16 हजार की डिग्री के लिए बालिकाएं चुका रही 50 हजार, रेगुलर स्कीम में 3 हजार रुपए फीस
जेडीबी आर्ट्स कॉलेज में एमए-होम साइंस व जीपीईएम का मामला
रेगुलर स्कीम के मुकाबले सेल्फ फाइनेंस स्कीम में ढाई गुना ज्यादा लग रही फीस
कोटा। कोटा संभाग का सबसे बड़ा गर्ल्स कॉलेज जेडीबी आर्ट्स में एमए होम साइंस व जीपीईएम पिछले 7 साल से सेल्फ फाइनेंस स्कीम में संचालित हो रहे हैं। जिससे बालिकाओं की शिक्षा महंगी हो गई। नतीजन, 16 हजार की डिग्री के लिए उन्हें 50 हजार रुपए फीस चुकानी पड़ रही है। सरकारी कॉलेज होने के बावजूद महंगी फीस, बालिकाओं के शिक्षा में बढ़ते कदम पर बेड़ियां बन गई। दरअसल, जेडीबी आर्ट्स कॉलेज में गारमेंट प्रोडेक्शन एंड एक्सपोर्ट मैनेजमेंट (जीपीईएम) व होम साइंस बीए तक तो सरकारी स्कीम के तहत संचालित होता है। जिसमें कोर्स फीस परईयर 3 हजार रुपए लगती है। जबकि, एमए में यही कोर्स सेल्फ फाइनेंस स्कीम में चलने से 20 हजार रुपए परईयर हो गई। महंगी फीस के कारण बालिकाओं को बारां-झालावाड़ की ओर रुख करना पड़ रहा है। वहीं, इंडस्ट्रीज में डिमांड होने के बावजूद छात्राएं इन पाठ्यक्रमों में एडमिशन नहीं ले पा रही।
जीपीईएम : 40 हजार कोर्स व 10 हजार एग्जाम फीस: राजकीय कला कन्या महाविद्यालय में सेल्फ फाइनेंस स्कीम के तहत एमए जीपीईएम कोर्स की फीस पर-ईयर 20 हजार रुपए है। साल में दो बार सेमेस्टर एग्जाम होते हैं। पर-सेमेस्टर एग्जाम फीस ढाई हजार रुपए है, ऐसे में एक साल के 25 हजार रुपए होते हैं और दो साल का पीजी कोर्स पूरा करने के लिए छात्राओं को 50 हजार रुपए चुकाने पड़ते हैं। ग्रामीण परिवेश से आने वाली छात्राओं के लिए इतनी महंगी फीस दे पाना चुनौतिपूर्ण रहता है। ऐसे में कई छात्राएं रुचि होने के बावजूद इस कोर्स में दाखिला नहीं ले पाती।
रेगुलर स्कीम में 3 हजार रुपए फीस
जीपीईएम विभागाध्यक्ष प्रो. बिंदू चतुर्वेदी बताती हैं, यदि गारमेंट प्रोडेक्शन एंड एक्सपोर्ट मैनेजमेंट (जीपीईएम) कोर्स सरकारी स्कीम में संचालित किया जाए तो इसकी फीस 20 हजार की बजाय 3 हजार रुपए सालाना हो जाएगी। वहीं, सेमेस्टर एग्जाम फीस 5 हजार रुपए जोड़कर 8 हजार रुपए में एक साल पूरा हो जाएगा। इस तरह दो साल की यह डिग्री 50 हजार की जगह 16 हजार रुपए में पूरी हो जाएगी। ऐसे में ज्यादा से ज्यादा छात्राएं दाखिला ले पाएंगी और उन पर आर्थिक भार भी नहीं पड़ेगा। टैक्सटाइल डिजाइनिंग के क्षेत्र में प्रतिभाएं उभर सकेंगी।
होम साइंस : 15 हजार की जगह लग रहे 30 हजार
होम साइंस की विभागाध्यक्ष दीपा स्वामी बताती हैं, एमए होम साइंस भी सेल्फ फाइनेंस स्कीम में संचालित हो रहा है। इसकी पर-ईयर फीस 10 हजार रुपए तथा 5 हजार रुपए सेमेस्टर एग्जाम फीस है। ऐसे में एक साल में 15 हजार रुपए खर्च होते हैं। इस तरह दो साल की डिग्री पूरी करने के लिए 30 हजार लगते हैं। जबकि, यही कोर्स यूजी में सरकारी मोड पर संचालित होने से इसकी फीस परईयर 3 हजार रुपए ही है।
साइड इफेक्ट: हर साल खाली रहती सीटें
कॉलेज से मिली जानकारी के अनुसार, प्रदेश के अन्य जिलों से भी लड़कियां जेडीबी आर्ट्स कॉलेज में एमए जीपीईएम में दाखिले के लिए आवेदन करती हैं। इस विषय में कुल 20 सीटें हैं, जिसके मुकाबले एडमिशन फॉर्म तो दो गुने आते हैं लेकिन फीस ज्यादा होने के चलते 10 से ज्यादा सीटें खाली रह जाती है। कॉलेज में यूजी में 1999 में यह कोर्स शुरू हुआ था। उस समय राज्य में केवल अलवर व बीकानेर में ही चलता था। डिमांड बढ़ने पर जेडीबी में पीजी में वर्ष 2018 में सेल्फ फाइनेंस स्कीम में इस कोर्स को शुरू किया था। जीपीईएम में गत वर्ष प्रिवियस में 15 तथा फाइनल में 11 सीटें खाली रह गई। होम साइंस की 40 सीटों में से आधी सीटें खाली रही थी।
बारां-झालावाड़ जाने को मजबूर छात्राएं
