वज्रनाभ ने दादी से मूर्ति पहचानने के लिए कहा-मुखारविंद देखते ही दादी ने घूंघट निकाल लिया

राज परिवार का झंडा नीचे और गोविन्द का झण्डा ऊपर लगता है

वज्रनाभ ने दादी से मूर्ति पहचानने के लिए कहा-मुखारविंद देखते ही दादी ने घूंघट निकाल लिया

भगवान जिस काले पत्थर पर स्नान करते थे, उसी से तीन मूर्तियों का निर्माण, मान्यता है कि जयपुर के गोविन्द देवजी, गोेपीनाथ जी और करौली के मदनमोहन जी के दर्शन एक सूर्य की रोशनी में करने पर माने जाते हैं सम्पूर्ण दर्शन

जयपुर। महाभारत के भीषण संग्राम के कुछ दशकों बाद भगवान श्रीकृष्ण के प्रपौत्र वज्रनाभ के मन में भगवान श्रीकृष्ण की प्रतिमा (मूर्ति) बनवाने का विचार कौंधा। उन्होंने अपनी वयोवृद्ध दादी को मन की बात बताई-योगेश्वर श्रीकृष्ण की मूर्ति बनाई जानी चाहिए, लेकिन भगवान कैसे लगते थे? उनका चेहरा-मोहरा, आंखे, बाल और मुस्कान कैसी थी? यह मूर्ति को देखकर आप ही बताना? आपने तो उनको प्रत्यक्ष देखा है। भगवान जिस काले पत्थर पर स्नान करते थे, उसी से तीन मूर्तियों का निर्माण दादी के अनुभव कथन के आधार पर हुआ। पहली मूर्ति जब बनकर तैयार हुई और वज्रनाभ ने दादी को मूर्ति दिखाई तो दादी ने कहा कि चरणारविंद की छवि ऐसी ही थी, जो करौली के प्रसिद्ध श्री मदन मोहन मंदिर में विराजमान हैं। दूसरी मूर्ति-वक्षस्थल की छवि उभरी, वो भी गुलाबी नगरी में स्थित श्री गोपीनाथ जी मंदिर में प्रतिष्ठित हैं। तीसरी मूर्ति बनाकर जब दादी को दिखाई तो भगवान का चेहरा देखते ही दादी ने घूंघट निकाल लिया...और कहा बिल्कुल ऐसे ही दिखते थे गोविन्द। यही विग्रह जयपुर के अराध्य श्री गोविंद देव जी मंदिर में विराजमान हैं। दरअसल, श्रीकृष्ण के तीन विग्रह दो शहरों में स्थापित हैं, मान्यता है कि एक सूर्य की रोशनी में ही तीनों विग्रह के दर्शन करने से भगवान श्रीकृष्ण के सम्पूर्ण दर्शन होते हैं।

वृंदावन से जयपुर और करौली तक की यात्रा-
मुगल काल में जब मंदिरों और मूर्तियों पर आक्रमण हो रहे थे, तब इन विग्रहों को बचाने के लिए उन पर सिंदूर लगाकर मिट्टी में दबा दिया गया था। बाद में छिपाते-छिपाते इन्हें वृंदावन से जयपुर लाकर कनक वृन्दावन में स्थापित किया गया। उस समय जयपुर का निर्माण हो रहा था, तभी एक रात जयपुर के संस्थापक महाराजा सवाई जयसिंह को स्वप्न में भगवान गोविन्द देवजी ने चंद्र महल के पास स्थापित करने के लिए कहा तो उन्होंने वहां पर मंदिर का निर्माण कराया। जानकार लोगों का कहना है कि जिस स्थान पर मंदिर बना हुआ है, उस जगह महाराजा सिटी पैलेस बनाना चाहते थे, लेकिन सपने को पूरा करते हुए मंदिर की स्थापना कराई और उसके पास सिटी पैलेस की स्थापना हुई। यह मंदिर इस प्रकार से बना हुआ है कि चन्द्र महल में स्थित महाराजा के शयन कक्ष से भगवान के दर्शन किए जा सकते हैं। 

राज परिवार का झंडा नीचे और गोविन्द का झण्डा ऊपर लगता है
जयपुर राज परिवार ने भगवान गोविन्द को जयपुर का राजा मान लिया, ऐसे में भगवान गोविन्द का झण्डा राजपरिवार के झण्डे से ऊपर और राजपरिवार का झण्डा आज भी नीचे लगता है। महाराजा सवाई जयसिंह ने गोविन्द देवजी की एक मोहर भी बनवाई जिस पर लिखा था- 'गोविन्द के चरण, सवाई जयसिंह शरण।' सम्पूर्ण दर्शन कैसे होते हैं मान्यता है कि सबसे पहले गोविन्द देव जी, फिर गोपीनाथ जी और उसी दिन करौली के मदनमोहन जी के दर्शन करने से सम्पूर्ण दर्शन माने जाते हैं। 

भगवान मदन मोहन ने पकड़ ली थी करौली राजा की उंगली
करौली के तत्कालीन नरेश और श्रीकृष्ण के परम भक्त राजा गोपाल सिंह को स्वप्न में भगवान ने दर्शन दिए और मूर्ति को करौली ले जाने का आदेश दिया। जयपुर पहुंचने पर राजा गोपाल सिंह की आंखों पर पट्टी बांधकर मूर्ति पहचानने के लिए कहा गया। कथा है कि स्वयं भगवान मदन मोहन ने राजा की उंगली पकड़ ली। इसके बाद यह विग्रह करौली ले जाया गया और राजमहल के बीच बने श्री राधा गोपाल जी मंदिर में स्थापित किया गया। करौली के श्री मदन मोहन मंदिर में भगवान राधारानी के साथ विराजमान हैं। भगवान के बाईं ओर राधा गोपाल जी और दाईं ओर राधा-ललिता जी की प्रतिमाएं हैं। मान्यता है कि एक ही दिन में श्री गोविंद देव जी, श्री गोपीनाथ जी और श्री मदन मोहन जी के दर्शन से भगवान श्रीकृष्ण के पूर्ण स्वरूप के दर्शन होते हैं, जो जीवन में मोक्ष की ओर मार्ग प्रशस्त करते हैं। हर वर्ष हजारों श्रद्धालु इस परंपरा का पालन करते हुए एक ही दिन तीनों मंदिरों के दर्शन कर पुण्य अर्जित करते हैं। 

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