गौ मूत्र व गोबर पर सरकारी फोकस की जरूरत, बन सकती है इंडस्ट्री
गोबर से बन रहे विभिन्न उत्पाद, गायें भी बनीं आर्थिक विकास में सहायक
गौपालन को बढ़ावा देने से जहां गौशालाओं में गायों को रखने की जगह की कमी की समस्या दूर होगी वहीं गायों की दर्दनाक मौत के सिलसिले में भी कमी आएगी।
कोटा। पशुपालन कर्म रोजगार के साथ ही किसानों की दैनिक आय का अच्छा जरिया भी है। ज्यादातर लोगों को यही लगता है कि गाय के दूध के जरिए ही आय अर्जित की जा सकती है। गाय के दूध से कई उत्पाद बनाए जाते हैं जिनमें पनीर, दही, घी, आइसक्रीम और मक्खन शामिल हैं। किंतु अब गाय के गोबर के उपयोग से कई तरह के उत्पाद बनाए जाने लगे हैं। पशुपालन के महत्व को देखते हुए ही सरकार को गोपालन के लिए किसानों व आमजन को बढ़ावा देने के लिए सब्सिडी प्रदान करना चाहिए जिससे वह अपना व्यवसाय शुरू कर सकें। कुछ किसान बड़े स्तर पर गोपालन कर रहे हैं लेकिन आमजन व किसान भी पशुपालन को व्यवसाय के तौर पर अपनाए इसके लिए सरकारी प्रयास जरूरी हैं। गौपालन को बढ़ावा देने से जहां गौशालाओं में गायों को रखने की जगह की कमी की समस्या दूर होगी वहीं गायों की दर्दनाक मौत के सिलसिले में भी कमी आएगी। हमारे यहां गायों को पूजा जाता है। अगर अनुदान पर व्यवसाय शुरू होगा तो उसका फायदा यह होगा कि किसानों व आमजन की आय बढ़ेगी, इससे बनने वाले बाय प्रोडक्ट्स की इंडस्ट्री डलेगी तो लोगों को रोजगार मिलेगा। गोबर की बर्बादी भी नहीं होगी। दूध देने वाली गाय एवं दूध न देने वाली गाय दोनों ही इसमें उपयोगी रहेगी। आज सड़कों पर आए दिन गौवंश की मृत्यु हो रही है, खाने को चारा नहीं मिलता, गौ शाला में गौवंश की हालत ठीक नहीं है। कुपोषण का शिकार हो रही है, सड़कों पर आवारा छोड़ दी जाती है। यदि काऊ डंग इन्डस्ट्री का विकास होगा तो गौवंश का बेहतर प्रबंधन हो सकेगा और गोबर से बनने वाले उत्पादों का कारोबार भी ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूती प्रदान करने में कारगर साबित होगा।
गाय के गोबर व गौमूत्र से बनने वाले उत्पाद
गौमूत्र से कैंसर की दवाएं तक बनाई जा रही है। गोबर का इस्तेमाल रसोई गैस से लेकर देसी खाद और जैव उर्वरक बनाने में किया जा रहा है। गोबर से ऑर्गेनिक पेंट, कागज, कैरी बैग, मैट से लेकर गमले, ईंट, लेंटर की सामग्री, हवन सामग्री,प्लास्टर का मसाला और दीवार एवं फर्श को लीपने के लिए सामग्री तैयार की जाती है। इसे गौ क्रीट तकनीक कहा जाता है। गोबर के जरिए पत्तल,चप्पल,मूर्तियां, मच्छर मार अगरबत्ती ,बायोगैस प्लांट, बर्तन, धूप, अगरबत्ती, दीपक, पर्स, अबीर गुलाल, बायोगैस कार कई इको-फ्रैंडली प्रोडक्ट बनाए जा रहे हैं, जो कैमिकल प्रोडक्ट्स का अच्छा विकल्प हैं। गोबर का उपयोग करके सीएनजी प्लांट, जीवामृत, बीजामृत, पंचगव्य, संजीवक, नाडेफ कंपोस्ट आदि बनाए जाते हैं। गौमूत्र और नीम की पत्तियों से नीमास्त्र बनाया जाता है, जिसे प्राकृतिक कीटनाशक भी कहते हैं। गोबर से गौअर्क, दंत मंजन, साबुन, सजावट के सामान, माला, चूड़ियां, मोबाइल स्टीकर, नेचुरल पेस्टीसाइड, कैमिकलमुक्त फिनाइल, घर की सजावट का सामान, फोटो फ्रेम, दीवार की घड़ी, ट्रॉफी, लकड़ी आदि कई तरह के प्रोडक्ट बनाए जा रहे हैं । गोबर से बनी लकड़ी का उपयोग पूजा पाठ के दौरान हवन में अग्नि जलाने, अंतिम संस्कार एवं अन्य कामों में भी किया जाता है। गोबर की लकड़ी काफी समय तक जलती रहती हैं, इसलिए अग्नि जलाने के इसका उपयोग होता है।
गोबर से सामान बनाने के फायदे: गोबर के जरिए कई तरह की चीजें बनाई जाती हैं। जिसके जरिए प्रदूषण कम हो सकता है। इसके अलावा ट्रॉफी जैसी चीजों के लिए बहुत से पेड़ काटे जाते हैं। अगर गोबर के जरिए ये चीजें बनाई गई तो इससे न केवल पेड़ कम कटेंगे बल्कि प्लास्टिक का इस्तेमाल भी घट जाएगा। गाय के गोबर से कई उत्पाद बनते हैं। आज जब गोबर से विभिन्न उत्पादों को बनाया जा रहा है, ऐसे में गाय से आर्थिक विकास में भी सहायता हो रही है तो सरकार और प्रशासन को इनकी तरफ ध्यान दिए जाने की जरुरत है।
