कम उम्र में बढ़ रहे हार्ट अटैक के मामलों के बीच उम्मीद की रोशनी, आयुर्वेद से भी होगा हृदय रोगों का उपचार
प्राचीन चिकित्सा विज्ञान और आधुनिक जांच तकनीक से किया जा रहा हृदय रोगों का इलाज
आज की तेज रफ्तार जीवनशैली, मानसिक तनाव, असंतुलित खानपान और शारीरिक निष्क्रियता से कम उम्र के लोग भी गंभीर बीमारियों के शिकार हो रहे हैं।
जयपुर। आज की तेज रफ्तार जीवनशैली, मानसिक तनाव, असंतुलित खानपान और शारीरिक निष्क्रियता से कम उम्र के लोग भी गंभीर बीमारियों के शिकार हो रहे हैं। हार्ट अटैक के मामलों में भी बढ़ोतरी देखी जा रही है। यह बीमारी अब केवल बुजुर्गों तक सीमित नहीं रही बल्कि 30 से 40 वर्ष की आयु के युवाओं में भी इसका खतरा तेजी से बढ़ा है। अब तक हृदय रोगों का इलाज एलोपैथी में ही संभव था लेकिन अब आयुर्वेद में भी इसके इलाज को संभव बनाने पर तेजी से काम किया जा रहा है।
जयपुर के जोरावर सिंह गेट स्थित राष्ट्रीय आयुर्वेद संस्थान मानद विश्वविद्यालय के काय चिकित्सा विभाग (इंटरनल मेडिसिन डिपार्मेंट) में कफज ह्द्रोग जिसे आधुनिक चिकित्सा विज्ञान में क्रॉनिक स्टेबल एंजाइना कहा जाता है, पर आयुर्वेदिक दृष्टिकोण से शोध किया जा रहा है। संस्थान के काय चिकित्सा विभाग के प्रोफेसर उदय राज सरोज के निर्देशन में एमडी छात्रा डॉ. लिट्टी मैथ्यू द्वारा कफज हृद्रोग पर विशेष अनुसंधान किया जा रहा है, जिसमें आयुर्वेदिक ग्रंथों में वर्णित औषधीय योगों के माध्यम से ह्दय की धमनियों में जमे वसा यानी कोलेस्ट्रॉल को घटाकर रक्त संचार को सुधारने का प्रयास किया जा रहा है।
क्या है कफज हृद्रोग यानी क्रॉनिक स्टेबल एंजाइना ?
यह रोग उस स्थिति को दर्शाता है जब शारीरिक परिश्रम या भावनात्मक तनाव के समय रोगी को छाती में दर्द, सांस फूलना, अत्यधिक थकान, कमजोरी और घबराहट जैसी समस्याएं होती हैं। इसका मुख्य कारण ह्दय की रक्त वाहिनियों में वसा या प्लाक का जमा होना होता है, जिससे रक्त प्रवाह बाधित होता है। आयुर्वेद के अनुसार यह रोग मुख्यतया कफ दोष के असंतुलन के कारण उत्पन्न होता है।
अब तक के शोध में सकारात्मक परिणाम मिले :
कुलपति प्रो. संजीव शर्मा ने बताया कि इस शोध में रोगियों को विशिष्ट आयुर्वेदिक औषधियां देकर उनके कोलेस्ट्रॉल स्तर, रक्तचाप, धड़कन की गति, ईसीजी रिपोर्ट और संपूर्ण ह्दय कार्यप्रणाली की नियमित मॉनिटरिंग की जा रही है। अब तक के परिणाम यह संकेत देते हैं कि आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति से ह्दय की धमनियों में वसा का स्तर घटा कर रोगी को राहत देना संभव है।

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