सिविल सर्विसेज डे : आईएएस बनने का क्रेज पांच गुना बढ़ा, 1% का ही होता है चयन

 2023 में 7 लाख ने परीक्षा दी, चयन केवल 1016 का हुआ 

सिविल सर्विसेज डे : आईएएस बनने का क्रेज पांच गुना बढ़ा, 1% का ही होता है चयन

परीक्षा के जरिये शेष उम्मीदवारों में से 18 अन्य सेवाओं जिनमें आईपीएस, आईएफएस, भारतीय विदेश सेवा, आईआरएस सहित अन्य का चयन होता है। 

जयपुर। देश में सरकारी मशीनरी के मुख्य किरदार आईएएस अधिकारी होते हैं। सरकार की गुड गर्वनेंस, प्लानिंग, जनता के काम, विकास और अर्थव्यवस्था को रफ्तार देने काम इनके कंधो पर ही होता है।  देश में सीधे यूपीएससी से चयनित होकर वर्तमान में 3511 आईएएस काम कर रहे हैं। राजस्थान में इनकी संख्या मात्र 197 हैं। आईएएस के रूप में ब्यूरोक्रेसी के मुख्य स्तम्भ बनने के लिए यूपीएससी हर साल सिविल परीक्षा का आयोजन करता है, जो देश की सबसे कठिन परीक्षा मानी जाती है। लेकिन आईएएस बनने का क्रेज बीते डेढ़ दशक में पांच गुना बढ़ा है। यूपीएससी के रिकॉर्ड के मुताबिक 2007 में जहां 3,33,680 उम्मीदवारों ने आवेदन किए। लेकिन परीक्षा केवल 1,61, 469 लोगों ने ही दी। वहीं 2023 में आवेदन करने वालों की संख्या 13 लाख हो गई, जबकि करीब 7 लाख उम्मीदवारों ने परीक्षा अटेंड की। चयन का औसत केवल 1 से अधिकतम 1.5 फीसदी ही रहता है।

आजादी के पहले लंदन में ब्रिटिश लोग चुने जाते थे
आजादी से पहले 1854 में ब्रिटिश हुकूमत ने देश में ब्रिटिश प्रशासन को योग्य अधिकारी चुनने के लिए इस परीक्षा की शुरूआत की थी। लॉर्ड मैकाले कमेटी ने लंदन में ही परीक्षा आयोजित करवाई। तब केवल ब्रिटिश नागरिक ही इसमें पात्र थे। बाद में भारतीय युवाओं को भी मौका मिलने लगा। 1922 में पहली बार दिल्ली में भी इसकी परीक्षा हुई। 1947 में यूपीएससी का गठन हुआ। 1950 में परीक्षा का आधुनिकीकरण किया गया। आजादी के बाद पद का नाम आईसीएस से बदलकर आईएएस किया गया। 1979 में परीक्षा को त्रिस्तरीय किया गया। पहले एक ही परीक्षा हुआ करती थी।  पहले अंग्रेजी में होती थी। 1979 से हिन्दी सहित 22 भाषाओं में होती है। 

प्रतिस्पर्धा लगातार बढ़ी, लेकिन पद नहीं बढ़े
यूपीएससी हर साल सिविल सेवा परीक्षा के जरिये देश को नए आईएएस अफसर देती है। लेकिन जनसंख्या बढ़ोतरी, आवश्यकता के मुताबिक पदों में खास बढ़ोतरी नहीं हुई है। उलट पद 2014 के बाद घटे हैं। वर्ष 2007 में जहां 734 नए आईएएस बने। वर्ष 2008 में 881, 2009 में 989, 2010 में 965, 2011 में 999, 2012 में 998, 2013 में 1122, 2014 में 1236 आईएएस बने। इसके बाद पदों की संख्या घटी। वर्ष 2015 में 1078, 2016 में 1099, 2017 में 1056, 2018 में 759, 2019 में 829, 2020 में 833, 2021 में 761, 2022 में 933 और 2023 में 1016 नए आईएएस बने। परीक्षा त्रिस्तरीय होती है। प्रारम्भिक परीक्षा में दो पेपर होते हैं। क्वालिफाई करने वाले उम्मीदवार मुख्य परीक्षा के पात्र होते हैं। नौ पेपर होते हैं। औसतन 1 से 1.5 फीसदी यानी 10-15 हजार का का चयन इंटरव्यू, पर्सनलिटी टेस्ट के लिए होता है। इनमें से पद मुताबिक चयन होता है। परीक्षा के जरिये शेष उम्मीदवारों में से 18 अन्य सेवाओं जिनमें आईपीएस, आईएफएस, भारतीय विदेश सेवा, आईआरएस सहित अन्य का चयन होता है। 