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गौशाला को सरकार की तरफ से अनुदान दिया ही जाता है। गौशाला में गोबर का व गौमूत्र का उपयोग कर ही रहे है। इनके लिए प्रशिक्षण भी गौशाला वाले आयोजित करते रहते हैं। जयपुर से गौशाला वाले आते हैं इनको प्रशिक्षित भी करते हैं। आम आदमी जिनके बड़ी डेयरी फार्म है उनके पास गोबर गैस प्लांट स्वयं के है। वर्मी कंपोस्ट का भी प्लांट है। सब्सिडाइज्ड रेड पर पशुपालको को जमीन दे तो यह सरकार का पॉलिसी मैटर है। लोन इनको मिल ही रहा है। लोन की सब्सिडी भी सरकार की योजनाओं में आती हैं। डेयरी के लिए लोन मिलता है। सामान्य गोपालक जिनके पास बड़ी संख्या में गोवंश है। वो तो गोबर गैस प्लांट, वर्मी कंपोस्ट प्लांट चला ही रहे है। मिल्क प्रोडक्ट्स दूध, दही, पनीर छाछ सभी बना रहे है। सारे मॉर्डन डेयरी फार्म है। मैकेनिज्ड है। अभी सेन्ट्रल गवर्नमेंट का ब्रीड मल्टीप्लीकेशन फार्म का प्रोजेक्ट भी आया है। उसके लिए भी हमारे पास गाइडलाइन है । अगर कोई बड़ा फार्मर लेना चाहे तो वह ले सकते है। इसमें 50 प्रतिशत सब्सिडी है।
- डॉ. गिरीश विट्ठल राव सालफले, उपनिदेशक पशुपालन विभाग कोटा
सरकार ने देवनारायण योजना में गौपालकों को जगह दे दी है। सड़कों पर विचरण करने वाले आवारा पशुओं की भी समस्या नहीं हैं। मुख्य समस्या गौशालाओं में गायों की हैं। सबसे ज्यादा वहां गायों की मौत हो रही है। हमें गायों के दूध पर फोकस नहीं करके उनके वेस्ट प्रोडक्ट यानि गाय के गोबर व गौ मूत्र से बनने वाले जो प्रॉडक्ट्स हैं उन पर फोकस करना चाहिए। उनकी ज्यादा से ज्यादा अवेयरनैस होगी तो लोग उन्हें खरीदेगें, डिमांड बढ़ेगी तो कहीं ना कहीं मैन्यूफैक्चरिंग भी होगी। आमदनी भी अच्छी मिलेगी। वहीं गायों की बीमारियों की समस्या भी हल होगी। उनकी सेहत भी सही रहेगी। लोग भी आॅर्गेनिक लाइफ स्टाइल, पशुधन को सपोर्ट करेगें, तो उनकी सेहत के लिए भी अच्छा रहेगा।
-अमनप्रति सिंह, को-फाउंडर, गौ आॅर्गेनिक्स
किसानों की आय को बढ़ाने के लिए सरकार की दो पॉलिसी है। इंटीग्रेटेड फार्मिंग और आॅर्गेनिक फार्मिंग हैं । इन दोनों मुख्य इश्यू का निराकरण हो सकता है अगर हम गौ संरक्षण कर सके। गायों को पालने के लिए किसानों को प्रेरित करें चाहे सब्सिडी देकर, जमीन उपलब्ध करवाकर या अन्य संसाधन उपलब्ध करवाकर। किसानों को इस तरफ मोटीवेट करें तो किसान खेत के साथ-साथ गौ पालन भी करेगा तो इंटीग्रेटेड फार्मिंग नेचुरली हो जाएगी। ये पहले भी होता था। गाय के बाय प्रॉडक्ट्स चाहे गोबर या गौमूत्र या उसके सींग के रूप में मिले उससे भी आॅर्गेनिक फार्मिंग में काफी फायदा मिलता है। आॅर्गेनिक खेती में जो इनपुट उपयोग किए जा रहें हैं वो गाय के पालन से बायप्रॉडक्ट के रूप में मिलेगें जिससे हम आॅर्गेनिक कल्टीवेशन की तरफ भी किसान को मोटीवेट कर पाएंगे। इन दोनों से उसकी आर्थिक स्थिति सुदृढ़ होगी। सड़कों पर घूम रही गायों को कोई किसान पालने को तैयार नहीं होता । इससे आए दिन दुर्घटनाएं हो रही है। सरकार का कहीं ना कहीं उन गायों को पकड़ने, गौशाला उपलब्ध कराने व दूसरे मैनेजमेंट में कई सारा खर्चा हो रहा है। उस खर्चे को सरकार किसानों की तरफ डायवर्ट करें और एक नीति बनाए कि जो किसान इतनी गायों के झुंड को अपने यहां पालेगा उसे लगभग इतनी सब्सिडी पर गाय के हिसाब से सब्सिड़ी मुहैया कराएंगे।ऐसा करने पर किसान निश्चित रूप से उन्हें पालेगा । सरकार को ब्रीडिंग इंप्रूवमेंट पर भी ध्यान देना चाहिए।
-डॉ. एम.सी. जैन, डीन, कृषि महाविद्यालय, कोटा
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