विकास के लिए अनुसंधान और नवाचार
नई ऊंचाइयों का अवसर
भारत अब वैश्विक मंच पर तकनीकी महाशक्ति बनने के लिए दृढ़ संकल्पित है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में अनुसंधान, विकास और नवाचार के लिए 1 लाख करोड़ रुपये की मंजूरी इस बात का प्रमाण है कि भारत अब वैश्विक मंच पर तकनीकी महाशक्ति बनने के लिए दृढ़ संकल्पित है। यह भारत की वैज्ञानिक और तकनीकी महत्वाकांक्षाओं के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हो सकता है। भारत लंबे समय से तकनीकी नवाचारों का उपभोक्ता रहा है, लेकिन अब वह स्थिति बदलने के लिए तैयार है। यह निवेश भारत को महज उपभोक्ता से निर्माता बनाने की दिशा में निर्णायक कदम है।
भारत की वैज्ञानिक परंपरा :
दुनिया में इस समय तकनीकी प्रभुत्व की जो दौड़ चल रही है, उसमें भारत को एक सार्थक भूमिका निभानी है। अमेरिका और चीन जैसे देश आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, कंप्यूटिंग, अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी और सेमीकंडक्टर जैसी उच्च तकनीकों पर हावी होने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। यूरोपीय संघ और रूस भी अपनी तकनीकी संप्रभुता की दिशा में भारी निवेश कर रहे हैं। इस पृष्ठभूमि में भारत का यह कदम एक आवश्यक और रणनीतिक निर्णय के रूप में उभरता है। भारत की वैज्ञानिक परंपरा अत्यंत गौरवशाली रही है। प्राचीन काल में आर्यभट्ट, भास्कराचार्य, चरक, सुश्रुत और ब्रह्मगुप्त जैसे वैज्ञानिकों द्वारा किए गए योगदान को आज भी दुनिया में मान्यता प्राप्त है।
आगे बढ़ने की क्षमता :
आधुनिक भारत में होमी भाभा, विक्रम साराभाई, सी.वी.रमन और ए.पी.जे,अब्दुल कलाम जैसे वैज्ञानिकों ने विज्ञान के क्षेत्र में भारत को पुन: स्थापित करने का काम किया। लेकिन संसाधनों की कमी और नीति निर्माण में उचित प्राथमिकता के अभाव ने इन प्रयासों की गति को सीमित कर दिया। यह नया फंड उस लंबे समय से रुके हुए वैज्ञानिक जागरण को पुनर्जीवित कर सकता है। क्वांटम कंप्यूटिंग जैसे अत्याधुनिक क्षेत्रों में भारत अभी भी अपनी प्रारंभिक अवस्था में है, लेकिन गणित और भौतिकी की हमारी गहरी समझ हमें इस क्षेत्र में तेजी से आगे बढ़ने की क्षमता देती है। भारत में क्वांटम तकनीक पर शोध हो रहा है, लेकिन यह संसाधनों के मामले में बिखरा हुआ और सीमित है।
डेटा का अनूठा भंडार :
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के क्षेत्र में भारत के इंजीनियर और वैज्ञानिक दुनिया की अग्रणी टेक्नोलॉजी कंपनियों में काम कर रहे हैं, लेकिन देश में अभी तक एआई पर आधारित कोई बड़ा स्वदेशी प्लेटफॉर्म विकसित नहीं हुआ है। भारत के पास बहुभाषिकता, विविध सामाजिक संदर्भ और विशाल डेटा का अनूठा भंडार है, जो एआई के विकास के लिए एक अमूल्य संसाधन है। यदि इस फंड का उपयोग भारतीय भाषाओं, कृषि, स्वास्थ्य, शिक्षा और न्याय प्रणाली जैसे क्षेत्रों में एआई समाधान विकसित करने के लिए किया जाता है, तो भारत वैश्विक स्तर पर अग्रणी भूमिका निभा सकता है। भारत की भौगोलिक स्थिति और जलवायु विविधता उसे हरित ऊर्जा के क्षेत्र में अनूठा अवसर प्रदान करती है।
आत्मनिर्भर बनना :
इन संसाधनों के कुशल दोहन के लिए बेहतर तकनीकों की आवश्यकता है। उन्नत सौर पैनल, स्मार्ट ग्रिड, बैटरी भंडारण तकनीक और हाइड्रोजन ऊर्जा जैसे क्षेत्रों में अनुसंधान और नवाचार भारत को न केवल अपनी ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने में मदद कर सकते हैं, बल्कि दुनिया को स्वच्छ ऊर्जा समाधान भी प्रदान कर सकते हैं। सेमीकंडक्टर या चिप निर्माण में भारत का प्रवेश हाल ही में हुआ है, लेकिन वैश्विक चिप संकट ने इस क्षेत्र के रणनीतिक महत्व को उजागर किया है। अमेरिका और चीन जैसे देश अपने-अपने चिप कानूनों के माध्यम से भारी निवेश कर रहे हैं। भारत को डिजाइन, निर्माण और परीक्षण की पूरी शृंखला में आत्मनिर्भर बनना चाहिए। इसके लिए बुनियादी ढांचे, मानव संसाधन और नीतिगत समर्थन की आवश्यकता है।
दुनिया में सम्मान है :
यह फंड भारत को वैश्विक सेमीकंडक्टर हब बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। भारत की अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी का दुनिया में पहले से ही सम्मान है। इसरो ने सीमित संसाधनों के साथ अनूठी उपलब्धियां हासिल की हैं। चंद्रयान और मंगलयान मिशन की सफलता इसके उदाहरण हैं। अब इन सफलताओं को और ऊंचाइयों पर ले जाने का समय आ गया है। गगनयान के जरिए इंसानों को अंतरिक्ष में भेजने की भारत की महत्वाकांक्षा अब पहले से कहीं ज्यादा व्यावहारिक हो गई है। भारत को अंतरिक्ष में संचार, निगरानी और संसाधन खनन जैसी गतिविधियों में अपनी भूमिका निभानी होगी। इसके लिए शोध, तकनीक निर्माण और निजी क्षेत्र की भागीदारी को बढ़ावा देना होगा। जैव प्रौद्योगिकी और फार्मास्यूटिकल्स में भारत ने कोविड-19 महामारी के दौरान अपनी क्षमता का प्रदर्शन किया है।
नई ऊंचाइयों का अवसर :
अब समय आ गया है कि बायोसिंथेटिक दवाओं, जीन थेरेपी, व्यक्तिगत चिकित्सा और जैव सूचना विज्ञान जैसे क्षेत्रों में अग्रणी बनने का प्रयास किया जाए। इसके लिए उच्च गुणवत्ता वाली अनुसंधान प्रयोगशालाओं, निवेश और वैश्विक सहयोग की आवश्यकता होगी। रक्षा प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भारत की जरूरतें विशिष्ट हैं। हमारी भौगोलिक, सामरिक और जलवायु विशेषताओं के अनुसार उपकरण और तकनीक विकसित करना अनिवार्य है। चाहे पहाड़ी इलाकों में काम करने वाले ड्रोन हों या साइबर सुरक्षा प्रणाली, भारत को सभी में आत्मनिर्भर बनने की जरूरत है। यह फंड रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन और निजी कंपनियों को नई ऊंचाइयों पर पहुंचने का अवसर प्रदान कर सकता है।
-देवेन्द्रराज सुथार
यह लेखक के अपने विचार हैं।

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