सीधी सूंड के साथ जोगी वेश में खड़े हैं गणेश
हाड़ौती की शान: रंगबाड़ी में बिराजे है खड़े गणेश जी
आस्था, पराक्रम व गणेश चतुर्थी पर विशेष आयोजनों का केंद्र है मंदिर
कोटा। कोटा जिले के रंगबाड़ी क्षेत्र में स्थित खड़े गणेश जी भगवान का मंदिर आज पूरे हाड़ौती क्षेत्र की श्रद्धा और आस्था का केंद्र बना हुआ है। यह मंदिर अपनी विशेष मूर्ति शैली के लिए प्रसिद्ध है, क्योंकि यहां भगवान गणेश खड़े रूप में विराजमान हैं, उनकी सूंड सीधी है। श्रद्धालुओं के अनुसार पूरे भारत वर्ष में ऐसी गणेश प्रतिमा कहीं अन्यत्र नहीं है। अधिकांश क्षेत्रों में सामान्यत: विराजमान मुद्रा में देखे जाते हैं। भगवान गणेश की खड़ी मूर्ति उनकी शक्ति, पराक्रम और चुनौतियों पर विजय पाने की क्षमता का प्रतीक है। गणेश चतुर्थी के दिन स्वर्ण शृंगार के साथ अभिषेक किया जाएगा। हालांकि खड़े गणेश मंदिर का सटीक इतिहास स्पष्ट नहीं है। किंवदंतियों के अनुसार मुगल रियासतकालीन में घने जंगलों में खड़ी अवस्था में मिली है।
गणेश चतुर्थी पर होंगे विशेष आयोजन
पं. ओमसिंह महाराज ने बताया कि इस खड़े गणेश मंदिर में विशेष आयोजन होंगे। खड़े गणेश मंदिर व गुरु रतनसिंह की समाधि को विशेष फूलों से शृंगार किया जाएगा। वहीं गणेश प्रतिमा का स्वर्ण शृंगार भी किया जाएगा। महाआरती सुबह साढ़े पांच बजे होगी। उन्होंने बताया कि गणेश चतुर्थी के दिन मंदिर मंगलवार रात्रि 12 बजे से लेकर बुधवार पूरे दिन तथा रात्रि 12 तक श्रद्धालुओं के खुला रहेगा। सभी श्रद्धालुओं के खड़े गणेश मंदिर के दर्शन के बाद प्रसादी का वितरण भी किया जाएगा। मंदिर के मुख्य गेट से लेकर अंदर परिसर तक आने-जाने के लिए श्रद्धालुओं के लिए प्रवेश द्वार व एक्गिज द्वार की अलग व्यवस्था की है।
संतान की मनोकामना भी होती है पूरी
गुरु माता खेम कंवर ने बताया कि दूर-दराज क्षेत्रों से पांच सौ से अधिक श्रद्धालु संतान की मनोकामना के लिए आए है। यहां सच्चे मन से खड़े गणेश मंदिर में दर्शन कर संतान की मनोकामना मांगते है। मनोकामना पूरी होने के बाद श्रद्धालु खड़े मंदिर में भेंट भी चढ़ाकर जाते है। मुख्य पुजारी का आशीर्वाद भी प्राप्त करते है।
अनूठी विशेषताओं से जुड़ा है मंदिर का इतिहास
रंगबाड़ी में स्थित खड़े गणेश मंदिर भव्यता के अनूठी विशेषताएं भी संजोए हुए है। मुख्य पुजारी ओमसिंह महाराज ने बताया कि खड़े गणेश की एकमात्र मूर्ति है जिनकी सूंड सीधी अवस्था में है तथा जोगी वेश में है। भारत में अन्यत्र कहीं नहीं है। खड़े गणेश जी के हाथ में कमंडल, कमल,माला व अन्य हाथ से भक्तजनों को सुख-समृद्धि का आशीर्वाद प्रदान कर रहे है। यहां की मान्यता है कि जो सच्चे मन से यहां आते है उनकी मान्यता सात दिन में पूरी हो जाती है। यहां आने वाले अधिकतर भक्तजन शादी-ब्याह, नौकरी तथा अपनी घरेलू परेशानियों से निजात पाने के लिए आते है। यहां आने वालु श्रद्धालुओं से कभी फीस नहीं ली जाती है। तथा सही मार्गदर्शन किया जाताहै।