छात्राओं ने बताया कि हाड़ौती में केवल राजकीय महाविद्यालय बारां व झालावाड़ में ही होम साइंस रेगुलर स्कीम में संचालित हो रहा है। जिसमें सरकारी फीस होने के कारण बड़ी संख्या में छात्राएं कोटा से बारां-झालावाड़ जाने को मजबूर होती है। जबकि, कोटा में इसे सरकारी स्कीम में चलाने के लिए आयुक्तालय से लेकर विधायक मंत्री तक को ज्ञापन दे चुके हैं, इसके बावजूद समाधान नहीं हो रहा।
क्या कहती हैं छात्राएं
फीस बहुत महंगी, रेगुलर मोड पर चलाए सरकार
मैने जीपीईएम में एमए किया है। सेल्फ फाइनेंस स्कीम में चलने से कोर्स की फीस बहुत महंगा है। ऊपर से सेमेस्टर के कारण फीस और बढ़ गई। इसके अलावा प्रेक्टिकल, असाइमेंट व इंडस्ट्री विजिट सहित अन्य खर्चों को मिलाकर दो साल की डिग्री करने में 50 हजार से ज्यादा रुपए खर्च हो गए। इतनी महंगी शिक्षा से कई छात्राएं रुचि होते हुए भी यह कोर्स नहीं कर पातीं। सरकार को छात्राओं के हित में इस कोर्स को रेगुलर स्कीम में संचालित करना चाहिए।
-निकिता सचवानी, रिसर्चर जेडीबी आर्ट्स कॉलेज
एक साथ 20 हजार रुपए सालाना फीस जमा करवाना लड़कियों के लिए आसान नहीं होता। क्योंकि, अधिकतर छात्राएं ग्रामीण परिवेश से आती हैं। जीपीईएम को रेगुलर स्कीम में चलाने के लिए शिक्षकों व आयुक्तालय से डिमांड की लेकिन कुछ नहीं हुआ। फॉर्म तो सीटों से दो गुना आते हैं लेकिन महंगी फीस के कारण छात्राएं एडमिशन नहीं ले पाती। कुछ समय पहले छात्राओं ने होमसाइंस व जीपीईएम को रेगुलर स्कीम में करने की मांग को लेकर प्रदर्शन भी किया था।
-अनुश्री सक्सेना, छात्रा जेडीबी कॉलेज
क्या कहते हैं प्रोफेसर
परिधान इंडस्ट्री में रोजगार के अवसर
जीपीएम, गारमेंट प्रोडेक्शन एंड एम्पोर्ट मैनेजमेंट कोर्स होता है। इसमें कपड़ा निर्माण से लेकर डिजाइनिंग व एक्सपोर्ट-एम्पोर्ट तक की जानकारी दी जाती है। इस कोर्स में एडमिशन लेकर छात्राएं, फैशन डिजाइनिंग, परिधान उद्योग, गारमेंट व्यवसाय, बुटीक, गारमेंट इंडस्ट्री में कॅरियर बना सकती हैं। वहीं, नेट व सेट कर आरपीएससी के माध्यम से शिक्षा के क्षेत्र में भी नौकरी पा सकती हैं। छात्राओं को जयपुर, बीकानेर, भीलवाड़ा में इंडस्ट्री विजट करवाई जाती है। वहीं, कैथून में कोटा डोरिया के उत्पादन-निर्माण दिखाया जाता है। इसमें रोजगार के असीम अवसर उपलब्ध हैं।
-प्रो. बिंदू चतुर्वेदी, विभागाध्यक्ष जीपीईएम, जेडीबी आर्ट्स कॅलेज
कोटा जिले में यह एकमात्र ऐसा कॉलेज है, जहां होम साइंस में एमए कराई जाती है। लेकिन, सेल्फ फाइनेंस स्कीम में होने से फीस महंगी हो गई। जिसकी वजह से छात्राओं को बारां-झालावाड़ जाना पड़ता है। होम साइंस में प्रसार शिक्षा, इंटियर डिजाइनिंग, टेक्सटाइल, फू्रड एंड न्यूट्रीशियन तथा फर्नीचर डिजाइनिंग सीखाई जाती है। इसे रेगुलर मोड पर संचालित करवाने के लगातार प्रयास कर रहे हैं। आयुक्तालय को भी पत्र भेज चुके हैं। उम्मीद है इस सत्र से हो जाए।
-प्रो. दीपा स्वामी, विभागाध्यक्ष होम साइंस, जेडीबी आर्ट्स कॉलेज
यह कॉलेज संभाग का सबसे बड़ा गर्ल्स कॉलेज है। पिछले 7 साल से जीपीईएम व होम साइंस कोर्स सेल्फ फाइनेंस स्कीम में चल रहा है। फीस बहुत महंगी है, जिसके कारण छात्राओं पर आर्थिक बोझ पड़ता है। इन कोर्सेज को सरकार द्वारा संचालित करवाने के लिए हर साल आयुक्तालय को पत्र भेजा जाता है। हाल ही में लोकसभा स्पीकर के विशेषाधिकारी को भी इससे अवगत कराया है। उन्होंने समाधान का भरोसा दिलाया है। अब तक उप मुख्यमंत्री एवं उच्च शिक्षा मंत्री, स्थानीय विधायकों को भी पत्रों के माध्यम से छात्राओं के हित में इन कोर्सेज को रेगुलर स्कीम में करवाने की मांग की थी। इसके बावजूद कुछ नहीं हुआ। हालांकि, हमारे स्तर पर प्रयास जारी है।
-प्रो. सीमा चौहान, प्राचार्य जेडीबी आर्ट्स कॉलेज कोटा

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