सियासत के महाभारत में ‘भीम’ सब पर भारी

पं.नेहरू, इंदिरा गांधी  आदि की मूर्तियों की मांग अब कम

सियासत के महाभारत में ‘भीम’ सब पर भारी

एक वक्त था जब सबसे अधिक आदमकद या छोटी मूर्तियां महात्मा गांधी, पं. जवाहरलाल नेहरू या इंदिरा-संजय-राजीव की लगाई जाती थीं।

जयपुर। एक वक्त था जब सबसे अधिक आदमकद या छोटी मूर्तियां महात्मा गांधी, पं. जवाहरलाल नेहरू या इंदिरा-संजय-राजीव की लगाई जाती थीं, लेकिन अब उन सभी मूर्तियों को लोकप्रियता में डॉ. भीमराव अम्बेडकर ने पीछे छोड़ दिया है। मूर्तिकारों का कहना है कि जब कभी अम्बेडकर पर कोई कंर्ट्रोवसी होती है, उनकी मूर्तियों की मांग आश्चर्यजनक रूप से बढ़ जाती है। 

केन्द्र में भाजपा सरकार बनने के बाद जनसंघ के संस्थापक पं. दीनदयाल उपाध्याय, सरदार पटेल और पूर्व प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी की मूर्तियों की मांग भी बढ़ी है, लेकिन डॉ.अम्बेडकर की मूतियों की मांग साफ बता रही है कि आज की सियासत के महाभारत में अंबेडकर अब बलशाली भीम बन गए हैं और बाकी उनके बल का सामना नहीं कर पा रहे। 

गांधीजी अब भी पॉपुलर, लेकिन पुराने नेता अब भुलाए जाने लगे :

मूर्तिकारों का कहना है कि महात्मा गांधी की मूर्ति की मांग तो आज भी है, लेकिन पं.नेहरू, इंदिरा गांधी  आदि की मूर्तियों की मांग अब कम है। जिन राज्यों में कांग्रेस की सरकारें होती हैं, वहां पर जरूर मांग आती है, लेकिन नब्बे के दशक जैसी मांग अब कहीं नहीं है। 

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गुजरात में सरदार पटेल की मूर्ति लगने के बाद बढ़ी मांग :

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गुजरात में स्टेच्यू ऑफ यूनिटी 182 मीटर का उद्घाटन 25 अक्टूबर, 2018 को होेने के बाद पटेल की मूर्तियों की भी मांग बढ़ी है। खजाने वालों के रास्ता स्थित मनमोहन मूर्ति कलाकार मनमोहन शर्मा ने बताया कि पटेल की मूर्तियों की भी मांग तेजी से बढ़ी है। अब महाराणा प्रताप की मूर्तियों की मांग भी देश के विभिन्न हिस्सों से आने लगी हैं। लेकिन इस समय ज्योति बा फुले और सावित्री बाई फुले की मूर्तियों की मांग भी होने लगी है। 

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अम्बेडकर की मूर्ति की अधिक मांग क्यों :

अम्बेडकर की मूर्ति न्यायालयों, विधि कॉलेज, विश्वविद्यालय में लगाने के साथ ही आरक्षित समाज के लोग उसे अपने खर्चे पर गांव, चौराहे, समाज के भवनों पर लगाने से मांग में तेजी से इजाफा हुआ है। गुजरात केन्द्रीय विश्वविद्यालय के  प्रो.जनक  सिंह मीणा बताते हैं कि डॉ. अम्बेडकर को 1990 में भारत रत्न मिलने के बाद से ही डॉ. अम्बेडकर की मूर्तियों की मांग में तेजी आई थी, जो अब अपने उफान पर हैं। वे बताते हैं कि डॉ. अम्बेडकर की मूर्तियां तो आजादी के बाद से ही लगने लगी थी। 

इस बदलाव को सामाजिक रूपांतरण के रूप में देखा जा सकता है। देश में संविधान पर विश्वास करने वाले लोगों की संख्या में इजाफा होने से डॉ. अम्बेडकर की मूर्तियों की मांग में बढ़ोतरी हुई है। मुझे लगता है कि समाज के हर वंचित वर्ग ने डॉ. अम्बेडकर को अपना लिया है। यह मांग अब और बढ़ेगी।

-प्रो.राजीव गुप्ता, समाजशास्त्री, जयपुर :
एक दौर था जब गांधी, नेहरू और गांधी परिवार की मूर्तियों की मांग रहती थी, लेकिन डॉ. अम्बेडक र की मूति ने सभी की मूर्तियों को पछाड़ दिया है। जयपुर में मूर्तियों की मण्डी सबसे बड़ी है। इस आधार पर कहा जा सकता है कि डॉ. अम्बेडकर की मूर्तियों की सबसे अधिक मांग है।

-प्रकाश शर्मा, मूर्तिकार, जयपुर :
मूर्तियां उन लोगों की बनती हैं, जो अपने समय के ऑइकॉन होते हैं। इस समय के ऑइकॉन अंबेडकर हो गए हैं और यह उनकी मूर्तियों की मांग से स्पष्ट है। प्रदेश के विभिन्न इलाकों के अपने-अपने ऑइकॉन हैं। 

 

 

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