विदेशी तकनीक का उपयोग करें तो बुझ सकती है जंगल की आग, एआई तकनीक का भी हो सकता है उपयोग

गर्मी के सीजन में रोजाना लग रही वन क्षेत्र में आग: फिक्सड विंग एयरप्लेन व हैली कॉप्टर का कोटा में भी हो सकता है उपयोग

विदेशी तकनीक का उपयोग करें तो बुझ सकती है जंगल की आग, एआई तकनीक का भी हो सकता है उपयोग

पुराने संसाधन व निगम की दमकलों के भरोसे ही आग पर काबू पाने के प्रयास किए जा रहे हैं

कोटा। कैली फार्निया, अमेजोन और आस्ट्रेलिया के जंगलों में लगी आग को काबू पाने के लिए वहां जिस तरह से फिक्सड विंग एयरप्लेन व हैली कॉप्टर वाटर बम का उपयोग किया जा रहा है। उसी तरह से कोटा के आस-पास के जंगलों में लग रही आग पर काबू पाने के लिए भी उन विदेशी तकनीक का उपयोग किया जा सकता है। जंगल में आग लगने पर इन तकनीक का इस्तेमाल किया जाए तो स्थायी रुप से आग से निजात मिल सकती है। हाल ही में एमेजोन व आस्ट्रेलियां के जंगलों में विशाल आग लगी थी। हालांकि आस्ट्रेलिया के जंगल में तो आग अभी भी लगी हुई है। यह काफी बड़े एरिया में फेल चुकी है। यहां आग से कई इलाके तबाह होने के साथ ही कई लोगों की जान तक जा चुकी है। उसके बावजूद वहां की सरकार व प्रशासन द्वारा आग को काबू करने के लिए हवाई तकनीक का उपयोग किया जा रहा है। जिससे न तो वाहनों के जंगल में पहुंचने की समस्या है और न ही दमकलों के धंसने व फंसने की समस्या है। काफी ऊंचाई से पानी की बौछार कर आग पर आसानी से काबू पाया जा सकता है। इसी तरह से कैलीफार्नियां के जंगल में भी आग काफी बड़े एरिया में फेली थी। जिसे काबू पाने के लिए हैली कॉप्टर तकनीक का उपयोग किया गया था। साथ ही ड्रोन सिस्टम से पानी की बौछार कर आग पर काबृू पाजा जा सका था। उसी तरह की तकनीक व संसाधनों का कोटा व आस-पास के इलाकों के जंगल में लग रही आग को बुझाने में भी किया जा सकता है। लेकिन हालत यह है कि कोटा के लाड़पुरा और मुकुन्दरा हिल्स टाइगर रिजर्व का हजारों बीघा वन क्षेत्र होने के बावजूद वन विभाग के पास आग बुझाने के आधुनिक संसाधन तक नहीं है। अभी भी पुराने संसाधन व निगम की दमकलों के भरोसे ही आग पर काबू पाने के प्रयास किए जा रहे हैं। 

यहां आए दिन खतरा
शहर में हाल ही में मुकुन्दरा विहार क्षेत्र के जंगल में, जवाहर सागर डेम के जंगल में,झालीपुरा के फोरेस्ट एरिया में, कोलीपुरा घाटी के पास जंगल क्षेत्र में, जगपुरा समेत अन्य क्षेत्रों में आग लग रही है। जिसे बुझाने के लिए कोटा शहर से नगर निगम की दमकलों को भेजा जा रहा है। लेकिन वन क्षेत्र अंदरूनी इलाका होने से वहां तक दमकलों को पहुंचने में ही समस्या हो रही है। कई दमकलें रास्ते में धंस रही है तो किसी के टावर फट रहे है। कोई दमकल रास्ते में ही खराब हो रही है तो किसी जगह पर दमकलों से लम्बे पाइप के जरिय आग बुझाने का प्रयास किया जा रहा है। 

एआई तकनीक का भी हो सकता है उपयोग
जिस तरह से वर्तमान में हर जगह एआई तकनीक का उपयोग किया जा रहा है। उसी तरह से आग बुझाने के संसाधनों के रूप में भी एआई तकनीक का उपयोग किया सकता है। इस तकनीक से आग पर जल्दी और समय रहते काबू पाने में अधिक मदद मिल सकती है। 

