पहले एक टीवी चैनल के हवाले से यह खबरें आईं थीं कि गंगा में सिर्फ 3500 गंगे डॉल्फिन ही बचीं हैं। एक अन्य उपलब्ध जानकारी के अनुसार असम में गंगा डॉल्फिन की गणना तीन नदियों में की गई थी तथा ब्रह्मपुत्र नद में इनकी संख्या 877 पाई गई थी। वहीं, राज्य में इनकी कुल संख्या 962 थी। इसके संरक्षण के लिए असम सरकार ने भी इसे राज्य जलीय जीव घोषित किया है।
कुछ साल पहले वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया के वैज्ञानिकों ने यह चिंताएं जताईं थी कि गंगा में पाई जाने वाली डॉल्फिन का अस्तित्व गंगा से जुड़ा हुआ है और अगर गंगा दूषित होती रही, तो डॉल्फिन भी विलुप्त हो जाएगी। तीव्र औधोगिकीकरण, शहरीकरण, तेज विकास गतिविधियों,मानवीय गतिविधियों के कारण जैसे-जैसे गंगा मैली होती जा रही है, उससे न सिर्फ डॉल्फिन, बल्कि गंगा का अस्तित्व भी खतरे में है। डॉल्फिन के अलावा गंगा में पाए जाने वाले कछुए और घड़ियाल जैसे कई जलीय जीव भी अब खतरे की जद में आ गए हैं। गौरतलब यह भी है कि भारत में डॉल्फिन गंगा और ब्रह्मपुत्र नदी में पाई जाती है और यह मीठे पानी का जीव है। गंगा डॉल्फिन भोजन के माध्यम से रसायनों के खतरनाक मिश्रण के संपर्क में आ रही है । इस संदर्भ में एक्सपर्ट्स यह कहना है कि डॉल्फिन जिन छोटी मछलियों को अपने खाने के रूप में लेती है, उनमें 39 किस्म के खतरनाक केमिकल्स मौजूद हैं। दरअसल हेलियन में प्रकाशित भारतीय वन्यजीव संस्था के सर्वे में दावा किया गया है कि मीठे पानी में रहने वाले जलीय जीवों के फूड से खतरनाक किस्म के केमिकल्स का पता चला है।
रिपोर्ट में यह बात सामने आई है कि गंगा में रहने वाली गंगा डाल्फिन की आबादी 1957 से 2025 में यानी मात्र 68 सालों में आधी हो गई है, जो कि एक बहुत बड़े खतरे का संकेत है।अगर यही स्थितियां रहीं तो शायद आने वाली पीढ़ियां गंगा डाल्फिन का दीदार ही न कर पाएं और यह कहीं किताबों का हिस्सा बनकर ही न रह जाएं। रिपोर्ट में यह भी दावा किया गया है कि दुनियाभर में डॉल्फिन की केवल पांच प्रजातियां ही बची हैं और वे भी गंभीर खतरों का सामना कर रहीं हैं। विभिन्न अनुपचारित औद्योगिक अपशिष्ट एनदियों में घरेलू अपशिष्टों का बेरोकटोक बहाव, लगातार बढ़ता प्रदूषण एप्लास्टिक प्रदूषण, विभिन्न भारी धातुओं के प्रदूषण के कारण डॉल्फिन की सेहत और प्रजनन क्षमता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। इतना ही नहीं, अवैध खनन और नदियों में तेज वाइब्रेशन पैदा करने वाले जहाजों के कारण, तथा विभिन्न सिंचाई परियोजनाओं के निर्माण से भी डॉल्फिन को नुकसान पहुंचता है।
उपलब्ध जानकारी के अनुसार नदियों में लगातार जलस्तर में कमी ,अवैध शिकार, बांधों का निर्माण और जलवायु परिवर्तन भी कहीं न कहीं प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप से डॉल्फिन अस्तित्व के लिए बड़ी व गंभीर मुश्किलें पैदा कर रहे हैं। ये अल्ट्रासोनिक ध्वनियां उत्सर्जित करके शिकार करतीं हैं, जो मछलियों और अन्य शिकार से टकराती हैं, जिससे उन्हें एक छवि देखने में मदद मिलती है। यह सूंघने की अपार क्षमताओं से अपना शिकार और भोजन तलाशती है। यह मांसाहारी प्राचीन जलीय जीव जो करीब 10 करोड़ साल से भारत में मौजूद है। विकीपीडिया पर उपलब्ध जानकारी के अनुसार मादा की औसत लम्बाई नर डोल्फिन से अधिक होती है। यह एक स्तनपायी जीव है और इसलिए पानी में सांस नहीं ले सकता है, इसलिए इसे हर 30-120 सेकंड में पानी की सतह पर आना पड़ता है।
भारत सरकार ने डॉल्फिनों के संरक्षण के लिए 5 अक्टूबर 2009 में इस जलीय जीव को राष्ट्रीय जलीय जीव घोषित किया। इतना ही नहीं, हमारे देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने साल 2020 में डॉल्फिन संरक्षण के लिए प्रोजेक्ट डॉल्फिन भी लांच किया, जिसका उद्देश्य मीठे पानी और गंगा डॉल्फिन दोनों के संरक्षण के साथ साथ इनके प्राकृतिक आवास को भी संरक्षित करना था। अंत में यही कहूंगा कि तमाम प्रयासों के बावजूद भी गंगा डॉल्फिन अंतर्राष्टÑीय प्रकृति संरक्षण संघ की लुप्त प्राय सूची में शामिल है। सरकार द्वारा शुरू किया जा रहा प्रोजेक्ट डॉल्फिन इस दिशा में महत्वपूर्ण कदम हो सकता है। हमें इसे बचाने के लिए कृत संकल्पित होकर अपने यथेष्ठ प्रयासों को अंजाम देना होगा।
-सुनील कुमार महला
यह लेखक के अपने विचार हैं।

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