सुजानगढ़ के खेमचंद प्रकाश की तलाश थी स्वर कोकिला लता दीदी
इस माटी की अनेक आवाजें ऐसी रही जिन्होंने संगीत में नाम कमाया
खेमचंद प्रकाश ने ही सबसे पहले लता की प्रतिभा को पहचाना और उनके संगीत निर्देशन में महल का गीत ‘आएगा आने वाला’ गवाया था।
जयपुर। क्या आप जानते हैं कि स्वर कोकिला लता मंगेशकर को पहला हिन्दी गीत गवाने वाले संगीतकार कौन थे? जवाब है खेमचंद प्रकाश। इन्होंने ही सबसे पहले लता की प्रतिभा को पहचाना और उनके संगीत निर्देशन में महल का गीत ‘आएगा आने वाला’ गवाया था। खेमचंद प्रकाश चूरू के सुजानगढ़ के रहने वाले थे। इस माटी की अनेक आवाजें ऐसी रही, जिन्होंने संगीत में नाम कमाया। जैसे मेहदी हसन, अल्लाह जिलाई बाई, रेशमा, दप्पू खान और चंपा मेथी की जोड़ी प्रमुख रही।
अल्लाह जिलाई बाई
राजस्थानी मांड गायिका। इनका जन्म 1 फरवरी 1902 को बीकानेर में हुआ। महाराजा गंगा सिंह के दरबार में इन्होंने गायिकी की। हुसैनबक्श लंगड़े ने इनकी गायिकी को निखारा। तेरह वर्ष की उम्र में इन्होंने राजगायिका की पदवी ले ली थी। वह मांड के साथ-साथ ठुमरी, खयाल और दादरा की उम्दा कलाकार थीं। केसरिया बालम आवो नी पधारो म्हारे देश इनका लोकप्रिय गीत है। इनकी मृत्यु 1992 में हुई। मृत्यु के बाद सरकार द्वारा इन्हें 1982 में पद्मश्री से नवाजा गया। 2012 में प्रथम राजस्थान रत्न सम्मान भी दिया गया।
मेहदी हसन
राजस्थान के झुंझुनूं के लूणा में 18 जुलाई 1927 को जन्मे मेहदी हसन का परिवार संगीतकारों का परिवार रहा है। उनसे पहले की 15 पीढ़ियां भी संगीत से जुड़ी हुई थीं। संगीत की आरंभिक शिक्षा उन्होंने पिता उस्ताद अजीम खान और चाचा उस्ताद इस्माइल खान से ली, दोनों धु्रपद के अच्छे जानकार थे। बंटवारे के बाद उनका परिवार पाकिस्तान चला गया। वहां उन्होंने कुछ दिनों तक एक साइकिल दुकान में काम किया और बाद में मोटर मैकेनिक का भी काम उन्होंने किया, लेकिन संगीत को लेकर जो जुनून उनके मन में था वह कम नहीं हुआ। आगे चलकर मेहदी हसन ने देश दुनिया में संगीत की दुनिया में मुकम्मल स्थान हासिल किया।
दप्पू खान
जैसलमेर के सोनार किले के म्यूजियम के आगे रंगीन पगड़ी में बैठे बुजुर्ग दप्पू खान कमायचा बजाते लोकगीत सुनाते थे। देसी-विदेशी पर्यटक उनको खड़े होकर एकटक निहारते रहते। गीत शुरू करने से पहले वे अंग्रेजी में पर्यटकों को अपनी इस कला से रूबरू करवाते तो लोग उनके अंग्रेजी बोलने का तरीका देखकर गदगद हो जाते थे। उन्होंने राग पहाड़ी, राणा और मल्हार में गीत गाए हैं। जब वह बजाना शुरू करते तब उनके आसपास के लोग उन्हें सुनने के लिए इकट्ठा हो जाते थे। तब से उन्हें जीवन में इसी क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिए यह मकसद बना लिया और पूर्वजों की इस महान कला का प्रचार प्रसार करने लगे दप्पू खान का निधन 13 मार्च 2021 को हुआ था।
चंपा मेथी
चंपा मेथी राजस्थान के वे कलाकार थे, जो खुद ही गीतकार, संगीतकार और गायक थे। वे अपने गीत खुद लिखते और गाते थे। उनकी सुरीली आवाज में वो जादू था, जो मारवाड़ में हर तबके के लोगों को पसंद आया। चंपा मेथी की जुगलबंदी का आज भी कोई विकल्प नहीं है। कहते हैं कि उस दौर में मारवाड़ से जितनी टेप कैसेट रिकॉर्डिंग होती थी, उनमें सर्वाधिक चंपा मेथी की होती थी।
रेशमा
इनका जन्म रतनगढ़ के लोहा में लगभग 1947 में एक बंजारों के परिवार में हुआ। विभाजन के समय उनका परिवार पाकिस्तान चला गया। रेशमा सबसे पहले रेडियो पाकिस्तान पर गाना गाकर मशहूर हुई थीं। उनके सब से जाने माने गानों में ‘दमादम मस्त कलंदर’ और ‘लम्बी जुदाई’ रहे। रेशमा का निधन 3 नवम्बर 2013 को पाकिस्तान में हुआ।
और ये भी
इनके अलावा दानसिंह, जगजीत सिंह, हसरत जयपुरी आदि तो रहे ही, भूंगड़ खान जेसिंदर, मेवात के दादा लख्मी, मेवाड़ की गवरी बाई भी अहम हैं।

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