चाहे दवा का रैपर कट फट जाए, मरीज की सुरक्षा के लिए हर हाल में एक्सपायरी डेट मिले
दवा संबंधी जानकारी की पारदर्शिता बढ़ेगी
दवाओं की एक्सपायरी डेट सुनिश्चित करने के लिए क्या कोड नंबर सिस्टम होना चाहिए?
कोटा । आजकल हर घर में हल्की-फुल्की बीमारी या समस्या के लिए दवाइयां लेना सामान्य बात हो गई है। बहुत से लोग सिर दर्द या शरीर में दर्द के लिए पेन किलर हमेशा अपने पास रखते हैं। लेकिन कई बार ऐसा होता है कि दवाओं की एक्सपायरी डेट निकल चुकी होती है, जिससे व्यक्ति यह तय नहीं कर पाता कि उसे दवा लेनी चाहिए या नहीं। यह स्थिति अक्सर भ्रम और चिंता का कारण बनती है।
रैपर पर एक्सपायरी डेट का मिटना या कटना
दवा कंपनियां आमतौर पर दवाओं पर एक्सपायरी डेट अंकित करती हैं, लेकिन अक्सर रैपर या पैकिंग पर छपी डेट कट जाती है या मिट जाती है, जिससे यह जानना मुश्किल हो जाता है कि दवा सुरक्षित है या नहीं। इस समस्या से बचने के लिए एक सुझाव है कि दवाओं पर एक न्यूमेरिक कोड नंबर लगाया जाए, जिससे उपभोक्ता आसानी से दवा की एक्सपायरी डेट इंटरनेट पर सर्च कर के जान सकें।
न्यूमेरिक कोड नंबर सिस्टम
अगर दवाओं के रैपर पर यूनिफॉर्म तरीके से पूरी स्ट्रिप पर न्यूमेरिक कोड नंबर दिया जाए, तो यह उपभोक्ताओं के लिए बहुत फायदेमंद होगा। अगर रैपर फट जाए या कुछ गोलियां या एक गोली भी बच जाएं, तो भी कोड नंबर से दवा की पूरी जानकारी प्राप्त की जा सकेगी। इस कोड को इंटरनेट पर सर्च करने से दवा की मैन्युफैक्चरिंग डेट, एक्सपायरी डेट, बैच नंबर, कंपनी का नाम और यह भी पता चल सकेगा कि दवा असली है या नकली।
इस प्रणाली के लागू होने से होंगे ये लाभ
1. एक्सपायरी डेट की जानकारी तुरंत प्राप्त हो सकेगी, जिससे उपभोक्ता पुरानी दवाएं सेवन करने से बचेंगे।
2. नकली दवाओं की पहचान में मदद मिलेगी, और असली दवाओं का चुनाव करना आसान होगा।
3. दवाओं की सुरक्षा बढ़ेगी, और उनके उपयोग से होने वाले स्वास्थ्य जोखिम कम होंगे।
4. दवा संबंधी जानकारी की पारदर्शिता बढ़ेगी, जिससे उपभोक्ताओं को दवा के बारे में पूरी जानकारी मिल सकेगी।
इस तरह की व्यवस्था से उपभोक्ता दवाओं का सुरक्षित और सही तरीके से उपयोग कर पाएंगे और दवाओं से जुड़ी समस्याएं कम होंगी। इस विषय पर दैनिक नवज्योति ने शहर के लोगों की राय ली और उनसे जानने की कोशिश की कि उनका इस बारे में क्या कहना है।ं
मैं आपके सुझाव से सहमत हूं। अगर दवाइयों पर एक्सपायरी डेट के अलावा एक कोड भी होगा, तो इसका फायदा यह होगा कि यदि पुराना स्टाक रखा होता है तो दवा कम्पनियां पुराने पैकेट को छेड़कर नई डेट चिपकाती है, तो उसे आसानी से ट्रैक किया जा सकेगा। कोड के जरिए हम यह जान सकते हैं कि दवा कब बनी थी और उसकी एक्सपायरी डेट क्या है, जिससे आम लोगों को राहत मिलेगी।
- महावीर प्रसाद नायक, डायरेक्टर धनलक्ष्मी प्रॉपर्टीज
कोड नम्बर लिखने से एक्सट्रा सेफ्टी हो जाएगी। अन्यथा दवा लेने वाले को ही ध्यान रखना पड़ेगा कि रैपर शुरू करते है उसी समय देख लें एक्सपायरी डेट जिससे ध्यान रहे। दवा के रैपर पर एक-दो स्थानों पर एक्सपायरी डेट लिखी जानी चाहिए, जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि यदि एक स्थान से हट जाए तो दूसरी जगह से आसानी से पता चल सके।
- डॉ. अरूणा अग्रवाल, वरिष्ठ स्त्री रोग विशेषज्ञ
