वर्ल्ड हीमोफीलिया डे आज : हीमोफिलिया आनुवांशिक रक्त विकार, प्रदेश में डेढ़ लाख मरीज समय पर इलाज नहीं मिलने पर बीमारी बन जाती है जानलेवा
अत्याधुनिक दवाओं और थेरेपी के जरिए अब इलाज हुआ आसान
हीमोफिलिया में शरीर के किसी भाग में चोट लगने पर रक्त बहना रुकता नहीं है
जयपुर। हीमोफीलिया एक अनुवांशिक रक्त विकार है, जिसमें शरीर के किसी भाग में चोट लगने पर रक्त बहना रुकता नहीं है। इस रोग में रक्त के थक्के बनने की प्रक्रिया बाधित हो जाती है, जिससे सामान्य से अधिक खून बहता है। यदि समय रहते इलाज न हो, तो यह स्थिति जानलेवा भी हो सकती है लेकिन अब चिकित्सा विज्ञान की प्रगति के चलते हीमोफीलिया का इलाज सम्भव है। बस जरूरत है समय पर पहचान और सतर्कता की। अकेले राजस्थान में हीमोफीलिया के करीब डेढ़ लाख मरीज हैं। अत्याधुनिक दवाओं और थैरेपी के जरिए इस बीमारी का इलाज आसान हो गया है। इसके अलावा जीन थैरेपी पर भी रिसर्च और क्लिनिकल ट्रायल चल रहे हैं जिससे हीमोफीलिया को पूरी तरह ठीक करने किया जा सके।
क्या है हीमोफीलिया और कितने हैं इसके प्रकार
भगवान महावीर कैंसर हॉस्पिटल के सीनियर हेमेटॉलजिस्ट डॉ. उपेंद्र शर्मा ने बताया कि हीमोफीलिया एक अनुवांशिक बीमारी है जो आमतौर पर पीढ़ियों में चलती है। हमारे शरीर में खून के थक्के जमाने वाले कई प्रकार के क्लॉटिंग फैक्टर्स होते हैं। जब इनमें से फैक्टर-8 की कमी हो जाती है, तो हीमोफीलिया-ए होता है जो सबसे अधिक सामान्य है। वहीं फैक्टर-9 की कमी से हीमोफीलिया बी होता है। दोनों ही स्थितियों में रक्तस्राव अधिक समय तक चलता है और कभी-कभी मामूली चोट भी बड़ी समस्या बन जाती है।
क्लॉटिंग फैक्टर थैरेपी से इलाज संभव
डॉ. उपेन्द्र ने बताया कि हीमोफीलिया के मरीजों के लिए अब क्लॉटिंग फैक्टर थैरेपी के जरिए इसका इलाज सम्भव है। यदि समय पर मरीज को ये फैक्टर दिए जाएं तो अत्यधिक रक्त बहाव की सम्भावना काफी हद तक कम की जा सकती है।
नई दवाओं से इलाज हुआ बेहतर
हीमोफीलिया के इलाज में मोनोक्लोनल एंटीबॉडीज की दवाएं एमिसिजुमैब भी आ गई हैं जो इंजेक्शन से त्वचा के अंदर महीने में एक बार दी जाती है। इससे हीमोफीलिया-ए, जिन्हें इन्हीबिटर है या नहीं, उनमें ब्लीडिंग रोकने में काम आती है। इसके अलावा हीमोफीलिया-ए और बी से जूझ रहे मरीजों के लिए एक राहतभरी खबर आई है। फिटुसिरान नामक नई दवाए जो आरएनए इंटरफेरेंस तकनीक पर आधारित है। यह दवा यकृत में बनने वाले एंटीथ्रॉम्बिन नामक प्राकृतिक रक्त पात रोकने वाले प्रोटीन को कम करती है। जब एंटीथ्रॉम्बिन घटता है, तो थ्रॉम्बिन नामक तत्व का निर्माण बढ़ता है, जिससे रक्त का थक्का बनने की प्रक्रिया सुधरती है।
किन मरीजों में है फिटुसिरान कारगर
फिटुसिरान उन मरीजों के लिए भी कारगर सिद्ध हो रही है जिनमें पारंपरिक इलाज बेअसर रहा है या जिनमें इनहिबिटर्स पाए जाते हैं। इसे महीने में एक बार त्वचा के नीचे इंजेक्शन के रूप में दिया जा सकता है, जिससे बार-बार अस्पताल आने की आवश्यकता भी घटती है।
एहतियात भी है जरूरी
दर्द की सामान्य दवाएं बिना डॉक्टर की सलाह के न लें, ये रक्त बहाव बढ़ा सकती हैं।
खेलने-कूदने के दौरान विशेष सतर्कता बरतें, जिससे चोट न लगे।
मुंह और दांतों की स्वच्छता बनाए रखें क्योंकि मसूड़ों से ब्लीडिंग होने पर स्थिति बिगड़ सकती है।

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