खड़े गणेश मंदिर में वीआइपी भी लगाते हैं धोक
पंडित ओमसिंह महाराज ने बताया कि पूरे राज्य से वीआइपी श्रद्धालु आते हैं। यहां पूजा-पाठ करते है तथा अपना अनुष्ठान करते है। यहां स्थानीय नेताओं के साथ-साथ अन्य राज्यों के विशेष अतिथि भी खड़े गणेश मंदिर में धोक लगाने आते है। पूर्व राज्यपाल कलराज मिश्र भी यहां की मान्यताओं से प्रभावित होकर खड़े गणेश मंदिर में दर्शन करने आए थे। इसके अलावा पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे भी सीएडी सर्किल से पैदलयात्रा कर खड़े गणेश मंदिर पहुंची थी। पूजा-पाठ कर खड़े गणेश भगवान का आशीर्वाद प्राप्त किया था।
हर बुधवार को लगता है भक्तों का तांता
वर्तमान में कोटा शिक्षानगरी व पर्यटन नगरी के रूप विख्यात है यहां आने विद्यार्थी व उनके परिजन देश के कोने-कोने से आते है तथा यहां रहकर उच्चशिक्षा प्राप्त करने के साथ हर बुधवार को खड़े गणेश मंदिर जाकर अपनी मनोकामना मांगते है। मनोकामना पूरी होने पर इसकी ख्याति आज विदेशों में भी पहुंची है। कोटा शहर के जो भक्त विदेश में रहते है वो आॅनलाइन से भी महाआरती के दर्शन करते है। मंदिर की बनावट और वहां की शांति मन को एक अद्भुत आध्यात्मिक अनुभूति प्रदान करती है। श्रद्धालु खड़े गणेश जी से सुख-शांति, समृद्धि एवं सिद्धि की कामना करते हैं। वहीं पुरानी मान्यताओं के अनुसार सच्चे मन से मांगी गई मुराद सात दिन के अंदर ही पूरी हो जाती है। यह मंदिर शहर से कुछ ही दूरी पर स्थित है और सड़क मार्ग से आसानी से पहुंच सकते हैं। यह मंदिर न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह स्थानीय सांस्कृतिक विरासत का भी प्रतीक है।
12 साल की उम्र से मंदिर मैं कर रहा हूं पूजा
श्री खड़े गणेश जी महाराज ट्रस्ट, रंगबाड़ी, कोटा के मुख्य पुजारी व अध्यक्ष पं. ओमसिंह महाराज ने बताया कि यह प्रतिमा करीब 600 साल से भी ज्यादा पुरानी है। उस मुगलों का राज हुआ करता था। जब मैं 12 वर्ष का था तब मैं गुरुजी की भक्ति में लग गया था तथा उनके साथ रंगबाड़ी स्थित घने जंगलों में आ गया था। मेरे गुरु रतनसिंह महाराज हमेशा कठिन तपस्या करते थे। मेरे गुरु ने ही मुझे पाला है। आज मैं 65 वर्ष के होने के बावजूद कठिन तप करता हूं। प्राचीनकाल में यह जंगली इलाका था, जब हम यहां आए तब यहां कदम के बड़े-बड़े पेड़ थे। यहां पर हमने रियासतकालीन समय में स्थापित प्रतिमा 12 पिलरों के रूप में छतरी बनी हुई थी जहां खड़े गणेश भगवान की प्रतिमा स्थापित थी। पुरानी किंवदंती के अनुसार गणेश भगवान अपनी पत्नी रिद्धी-सिद्धी को लेकर यहां से गुजरे थे। किसी श्रद्धालु की मनोकामना के लिए यहां रूक गए थे। तब से लेकर आज तक खड़े स्वरूप में ही यह प्रतिमा है।

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