दवा पर एक कोड नंबर या बारकोड डालना चाहिए, जिससे उसकी एक्सपायरी डेट आसानी से पता चल सके। कोड को थोड़ा बोल्ड और स्पष्ट रूप से लिखा जाए ताकि विशेषकर बुजुर्ग लोग भी उसे पढ़ सकें। इसके साथ ही, एक्सपायर होने वाली तारीख भी लिखी जाए, ताकि मरीज आसानी से जान सकें कि दवा कब एक्सपायर होगी। यह कोड आॅनलाइन सर्च करने के लिए उपयोगी होगा, जिससे सारी जानकारी प्राप्त की जा सके।
- प्रियंका गुप्ता, संस्थापक, अभिलाषा क्लब
दवाइयों के पैकेट पर क्यूआर कोड दिया जाए, जिससे वह स्कैन करके सारी जानकारी प्राप्त कर सकें। यदि दस गोलियों की स्ट्रिप है, तो दो जगह क्यूआर कोड होना चाहिए ताकि यदि कोई आधी स्ट्रिप लेता है तो भी उसे जानकारी मिल सके। कोड नंबर फिजिबल नहीं है पब्लिक पोर्टल इस तरह का है नहीं ऐसे में डीकोड कौन करेगा। क्यूआर कोड के जरिए मोबाइल फोन से घर बैठे ही स्कैन करने से एक्सपायरी डेट और बाकी की जानकारी प्राप्त की जा सकती है। यह आम जन ता के लिए बेहद सुविधाजनक होगा।
- डॉ. विजय सरदाना, पूर्व प्रधानाचार्य, मेडिकल कॉलेज
दवा के पैकेट पर एक्सपायरी डेट एक ही स्थान पर लिखी जाती है। हालांकि कई बार हम दवा गलती से उसी स्थान से निकाल लेते हैं। इसलिए, कम से कम दो-तीन स्थानों पर एक्सपायरी डेट लिखी जानी चाहिए, ताकि अगर एक स्थान से हट जाए तो दूसरी जगह से पता चल सके। इसके अलावा, कोड नंबर या बारकोड भी लिखा जा सकता है, जिससे हम स्कैन करके डेट की जानकारी प्राप्त कर सकें।
- महेश गुप्ता, डायरेक्टर, शिव ज्योति एज्यूकेशनल ग्रुप, कोटा
यह एक बहुत सही मुद्दा है और सभी फार्मा कंपनियों को इसे फॉलो करना चाहिए। कई बार दवाइयां बर्बाद हो जाती हैं, या मरीज अंजाने में गलत दवाइयां ले लेते हैं। कंपनियां क्यूआर कोड या यूनिक कोड डाल सकती हैं, जिससे पूरी जानकारी स्कैन करके मिल सके। अगर ऐसा न हो सके, तो कम से कम हर गोली के पैकेट पर एक्सपायरी डेट प्रिंट की जानी चाहिए। ग्रामीण क्षेत्रों के मरीज के लिए यह आवश्यक है, क्योंकि वह क्यूआर कोड को स्कैन करना नहीं जानता। सबसे अच्छा तो यहीं रहेगा कि सभी फार्मा कंपनी रैपर पर ही एक्सपायरी डेट मेंशन करें या दोनों विकल्प रखें कंपनी को जो यूज करना हो कर सकें।
- डॉ. गौरव मेहता, स्पाइन सर्जन, ईथॉस हॉस्पिटल
कई बार जब हम दवा का रैपर खोलते हैं, तो एक्सपायरी डेट बहुत छोटे अक्षरों में लिखी होती है और स्पष्ट नहीं दिखाई देती। इस स्थिति में, एक कोड नंबर, बैच नंबर, या रैपर के फ्रंट पर एक्सपायरी डेट लिखी जानी चाहिए। इससे यह सुनिश्चित होगा कि दवा एक्सपायर होने से पहले हम उसकी जानकारी प्राप्त कर सकें, और किसी भी परेशानी से बच सकेंगे।
- रितु बोहरा, सीए
ड्रग एंड कॉस्मेटिक एक्ट 1940 और रूल 1945 के तहत ऐसा कोई प्रावधान नहीं है कि एक्सपायरी डेट दो स्थानों पर लिखी जाए। एक्सपायरी डेट एक ही स्थान पर लिखी जाती है। दवा के पैकेट पर जो जानकारी दी जाती है, जैसे कंपनी का नाम, कंपोजीशन, लाइसेंस नंबर आदि, वह सभी नियमों के तहत होती है। यदि एक्सपायरी डेट दूसरी जगह भी लिखी जाए, तो बाकी की जानकारी समायोजित नहीं हो सकेगी। एक्ट के अनुसार लेबलिंग नहीं लिखते है तो दवा मिसब्रांडेड मानी जाती है। लेबल नहीं पाया जाएगा तो फिर वो नकली मानी जाएगी। इसलिए, यह सुनिश्चित किया जाता है कि एक ही स्थान पर सभी आवश्यक जानकारी हो।
- आसाराम मीना, ड्रग कंट्रोलर कोटा

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