राजस्थान के पापुलर रहे आईएएस
नरेश चन्द्रा
1956 बैच के अफसर थे। अमेरिका में भारतीय राजदूत भी रहे। बेहतर कार्यप्रबन्धन के चलते 2007 में पदम विभूषण से सम्मानित हुए। 
टीएन चतुर्वेदी
1950 बैच के अफसर थे। केन्द्रीय गृह सचिव, प्रदेश से पहले देश के सीएजी बने। बोर्फोस डील अनियमितता का खुलासा किया था। पदम विभूषण से सम्मानित हुए। 2002-2007 तक कर्नाटक के राज्यपाल भी बने। 
राजीव महर्षि
पूर्व मुख्य सचिव रहे। भारत के दूसरे राजस्थान कैडर से सीएजी बने। 
सुनील अरोड़ा
सीएम सचिव रहे, गुड गर्वनेंस और प्रशासनिक कुशलता के लिए जाने जाते थे। बाद में भारत के मुख्य निर्वाचन आयुक्त बने। 
रोहित कुमार सिंह
कोरोनाकाल में कोविड स्क्रीनिंग, वायरस चैन ब्रेकिंग प्लानिंग, ट्रीटमेंट प्रबन्धन के लिए मशहूर हुए। कोविड में उनका भीलवाड़ा मॉडल देशभर में चर्चित रहा।  
अरविंद मायाराम
केन्द्रीय वित्त सचिव रहे। पूर्व सरकार के आर्थिक सलाहकार रहे। 
संजय मल्होत्रा
1990 बैच के आईएएस हैं। वर्तमान में आरबीआई के गर्वनर हैं। आईआईटी कानुपर से पढ़े हैं।

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राजस्थान में आईएएस वैंकटाचार्य सीएम भी रहे
राजस्थान में 1922 बैच के आईएएस सीएस वैंकटाचार्य 6 जनवरी 1951 से 26 अप्रैल 1951 तक 110 दिन के लिए सीएम भी रहे। वे मूलत: मैसूर के पास कोलार के रहने वाले थे। तब लंदन में आयोजित यूपीएससी सिविल परीक्षा में चयनित 19 आईएएस में से एक थे। 1931 में देश की जनगणना में अहम भूमिका निभाई थी। 1947 में संविधान सभा के सदस्य भी रहे।   

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चयन की चुनौती पर बोले अफसर
आईआईटी दिल्ली में पढ़ाई के वक्त कई जन समस्याएं देखते थे, तब तय किया की आईएएस बनना है। दो सीनियर्स भी इसकी तैयारी में जुटे थे। वे भी वर्तमान में आईएएस है। पहले आईएएस के साक्षात्कार में रह गया था, कैट एग्जाम से आईआईएम अहमदाबद में चला गया। तैयारी दोबारा शुरू की और आईआईएम को बीच में ही छोड़ दिया। जब तक चयन नहीं हुआ तब तक का समय मुश्किल से निकला। कोचिंग नहीं की और घर पर ही तैयारी की। सलेक्शन को विश्वास, मेहनत, फोकस और स्टडी प्लानिंग सबसे जरूरी हैं। 
-संदीप वर्मा, सीएमडी, 
राजस्थान स्टेट वेयरहाऊसिंग कॉरपोरेशन।

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चुनौतियां मेहनत से हार जाती है। मैंने पढ़ाई पर फोकस किया। सफलता मिल गई। आईएएस की तैयारी करने वाले उम्मीदवारों को यही सलाह है कि मेहनत का कोई सबस्ट्यिूट नहीं है। परीक्षा का सिलेबस अच्छे से हर एंगल से पढ़ें। रोजाना की जनरल नॉलेज से भी अपडेट रहें। मेहनत करेंगे तो निश्चित सफलता मिलेगी।
-आनंद कुमार, 
अतिरिक्त मुख्य सचिव, गृह विभाग

मैंने बीटेक में स्नातक किया। लेकिन आईएएस परीक्षा हिस्ट्री और समाज शास्त्र विषय लेकर दी। मेरे लिए दोनो विषय नए थे। मेरे लिए इन नई विषयों की गहराई से स्टड़ी ही चुनौती जैसी थी। विषय के हर पहलू को गंभीरता से पढ़ा। सफलता मिली। जो युवा तैयारी कर रहे हैं, उनसे यही कहूंगा कि आईएएस में चयन मेहनत मांगती है। अगर करते हैं तो चयन तय है।
-वी.सरवन कुमार, सचिव, 
साइंस एंड टैक्नोलॉजी विभाग।

मैंने आईआईटी बोम्बे से बीटेक किया। फिर यूएस में नौकरी की। मेरी कोई आईएएस बनने की इच्छा नहीं थी। लेकिन पिताजी का सपना था। 1996 में बीटेक किया। फिर सात साल बाद 2003 में तैयारी कर आईएएस बना। जीवन में कोई कोचिंग पढ़ने नहीं गया। मां से फिजिक्स-कैमिस्ट्री पढ़ी। खैर, सभी की अलग परिस्थितियां होती है। उसके अनुकूल लक्ष्य प्राप्त करने का प्लान बनाना चाहिए। यह भी तय करना होगा कि आईएएस किस लक्ष्य से बन रहे हैं।
-अम्बरीश कुमार, 
सचिव, मेडिकल शिक्षा विभाग

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