जेकेके में तीन दिवसीय सूफी फेस्टिवल संपन्न, सूफी सुरों और कथक की छटा में सजी राष्ट्रीय एकता की शाम
सभागार में देशभक्ति की भावना को प्रखर कर दिया
जेकेके में गुरुवार की शाम सूफियाना रंग, अध्यात्मिकता और भारतीय सांस्कृतिक विविधता का अद्भुत संगम देखने को मिला। इस तीन दिवसीय सूफी फेस्टिवल का समापन सुरों की महफिल और मोहक कथक प्रस्तुतियों के बीच हुआ। पूरे सभागार में संगीत, नृत्य और जज्बातों का ऐसा रसानुभव छाया कि दर्शक हर प्रस्तुति में एक नई ऊर्जा और एकता का संदेश महसूस करते रहे।
जयपुर। जेकेके में गुरुवार की शाम सूफियाना रंग, अध्यात्मिकता और भारतीय सांस्कृतिक विविधता का अद्भुत संगम देखने को मिला। इस तीन दिवसीय सूफी फेस्टिवल का समापन सुरों की महफिल और मोहक कथक प्रस्तुतियों के बीच हुआ। पूरे सभागार में संगीत, नृत्य और जज्बातों का ऐसा रसानुभव छाया कि दर्शक हर प्रस्तुति में एक नई ऊर्जा और एकता का संदेश महसूस करते रहे। कार्यक्रम की शुरुआत मशहूर सूफी-कव्वाल शाने आलम साबरी एवं उनके साथियों की प्रस्तुति से हुई। उनकी ओर से प्रस्तुत हिंदू मुसलिम एक ही थाली में खाए, ऐसा हिन्दुस्तान बना दे या अल्लाह... जैसे कलाम ने एकता और इंसानियत की पुकार को और अधिक दृढ़ता से उजागर किया।
वहीं धर्म मेरा इंसानी लिखना.. मुझको हिंदुस्तानी लिखना जैसे सन्देशपूर्ण गीत ने सभागार में देशभक्ति की भावना को प्रखर कर दिया। दूसरी प्रस्तुति में कथक नृत्यांगना मीनू गारू और उनके समूह ने मंच पर सुर-लय-ताल की सौंदर्यपूर्ण अभिव्यक्ति प्रस्तुत की। गुरु पं. कृष्ण मोहन महाराज की ओर से रचित गजल पर नृत्यांगना ने वियोग और प्रेम के सूक्ष्म भावों को सजीव किया, जबकि ए री सखी पिया घर आए... में मिलन की उमंग को सहजता से अभिव्यक्त किया। त में छाप तिलक सब छीनी रे... पर दी गई प्रस्तुति से कार्यक्रम का रंगारंग समापन हुआ।

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