जैव विविधता कमजोर होने से बिगड़े वन्यजीव और कीट-पतंगों के हाल
अंतरराष्ट्रीय जैव विविधता दिवस आज
देशी-विदेशी परिंदों के कलरव के लिए दुनिया में विख्यात केवला देव नेशनल पार्क में भी विदेशी परिंदों की आवाजाही पिछले सालों की तुलना में काफी कम हुई है। सायबेरियन क्रेन केवला देव में अब पिछले सालों की तुलना में नहीं आती हैं।
जयपुर। राज्य में जैव विविधता का संतुलन गड़बड़ाने से पारिस्थितिकी तंत्र कमजोर हुआ है। इससे राजस्थान में जीव-जन्तु, कीट-पतंगे और वनस्पति की हालत खराब हो गई है। राष्ट्रीय वन नीति के अनुसार प्रदेश में 33 प्रतिशत वनाच्छित क्षेत्र होना चाहिए, लेकिन वर्तमान में मात्र 7.42 प्रतिशत है। हर साल प्रदेश में सरकार की ओर से पेड़-पौधे लगाए जाते हैं, लेकिन वे देखरेख के अभाव में पनप नहीं पाते। राज्य पक्षी गोड़ावन को बचाने के लिए प्रोजेक्ट बस्टर्ड चलाया गया, लेकिन सुखद परिणाम नहीं आए। प्रदेश में गोड़ावन की संख्या 50 के आसपास है। वहीं 20वीं पशुगणना के अनुसार ऊंट की संख्या में तेजी से गिरावट आई है। प्रदेश में 2012 में 325713 ऊंट थे, जो 2019 में घटकर 212739 रह गए। यानी प्रदेश में ऊंटों की संख्या में करीब 34.69 प्रतिशत की कमी आई है।
केवलादेव में अब नहीं विदेशी परिंदे
देशी-विदेशी परिंदों के कलरव के लिए दुनिया में विख्यात केवला देव नेशनल पार्क में भी विदेशी परिंदों की आवाजाही पिछले सालों की तुलना में काफी कम हुई है। सायबेरियन क्रेन केवला देव में अब पिछले सालों की तुलना में नहीं आती हैं।
क्यों बिगड़ी जैव विविधता
जीव-जन्तुओं के प्राकृतिक आवासों का नष्ट होना। जलवायु परिर्वतन। विदेशी पादपों के आने से स्थानीय पादपों को नुकसान। कीटनाशी का अधिक उपयोग। दवाओं का बेतरतीब उपयोग। अनावश्यक रूप से पेड़ों की कटाई। अवैध जीव-जन्तुओं का शिकार। शहरीकरण प्रमुख कारण हैं।
क्या है जैव विविधता
जैव विविधता प्राकृतिक पर्यावरण का अभिन्न अंग हैं, जिसमें प्राकृतिक वनस्पति, वन्यजीव, पशु-पक्षी से लेकर कीट-पतंगे का होना जरूरी है। जितनी अधिक जैव विविधता होगी, उतना अच्छा ही पर्यावरण माना जाता है।
जैव विविधता के कमजोर पड़ने से पारिस्थितिकी तंत्र गड़बड़ा गया है। सरकार को औपचारिकता निभाने के बजाय इसके लिए युवा पीढ़ी को जोड़ा जाना चाहिए। जैव विविधता का संतुलन अधिक गड़बड़ा गया तो आदमी पर संकट आ जाएगा।
-बीएल जाजू, प्रभारी, पीपुल्स फॉर एनिमल्स, राजस्थान
भोगौलिक दृष्टि से जैव विविधता पिछले कुछ दशकों में कमजोर हुई है। चिंताजनक पहलू है कि इस पर ध्यान नहीं दिया गया तो हालत बेहद चिंताजनक हो जाएंगे। पौधरोपण अभियान चलाया जाए, कीटनाशी का कम उपयोग, पेड़ों की अनावश्यक कटाई पर रोक, दवाओं का कम उपयोग करने से कुछ हद तक अंकुश लग सकता है।
-डॉ. रानी सिंह, भूगोलशास्त्री, जयपुर

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