संबंधों की दूरियां भी मिटा रही लोक अदालत : राजीनामा पर दशकों पुराने अपने विवाद का अंत

जन उपयोगी सेवाओं के लिए स्थाई लोक अदालत

संबंधों की दूरियां भी मिटा रही लोक अदालत : राजीनामा पर दशकों पुराने अपने विवाद का अंत

वर्तमान न्याय व्यवस्था में लोक अदालत एक वैकल्पिक वाद निस्तारण प्लेटफॉर्म के रूप में उभर कर सामने आई है।

जयपुर। कहने को तो इन सभी लोगों ने अन्य पक्षकारों की तरह अदालतों में केस दायर कर दूसरे पक्ष को हराने की ठानी थी, लेकिन दशकों तक अदालतों में चक्कर काटने के बाद इन लोगों को समझ आ गया कि आपसी झगड़े में सिर्फ समय और पैसे की बर्बादी हैं। लोक अदालत में समझाइश के बाद इन पक्षकारों ने राजीनामा पर दशकों पुराने अपने विवाद का अंत किया। इससे न केवल उनका विवाद अंतिम रूप से समाप्त हुआ, बल्कि मुकदमों का भार झेल रही अदालतों को भी राहत मिली।

केस नंबर 01
पक्षकारों का विवाह करीब 49 साल पहले हुआ। विवाह के करीब नौ साल बाद दोनों अलग-अलग रहने लगे। अगस्त, 1990 में गुजारा भत्ता का मामला फैमिली कोर्ट, कोटा में आया। इसके बाद भत्ता बढ़ाने को लेकर मामला लंबित रहा। मार्च, 2023 में महिला ने भत्ता बढ़ाने के लिए फिर से प्रार्थना पत्र दायर किया। इस समय पत्नी की उम्र 69 साल और पति 74 साल का था। अब तक दोनों पक्षकार 34 साल से कोर्ट आ रहे थे। सितंबर, 2024 की लोक अदालत में दोनों के बीच राजीनामा हुआ और तीन दशक से अधिक पुराना विवाद समाप्त हुआ।

केस नंबर 02
जायल तहसील में खेत को लेकर दो भाईयों के परिवारों के बीच 38 साल तक विवाद चला। मामला दर्ज कराने वाले की भी 12 साल पूर्व मौत हो गई। मई, 2022 को आयोजित लोक अदालत में दोनों पक्षों में राजीनामा होकर दशकों पुराना विवाद समाप्त हो गया।

केस नंबर 03
मेड़ता में सन् 1979 में मकान मालिक और किराएदार के बीच सिविल दावा हुआ। प्रतिवादी ने वादी के दत्तक पिता से दुकान किराए पर लेकर उसे आगे किराए पर दे दी। दत्तक पिता की मौत के बाद दत्तक माता व वादी के बीच दुकान के स्वामित्व का विवाद हो गया। वादी ने दत्तक माता और किराएदार पर वाद दायर किया। आखिरकार दिसंबर, 2021 की लोक अदालत में सभी पक्षों के बीच राजीनामा हुआ और 42 साल चले केस का निपटारा हुआ।

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मुकदमों का निस्तारण ना किसी की हार और ना किसी की जीत
वर्तमान न्याय व्यवस्था में लोक अदालत एक वैकल्पिक वाद निस्तारण प्लेटफॉर्म के रूप में उभर कर सामने आई है। इसमें पक्षकारों की सहमति से उनके बीच चल रहे विवाद को रखा जाता हैं। यहां दोनों पक्षों के बीच समझाइश कर राजीनामा कराया जाता हैं, इसमें खास बात यह है कि न तो किसी पक्षकार की हार होती है और ना ही किसी पक्षकार की जीत होती है। उनकी ओर से जमा कराई गई कोर्ट फीस भी लौटा दी जाती है।

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जन उपयोगी सेवाओं के लिए स्थाई लोक अदालत
हर जिले में स्थाई लोक अदालत स्थापित है। जहां जन उपयोगी सेवाओं जैसे परिवहन, डाक, बिजली-पानी अस्पताल आदि से जुड़े मामले दर्ज कराए जा सकते हैं। जहां दोनों पक्षकारों के बीच सुलह वार्ता कराई जाती है और बाद में प्रकरण का निस्तारण किया जाता है। नियमित अदालतों की जटिलता से परे स्थाई लोक अदालत में सहजता से प्रकरण की सुनवाई की जाती हैं।

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लंबित प्रकरणों के लिए मेगा लोक अदालत
विधिक सेवा प्राधिकरण की ओर से विभिन्न अदालतों में लंबित मुकदमों के निस्तारण के लिए भी साल में चार बार मेगा लोक अदालत आयोजित की जाती हैं। पक्षकारों की सहमति से उनके लंबित मुकदमों को मेगा लोक अदालत में रखा जाता हैं। यदि लोक अदालत में राजीनामा नहीं होता है तो केस की सुनवाई पर कोई फर्क नहीं पड़ता और वह संबंधित न्यायालय में उसी स्टेज पर वापस चला जाता है।

लोक अदालत आपसी विवाद को दूर करने का सशक्त माध्यम है। इसमें विवाद का आपसी सहमति से निस्तारण होता है। बीती कई मेगा लोक अदालतों में ऑनलाइन व्यवस्था को भी लागू किया गया हैं। इसके सकारात्मक परिणाम आए है। 
हरिओम शर्मा अत्रि, 
सचिव, राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण।

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