गर्मी में रोजाना लग रही आग
शहर में जिस तरह से तापमान 40 डिग्री से अधिक और 44 डिग्री के पार पहुंच चुका है। ऐसे में शहर के आस-पास चाहे रावतभाटा रोड हो या झालावाड़ रोड के नजदीकी जंगल व वन क्षेत्र की सूखी झाड़ियों में भीषण आग लग रही है। आग फेलने का कारण तेज हवा चलना भी है। सूखी घास व झाड़ी में आग तेजी से फेलने के साथ ही हवा से वह काफी बड़े एरिया तक फेल भी रही है। जिसे काबू पाना वन विभाग के अलावा नगर निगम के फायर अनुभाग के लिए भी चुनौती बनता जा रहा है। साथ ही आग बुझाने में समस्याओं का सामना भी करना पड़ रहा है। 

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आधुनिक तकनीक हो तो सुविधाजनक
कोटा में दो तरह का फोरेस्ट एरिया है। एक वाइल्ड लाइफ व दूसरा टेरीटोरियल। लाड़पुरा रैंज में टेरीटोरियल एरिया है। जहां सीमित संसाधनों से आग बुझाने का प्रयास किया जाता है। साथ ही निगम की दमकलों से आग पर काबू पाया जाता है। वहीं आग को बढ़ने से रोकने के लिए जगह-जगह पर जेसीबी से गड्ढ़े किए जाते है। जंगल में आग लगने पर उसे बुझाने के लिए आधुनिक तकनीक का उपयोग तो हो सकता है लेकिन यह उच्च स्तर का मामला है। तकनीकी का उपयोग करने से आग बुझाना सुविधा जनक हो जाएगा। 
- इंद्रेश यादव, आरओ लाड़पुरा

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सज्जनपुरा व हिमाचल में हैली कॉप्टर का उपयोग
जंगल में आग बुझाने जाने में कई समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। इसके  लिए वन विभाग को अपने यहां आधुनिक संसाधनों का उपयोग करना चाहिए। जिस तरह से हिमाचल व उत्तराखंड के जंगल में आग लगने पर और उदयपुर के सज्जनपुरा की  पहाड़ी में आग लगने पर उसे बुझाने के लिए हैली कॉप्टर का उपयोग किया गया था। कोटा में भी विदेशी व आधुनिक तकनीक का उपयोग जंगल की आग बुझाने में किया जा सकता है। फोरेस्ट एरिया में वाटर लाइन सिस्टम बनाया जा सकता है। जिससे आग को फेलने से रोकने में मदद मिलेगी। 
- राकेश व्यास, सीएफओ नगर निगम दक्षिण

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वन विभाग को जुटाने होंगे संसाधन
फोरेस्ट एरिया में आग लगने पर निगम की दमकलों के भरोसे रहते हैं। जबकि दमकलों के पहुंचने में दिक्कत आती है। कोटा के जंगलों में अधिकतर ग्राउंड एरिया में आग लगती है। ऐसे में यहां हैली कॉप्टर तकनीक का उपयोग नहीं किया जा सकता। उससे हवा चलने पर आग फेलने का खतरा रहता है। कई साल पलहे सुझाव दिया था कि हर पंचायत मुख्यालय पर ट्रेैक्टर टैंकर रखा जाए। जिसके खेत व जंगल में धंसने की समस्या भी नहीं रहती । ट्रेक्टर आसानी से किसी भी एरिया में जा सकता है। साथ ही आधुनिक फायर वाटर सिस्टम का उपयोग कर जंगल की आग को बुझाया जा सकता है।  - संजय शर्मा, सेवानिवृत्त सीएफओ 

कोटा में भी आधुनिक संसाधनों की दरकार
कोटा के आस-पास वन क्षेत्र और मुकुन्दरा के फोरेस्ट एरिया में आग लगने पर उसे बुझाने के लिए विभाग की टीम लगी हुई है। फिलहाल आग को बढ़ने से रोकने के लिए आग वाली जगह से 50 से 60 फीट की दूरी  पर गड्ढ़े कर आग को ब्रेक किया जाता है। जिससे वह आगे नहीं फेल सके। उसके अलावा विभाग के फायर फाइटर्स सिस्टम का भी उपयोग किया जाता है। वैसे विभाग के पास थर्मल ड्रोन है जिसकी मदद से रात के समय भी फोरेस्ट में आग लगने पर उसका पता लगाया जा सकता है। जिससे टीम को वहां पहुंचने में सुविधा होती है। वैसे विदेशी व आधुनिक तकनीक का कोटा में जंगल की आग बुझाने में उपयोग हो सकता है। इसके लिए उच्च स्तर पर निर्णय लिया जा सकता है। लेकिन हैली कॉप्टर का उपयोग अधिकतर क्राउन फायर में किया जाता है। जिसमें आग पेड़ से अधिक ऊंचाई तक हो। जबकि कोटा व राजस्थान में इस तरह की आग नहीं होकर अधिकतर ग्राउंड की आग लगती है। 
- मुथु एस. डीएफओ मुकुन्दरा

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