एफएसएल का अपराध की जड़ पर वार : क्राइम सीन से कोर्ट रूम तक, एफएसएल की मुहर से अपराध के खिलाफ मजबूत हो रहे केस
वैज्ञानिकता बढ़ी, साक्ष्य मजबूत हुए
प्रदेश में अब साक्ष्यों के अभाव में कोई भी ऐसा अपराधी नहीं बच सकेगा, जिसने सात साल के अधिक सजा वाला अपराध किया हो।
जयपुर। प्रदेश में अब साक्ष्यों के अभाव में कोई भी ऐसा अपराधी नहीं बच सकेगा, जिसने सात साल के अधिक सजा वाला अपराध किया हो। एफएसएल ने अब हर मौके पर जाकर साक्ष्य जुटाना शुरू कर दिया है। देश में नए कानून भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) के लागू होने के बाद राजस्थान में अपराध जांच की प्रक्रिया में बड़ा बदलाव आया है। यहीं कारण है कि नए कानून के बाद मौके पर जाकर साक्ष्य जुटाने की प्रक्रिया अब दुगुनी हो गई है।
3145 बार घटनास्थलों पर पहुंच चुकी :
वर्ष 2025 के पहले छह माह में ही एफएसएल की टीमें 3145 बार घटनास्थलों पर पहुंच चुकी हैं। इन मौके से बड़ी संख्या में साक्ष्य जुटाए हैं। एफएसएल की टीमें सात साल से अधिक के मामलों में 98 प्रतिशत मौके पर जाकर साक्ष्य जुटा रही है।
पहले यह आती थी समस्याएं :
1) हर घटनास्थल पर एफएसएल टीम नहीं पहुंच पाती थी।
2) पहले एफएसएल की घटनास्थल पर उपस्थिति अनिवार्य नहीं थी।
3) पुलिसकर्मी ही प्राथमिक साक्ष्य इकट्टा कर एफएसएल भेजते थे, जिससे कई अहम सुराग छूटने का डर रहता था।
4) साक्ष्य की गुणवत्ता और शुद्धता पर संदेह रहता था।
5) कई बार साक्ष्यों की कड़ी टूट जाती थी।
6) एफएसएल के पास मैनपावर और संसाधनों की कमी के कारण रिपोर्ट समय पर नहीं मिल पाती थी।
7) हर केस को प्राथमिकता नहीं मिलती थी।
8) पुराने नियमों में सिर्फ गिने-चुने केस एफएसएल को भेजे जाते थे।
ऐसे जुटा रही साक्ष्य :
नए कानून के तहत एफएसएल की बढ़ती जिम्मेदारियों को देखते हुए एफएसएल विभाग ने टीमें बनाकर साक्ष्य जुटाना शुरू करवाया। है। हर एक यूनिट में तीन एफएसएल कर्मी लगाएं हैं। विभाग ने हर संभाग मुख्यालय पर दो-दो यूनिट्स तथा हर जिले में एक एफएसएल यूनिट गठित कर दी है। जयपुर कमिश्नरेट के चार जिलों पूर्व, पश्चिम, उत्तर और दक्षिण जिले में अलग-अलग टीमें तैनात की हैं।
यह है नियम :
1) सात साल या इससे अधिक सजा वाले अपराध पर एफएसएल टीमों का पहुंचना अनिवार्य।
2) मौके पर जाकर क्राइम सीन को सील कर वैज्ञानिक तरीके से साक्ष्य जुटाएं, ताकि कोई साक्ष्य नष्ट न हो।
3) प्राथमिक रूप से कौनसे साक्ष्य जुटाने हैं यह तय करना।
4) डिजिटल व बायोलॉजिकल साक्ष्य जुटाना।
5) डीएनए, फिंगरप्रिंट, ब्लड सैंपल, इलेक्ट्रॉनिक डेटा, सीसीटीवी फुटेज जुटाना।
6) यह सभी साक्ष्य केस फाइल में लगाए जाएंगे।
7) एफएसएल रिपोर्ट से जमानत, दोषसिद्धि और सजा के मामलों में सीधा प्रभाव पड़ेगा।
नए कानून बीएनएस के तहत एफएसएल सात साल से अधिक अपराध के क्राइम सीन पर मौके पर जा रही है और बेहतर तरीके से साक्ष्य जुटा रही है। अब हर गंभीर अपराध की जांच वैज्ञानिक साक्ष्य के आधार पर की जा रही है, जिससे अपराधी को सजा मिलने में मजबूती मिलेगी। एफएसएल की क्राइम सीन पर जाने की संख्या दुगुनी हुई है।
-डॉ. अजय शर्मा
एफएसएल, निदेशक राजस्थान
वैज्ञानिकता बढ़ी, साक्ष्य मजबूत हुए :
पहले पुलिसकर्मी ही साक्ष्य एकत्र कर एफएसएल को भेजते थे, जिससे कई बार तकनीकी रूप से सबूत मजबूत नहीं जुट पाते थे। अब एफएसएल टीमें खुद मौके पर जाकर डिजिटल, जैविक और भौतिक साक्ष्य इकट्ठा कर रही हैं, जिससे अपराधियों के खिलाफ मजबूत केस तैयार हो रहे हैं।

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