महाराजा रामसिंह पतंगबाजी करते समय तुक्कल उड़ाया करते थे, कटने पर वापस लाने के लिए दौड़ाए जाते थे घुड़सवार

36 कारखानों में से एक कारखाना पतंगखाना था

महाराजा रामसिंह पतंगबाजी करते समय तुक्कल उड़ाया करते थे, कटने पर वापस लाने के लिए दौड़ाए जाते थे घुड़सवार

चीन में शुरू हुआ पतंगबाजी का दौर वक्त के साथ जापान, कोरिया, थाईलैंड, बर्मा, भारत, अरब, उत्तर अफ्रीका तक हुआ। 

जयपुर। जयपुर में पतंगबाजी की शुरुआत महाराजा रामसिंह द्वितीय 1835-1880 ने की थी, जिन्होंने लखनऊ से जयपुर लाई गई तुक्कल उड़ाई थी। तब यह पतंग कपड़े से विशेष तरीके से बनाई जाती थी। महाराजा रामसिंह द्वितीय पतंगबाजी करते समय तुक्कल उड़ाया करते थे तो उसके दूर तक जाने के बाद कटने या टूटने पर वापस लाने के लिए पहले से तैयार घुड़सवारों को दौड़ाया जाता था। महाराजा रामसिंह की पतंगों को लेकर इस कदर दीवानगी थी कि उन्होंने जयपुर रियासत में 36 कारखानों में से एक और कारखाना पतंगखाना भी जोड़ दिया था। आज भी उनकी पतंगें, तुक्कल और चरखियां जयपुर के सिटी पैलेस म्यूजियम में सुरक्षित हैं, जो मकर संक्रान्ति पर यहां आने वाले पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र रहते हैं। जयपुर की पतंगबाजी दुनिया भर के आकर्षण का विषय है। आज भी उनकी पतंगें, तुक्कल और चरखियां जयपुर के सिटी पैलेस म्यूजियम में सुरक्षित हैं, जो मकर संक्रान्ति पर यहां आने वाले पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र रहते हैं।

मकर संक्रांति गुलाबी नगरी का पर्याय बन कर दुनियाभर में मशहूर है। पतंगों का यह पर्व जयपुर की पहचान बन गया है, लेकिन सवाल यह उठता है कि सबसे पहले जयपुर में पतंग किसने उड़ाई और यह सिलसिला कैसे चल निकला। दरअसल पतंगबाजी लखनऊ की प्रसिद्ध रवायत थी। इसलिए जब पतंग उड़ती है तो उसकी डोर भले यहां किसी हाथ में हो, लेकिन पतंग की रूह में कोई लखनवी अंदाज भी सामने आता है।

पतंग कपड़े की बनती थी, कटने या टूटने पर घुड़सवार दौड़ाए जाते थे
सवाई रामसिंह द्वितीय लखनऊ गए तो उन्हें वहां की पतंगबाजी इतनी पसंद आई कि उन्होंने जयपुर रियासत में 36 कारखानों में एक और कारखाना पतंगखाना जोड़ दिया था। शुरू में यहां तितली के आकार की विशाल पतंगें बनती थीं, जिन्हें तुक्कल कहा जाता था। लखनऊ से कुछ पतंग बनाने वाले और डोर सूतने वाले महाराजा रामसिंह के जमाने से बराबर यहां आते रहते थे। तब विशाल चरखियां और आदमकद के तुक्कल उड़ाए जाते थे। महाराजा रामसिंह ने पतंगबाजों और पतंगकारों को अपने राज में आश्रय दिया। तब जयपुर के कई मोहल्लों में पतंग बनाने का काम शुरू हुआ। गुलाबी नगरी की पतंगबाजी देश और दुनिया में अलग ही मुकाम रखती है। विदेशी पर्यटक भारत घूमने का कार्यक्रम बनाते समय यह भी ध्यान रखते हैं कि भारत भ्रमण के दौरान 14 जनवरी भी हो ताकि वे जयपुर में पतंगबाजी का लुत्फ उठा सकें। दरअसल, जयपुर की पतंगबाजी करीब 150 साल से अधिक पुरानी है।

जलमहल और लालडूंगरी पर होती थी पतंगबाजी
आजादी से पहले तक आमेर रोड स्थित जलमहल, लालडूंगरी के मैदान और चौगान स्टेडियम में पतंगबाजी के मुकाबले होते थे। कई राज्यों से पतंगबाज इसमें हिस्सा लेते थे। महाकवि बिहारी और सवाई जयसिंह के कवि बखतराम ने भी आमेर में पतंग उड़ाने का वर्णन किया है। 

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दुनिया में कहां से आगाज हुआ पतंगबाजी का
माना जाता है कि दुनिया में पतंगबाजी की शुरूआत सबसे पहले चीन में हुई और चीन के दार्शनिक दुआंग थेग ने सबसे पहले पतंग बनाकर उड़ाई थी। चीन में रेशम के कपड़े से पतंग बनाई जाती थी और उसमें रेशम का ही धागा उपयोग में लिया जाता था। पतले मजबूत बांस के सहारे पतंग बनती थी। चीन में शुरू हुआ पतंगबाजी का दौर वक्त के साथ जापान, कोरिया, थाईलैंड, बर्मा, भारत, अरब, उत्तर अफ्रीका तक हुआ। 

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जयपुर में पतंगबाजी की शुरुआत महाराजा रामसिंह द्वितीय के शासनकाल में शुरू हुई थी, किस सन् से हुई, इसका कोई प्रामाणिक दस्तावेज नहीं हैं। लेकिन बाद में उनके कार्यकाल के साथ ही पतंगबाजी धीरे-धीरे विस्तार पाती रही।’
-डॉ.जयन्ती लाल खण्डेलवाल, इतिहासकार, जयपुर 

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