जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल : अमोल पालेकर की आत्मकथा द व्यूफाइंडर ए मेमॉयर का लोकार्पण, पालेकर ने कहा- इंडस्ट्री आपके बंगले का पिछवाड़ा नहीं

मैं तो हमेशा एक पेंटर की तरह ही जीना और मरना चाहता था

 जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल : अमोल पालेकर की आत्मकथा द व्यूफाइंडर ए मेमॉयर का लोकार्पण, पालेकर ने कहा- इंडस्ट्री आपके बंगले का पिछवाड़ा नहीं

जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में रविवार को फ्रंट लॉन का पहला सत्र द व्यू फाइंडर-अमोल पालेकर नाम से था, जिसमें फेमस एक्टर और फिल्म निर्देशक अमोल पालेकर की आत्मकथा द व्यूफाइंडर ए मेमॉयर का लोकार्पण किया गया

जयपुर। जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में रविवार को फ्रंट लॉन का पहला सत्र द व्यू फाइंडर-अमोल पालेकर नाम से था, जिसमें फेमस एक्टर और फिल्म निर्देशक अमोल पालेकर की आत्मकथा द व्यूफाइंडर ए मेमॉयर का लोकार्पण किया गया। इस अवसर इस पुस्तक की संपादक और अमोल पालेकर की पत्नी संध्या गोखले के साथ संजॉय के रॉय ने चर्चा की। संध्या ने बताया कि इस पुस्तक में अमोल पालेकर के छह दशक के सिनेमा और थियेटर की यात्रा और उनके जीवन संघर्ष की यादें हैं। अमोल ने अपने शुरुआती सफर का जिक्र करते हुए बताया कि मैं एक्सीडेंटली एक्टर बन गया हूं। मैंने कभी नहीं सोचा था कि फिल्मों में काम करूंगा। मैं तो हमेशा एक पेंटर की तरह ही जीना और मरना चाहता था। 

मुझे सिर्फ पैसे नहीं, बल्कि इज्जत चाहिए थी, जो मुझसे छीनी जा रही थी

निर्माता निर्देशक बीआर चोपड़ा के साथ हुए ऐसे ही एक विवाद का जिक्र करते हुए उन्होंने बताया कि बी.आर. चोपड़ा की फिल्म कंपनी को उन्हें रुपए देने थे, लेकिन फिल्म की रिलीज तक  पैसे नहीं मिले। जब उन्होंने इस बारे में बात की और एक लिखित आश्वासन मांगा, तो इंडस्ट्री में इसे चुनौती देने जैसा माना गया। अमोल पालेकर ने बताया कि मुझे सिर्फ  पैसे नहीं, बल्कि इज्जत चाहिए थी, जो मुझसे छीनी जा रही थी। इंडस्ट्री में यह नॉर्मल था कि अगर पेमेंट नहीं हो रहा तो एक लेबर लेटर दिया जाता था। मैंने चोपड़ा साहब से यही कहा कि मैंने शूटिंग रोकी नहीं, काम भी पूरा किया, बस एक लीगल प्रक्रिया पूरी करना चाहता था। इस पर चोपड़ा साहब ने कहा कि तुम्हें इंडस्ट्री से बाहर फेंक दूंगा। अमोल पालेकर ने बताया कि मैंने इसका जवाब देते हुए कहा कि चोपड़ा साहब, इंडस्ट्री आपके बंगले का पिछवाड़ा नहीं है। मैं अपनी शर्तों पर यहां हूं, किसी फिल्मी खानदान से नहीं आता, फिर भी इंडस्ट्री में अपनी जगह बनाई है। देखते हैं कौन किसे निकालता है। मैंने मामला कोर्ट में ले जाने का फैसला किया और सालों बाद मुझे उस धन राशि के साथ 5 गुना अमाउंट ब्याज सहित मिले।

बाला साहेब के साथ हुए विवाद का जिक्र करते हुए उन्होंने बताया कि 1996 में महाराष्ट्र में शिवसेना-भाजपा गठबंधन के सत्ता में आने के बाद उनकी सरकार ने महाराष्ट्र भूषण पुरस्कार देने की घोषणा की थी। महाराष्ट्र में शिवसेना-बीजेपी की सरकार में मनोहर जोशी मुख्यमंत्री थे। अब वे ठहरे बाल ठाकरे के परम चेले! तो सरकार में कुछ लोग पहले महाराष्ट्र भूषण पुरस्कार के लिए बालासाहेब ठाकरे का नाम लेकर सामने आए। लेकिन ठाकरे ने ये पुरस्कार लेने से मना कर दिया और मनोहर जोशी को अपने गुरु के समान साहित्यकार पी. एल. देशपांडे को महाराष्ट्र भूषण पुरस्कार देने को कहा। आपातकाल के दौरान इंदिरा गांधी सरकार के विरोध में उन्होंने खुलकर अपनी भूमिका निभाई। वे इस तानाशाही रवैये के खिलाफ  खुलकर भाषण देते थे, विरोध सभाओं में शामिल होते थे और यहां तक कि एक नाटक भी किया था, जो आपातकाल के विरोध को दर्शाता था। जब आपातकाल खत्म हुआ और इंदिरा गांधी की सरकार सत्ता से बाहर हो गई, तब लोकतंत्र समर्थकों को यह बदलाव अपने संघर्ष का परिणाम लगा। इसी क्रम में जब जयप्रकाश नारायण मुंबई आए तो उन्होंने उन्हें विशेष रूप से मिलने के लिए बुलाया। उस समय जयप्रकाश नारायण का स्वास्थ्य ठीक नहीं था, वे डायलिसिस करा रहे थे। मुलाकात के दौरान उन्होंने उन्हें दिल्ली आकर शपथ ग्रहण समारोह में शामिल होने का आग्रह किया। जयप्रकाश नारायण ने कहा कि उन्होंने इस बदलाव के लिए मेहनत की है और यह उनका हक है कि वे इस ऐतिहासिक क्षण के साक्षी बनें।

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